हिंसा की आंधी

2018-09-01 0

 मानव जाति को अहिंसा परमो धरमः और वसुधैव कुटुम्बकम का पाठ पढ़ाने वाले भारत को आज क्या हो गया है। अहिंसावादी गौतम बुद्ध और गांधी के देश में भीड़ की हिंसा अब भयावह लगने लगी है। कौन, कब और कहां भीड़ की हिंसा की चपेट में आ जाएगा, कोई भी पुख्ता गारंटी नहीं ले सकता है। यहां तक हमारी सर्वशक्तिमान सरकार भी नहीं। ऐसा मैं यूं ही नहीं कह रहा हूं। राजस्थान के अलवर में गाय खरीदने गए अकबर उर्फ रकबर को उन्मादी युवकों ने पीट दिया था। जहां से पुलिस उसे बमुश्किल बचाकर ले गई। लेकिन अस्पताल पहुंचने से पहले ही अकबर की मौत हो गई। 

हालांकि, इस मामले में प्रत्यक्षदर्शी ने बयान दिया है कि पुलिस ने इस कदर पीटा कि मौत हो गई। मगर भीड़ ने भी पिटाई की थी, इससे वह इन्कार नहीं करता है। पुलिस ने खुद कहा था कि वह घटनास्थल पर साढ़े 12 बजे पहुंची, जबकि अस्पताल प्रशासन का कहना है कि पुलिस घायल को लेकर सुबह 4 बजे पहुंची। तो सवाल उठता है कि 4 किमी दूर अस्पताल पहुंचने में पुलिस को इतने घंटे कैसे लगे। इससे यह भी शक गहराता है कि पुलिस अपने कुकृत्य को मॉब लिंचिंग से ढकने की कोशिश कर रही है।

मेरा मानना है कि अकबर की मौत भीड़ की पिटाई से हुई या फिर पुलिस कस्टडी में पिटाई से हुई हो। आखिरी सच यही है कि उसकी मौत हुई है। इसकी निज्पक्ष जांच होनी चाहिए और दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा भी मिलनी चाहिए। जहां तक मुझे याद है कि राजस्थान में मॉब लिंचिंग की यह कोई पहली घटना नहीं थी। पिछले साल भी अलवर में एक डेयरी व्यवसायी की कथित गोरक्षकों ने नृशंस हत्या कर दी थी। जम्मू-कश्मीर हो या हरियाणा, असम हो या पश्चिम बंगाल, झारखंड हो या बिहार, यूपी हो या दिल्ली, गुजरात हो या महाराष्ट्र सभी प्रदेशों में भारतीयता और भारतीय संस्कृति को शर्मसार करने वाली मॉब लिंचिंग की घटनाएं कुछ एक महीनों के अंतराल पर लगातार हुई हैं। उन्मादी भीड़ ने कभी राजस्थान में गोरक्षा के नाम पर खान को मार दिया। कभी जम्मू-कश्मीर में डीएसपी अयूब पंडित की हत्या कर दी। कभी दिल्ली में बीफ को मुद्दा बनाकर अखलाक को मार डाला। कभी हरियाणा के बल्लभगढ़ में चलती टेªन में बीफ के शक में जुनैद को पीटकर मार डाला। कभी झारखण्ड में बच्चा चोरी के शक में कानून अपने हाथ में लेकर दर्जनों लोगों को मौत के घाटत उतार दिया। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं ऐसी घटनाओं को लेकर गोरक्षा के नाम पर की जा रही हिंसा पर नाराजगी जता चुके हैं। कथित गोरक्षकों पर सख्ती की वकालत भी कर चुके हैं। इसके बावजूद गोरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है। 

सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र सरकार से स्पष्ट तौर पर कहा है कि मॉब लिंचिंग की वारदातों पर सख्त कानून बनाएं और इसका कड़ाई से पालन कराएं। देश का संविधान और कानून हम सबको जीवन रक्षा का अधिकार देता है। कोई भी व्यक्ति या लोगों का समूह कानून को धता बताकर किसी की जिन्दगी खत्म नहीं कर सकता है। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए केन्द्र और सभी राज्य सरकारों को समुचित कदम उठाने होंगे।

हालांकि, अभी कुछ दिन पहले ही गुरुग्राम में केन्द्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने स्वयं यह माना है कि कानून का डर खत्म होने से अपराध बढ़ रहे हैं। इसकी मुख्य वजह लोगों का निजी स्वार्थ एवं अनुशासनहीनता है। सभ्य समाज में किस भी प्रकार की हिंसा को सही नहीं ठहराया जा सकता है। फिर भी भीड़ के उत्पात और हिंसा को रोकने और समझाने की कौन कहे, बहुत से जिम्मेदार प्रतिनिधियों ने बड़बोलेपन से उन्मादी भीड़ को और भी उकसाने का काम किया है। जिसके एक नहीं तमाम सबूत बिखरे पड़े हैं, जिसके आधार पर सरकार और सत्ता सिस्टम कड़ी कार्रवाई कर सका है, लेकिन कतई नहीं करेगा। 

सत्ता और तात्कालिक राजनीतिक लाभ के लिए सभी सियासी दलों ने एक चुप्पी साथ रखी है। चाहे वह सत्ता पक्ष में शामिल हों, या फिर विपक्ष में बैठे हों। मैं ही नहीं, शायद ही कोई बता सकेगा कि यह चुप्पी कब टूटेगी। --- 




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