10 हफ्तों में खाली हो जाएगा पाकिस्तान का खजाना..!

2018-07-01 0

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पिछले कुछ महीनों से भारी संकट में जाती दिख रही है, लेकिन वहां की राजनीति में सेना बनाम सरकार की लड़ाई थम नहीं रही है। पाकिस्तान मुद्रा अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अपना मूल्य लगातार खो रही है। एक अमरीकी डॉलर की तुलना में पाकिस्तानी रुपये की कीमत 120 रुपए तक चली गई है। इसके साथ ही पाकिस्तान विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार हो रही कमी से भी जूझ रहा है। 

पाकिस्तान के पास अब 10.3 अरब डॉलर का ही विदेशी मुद्रा भंडार है, जो पिछले साल मई में 16.4 अरब डॉलर था। पाकिस्तान के प्रमुख अखबार डॉन का कहना है कि पाकिस्तान भुगतान संकट से निपटने के लिए एक बार फिर चीन की शरण में जा रहा है और एक से दो अरब डॉलर का कर्ज ले सकता है। 

पाकिस्तान में जुलाई महीने में आम चुनाव होने वाले हैं और चुनाव के बाद पाकिस्तान आईएमएफ की शरण में भी जा सकता है। इससे पहले पाकिस्तान ने 2013 में आईएमएफ का दरवाजा खटखटाया था।

10 हफ्तों तक ही आयात के लिए विेदेशी मुद्रा

फाइनैंशल टाइम्स का कहना है कि पाकिस्तान के पास जितनी विदेशी मुद्रा है वो 10 हफ्तों की आयात के ही बराबर है। फाइनैंशल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार विदेशों में नौकरी कर रहे पाकिस्तानी देश में जो जैसे भेजते थे उसमें गिरावट आई है। इसके साथ ही पाकिस्तान का आयात बढ़ा है। चाइना पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर में लगी कम्पनियों को भारी भुगतान के कारण भी विदेशी भंडार खाली हो रहा है। चाइना पाकिस्तान कॉरिडोर 60 अरब डॉलर की महत्वाकांक्षी परियोजना है। 

विश्व बैंक ने अक्टूबर महीने में पाकिस्तान को चेतावनी दी थी कि उसे कर्ज भुगतान और करंट अकाउंट घाटे को पाटने के लिए इस साल 17 अरब डॉलर की जरूरत पड़ेगी। पाकिस्तान का तर्क था कि विदेश में बसे अमीर पाकिस्तानियों को अगर अच्छे लाभ का लालच दिया जाए तो वो अपने देश की मदद कर सकते हैं।  पाकिस्तान के केन्द्रीय बैंक के एक अधिकारी ने फाइनैंशल टाइम्स से कहा था कि अगर प्रवासी पाकिस्तानियों को अच्छे लाभ का ऑफर दिया जाएगा तो देश में पैसे भेजेंगे।

संकट में पाकिस्तान

उस अधिकारी ने कहा था कि प्रवासियों से पाकिस्तान को एक अरब डॉलर की जरूरत है। चीन का पाकिस्तान पर कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है। समाचार एजेंसी रॉयटर्स के अनुसार जून में खत्म हो रहे इस वित्तीय वर्ष तक पाकिस्तान  चीन से पांच अरब डॉलर का कर्ज चे चुका है।  अमरीका की कमान डोनल्ड ट्रंप के हाथों में आने के बाद से पाकिस्तान को मिलने वाली आर्थिक मदद में अमरीका ने भारी कटौती की है। हाल ही में अमरीकी विदेशमंत्री माइक पॉम्पियो ने कहा है कि पाकिस्तान के साथ अमरीका के रिश्ते पूरी तरह से पटरी से उतर गये हैं। उन्होंने कहा कि अगले साल पाकिस्तान की मिलने वाली आर्थिक मदद में कटौती होगी। पाकिस्तान और अमरीका के खराब हुए संबंधों के कारण चीन की अहमियत बढ़ गई है। मतलब पाकिस्तान की निर्भरता चीन पर लगातार बढ़ रही है। 

आईएमएफ के अनुसार पाकिस्तान पर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है, 2009 से 2018 के बीच पाकिस्तान पर विदेशी कर्ज 50 फीसदी बढ़ा है। 2013 में पाकिस्तान को आइएमएफ ने 6.7 अरब डॉलर का पैकेज दिया था।


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चीन से कर्ज लेकर उसी से सामान  की खरीदारी

पाकिस्तान में चीन के लिए उसकी सीपीईसी परियोजना काफी अहम है। चीन नहीं चाहता है कि पाकिस्तान में किस ऐसे आर्थिक दुष्चक्र में फंसे जिससे उसकी परियोजना को धक्का लगे। 

इस महीने की शुरुआत में पाकिस्तान की आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को घटा दिया था। आईएमएफ ने कहा है कि अगले वित्तीय वर्ष में पाकिस्तान की वृद्धि दर 4.7 फीसदी रहेगी। जबकि पाकिस्तान 6 फीसदी से ज्यादा मानकर चल रहा है। पाकिस्तान के आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि केवल चीन की मदद से आर्थिक संकट से नहीं उबर सकता है। पाकिस्तान इस संकट से निपटने के लिए सऊदी अरब की तरफ भी देख रहा है।  

डॉन अखबार ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पाकिस्तान की सीपीईसी परियोजना के कारण चीनी मशीनों का आयात करना पड़ रहा है और उसमें भारी रकम लग रही है और इस वजह से करेंट अकाउंट घाटा और बढ़ रहा है। दूसरी तरफ कच्चे तेल की बढ़ती कीमत से पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर और भारी पड़ रहा है 

अप्रत्याशित व्यापार घाटा

पाकिस्तान का व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहा है। मतलब आयात बढ़ रहा है और निर्यात लगातार कम हो रहा है। पिछले साल पाकिस्तान का व्यापार घाटा 33 अरब डॉलर का रहा था। यह घाटा पाकिस्तान के लिए अप्रत्याशित था। व्यापार घाटा बढ़ाने का मतलब यह है कि पाकिस्तानी उत्पादों की मांग दुनिया में लगातार गिर रही है या दूसरे विदेशी उत्पादों के समक्ष टिक नहीं पा रहे हैं। यहां तक कि पाकिस्तान में भी पाकिस्तानी इंडस्ट्रीज अपने उपभोक्ताओं के सामने पिछड़ती दिख रही है। 

पाकिस्तान में आयकर देने वालों की संख्या भी काफी सीमित है। द एक्सप्रेस ट्रिब्यून के अनुसार 2007 में पाकिस्तान में आयकर भरने वालों की संख्या महज 21 लाख थीजो 2017 में घटकर 12 लाख 60 हजार हो गई। कहा जा रहा है कि इस साल इस संख्या में और कमी आएगी।

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