विमुद्रीकरण - क्या खोया क्या पाया

विमुद्रीकरण - क्या खोया क्या पाया
डॉ- डी-आर- अग्रवाल (प्रोफेसर, स्टारैक्स विश्वविद्यालय)
गुरुग्राम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
का राष्ट्र के नाम संदेश कौन भूल सकता है जिसमें उन्होंने 8 नवम्बर की मध्य
रात्रि 500 रु- और 1000 के नोट अचानक कानूनी रूप से अवैध बना
दिए। बहनों और भाइयों के नाम यह संदेश अचानक अफरा-तफरी का संदेश बन गया। भारतीय
जनता पार्टी की सरकार का यह अप्रत्याशित कदम अर्थशास्त्र मनीषियों के लिए बौद्धिक
व्यायाम का केन्द्र बन गया और अर्थशास्त्रियों को वामपंथी और दक्षिणपंथी की श्रेणी
में विभाजित कर दिया। 15-44 लाख करोड़ की कागजी मुद्रा को अचानक
समाप्त करना एक असाधारण कदम था। विमुद्रीकरण का निर्णय देश का केन्द्रीय बैंक
मौद्रिक नीति निर्धारण के रूप में लेता है और विधिवत् घोषणा केन्द्रीय सरकार
द्वारा की जाती है। सरकार की ओर से इस निर्णय के पीछे जो तर्क दिए गए वे इतने
लुभावने थे कि लोग पंक्तियां-बद्ध खड़े होकर पसीना बहा रहे थे। अपने 500 और
1000 के नोटों को बदलवाने के लिए, क्योंकि उनको
इतना विश्वास था कि अब काला धन समाप्त होगा। लोगों को प्रणाली में आना होगा और कर
देना होगा जो अब तक नहीं देते थे और इस मुद्रा का उपयोग समाज में नई कुप्रथाओं के
जन्म के लिए करते थे जिसे शान-शौकत और सामाजिक प्रतिष्ठा से देखा जाता है। इसी
काले धन का उपयोग आतंकवाद तथा अन्य समाज विरोधी गतिविधियों के लिए किया जाता था। 500 और
1000 के नकली नोट भी प्रचलन में आ गये थे, इस कारण
विमुद्रीकरण का औचित्य और भी अधिक हो जाता है। कुछ लोग दुःखी थे परन्तु अधिकांश
लोग इसका खुले दिल से समर्थन कर रहे थे और कह रहे थे - दुःख भरे दिन बीते रे भैया
अब सुख आयो रे। जीवन में जैसे सब कुछ वैसा हो गया हो जैसा वे चाहते थे क्योंकि
उनको लग रहा था कि अच्छे दिन अब आ गये। अंधकार बीत चुका था, प्रकाश छा गया
था। मजदूरों का रोजगार जा रहा था, फिर भी कल की सुबह की प्रतीक्षा में
प्रसन्न थे। 150 लोगों ने अपने प्राणों की बाजी लगाई और हंसते-हंसते मृत्यु को गले
लगाया क्योंकि उनको लगता था-
रात-भर का है मेहमां अंधेरा,
किसके रोके रुका है सवेरा,
रात जितनी भी संगीन होगी,
सुबह उतनी ही रंगीन होगी,
गम न कर, हे बादल घनेरे,
किसके
रोके रुका है सवेरा,
रात भर का है मेहमां अंधेरा।
उनके होठों पर कोई शिकायत न थी और
आंखों में आंसू न थे क्योंकि उनको लगता था कि आज नहीं तो कल धरा पर चांद गगन से
आएगा। समाज के एक प्रतिशत लोगों के पास देश की सम्पत्ति का लगभग 73
प्रतिशत हिस्सा है। इसी वर्ग का अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण है। भारत में एक अध्ययन
क अनुसार 5 प्रतिशत लोगों की आय और शेष 95 प्रतिशत लोगों
की सामूहिक आय लगभग समान है। पिछले कुछ वर्षों में असमानता की माप का सांख्यिकीय
माप गिनी गुणांक बढ़ा है। गरीब जनता करोड़पतियों और दागियों को संसद और विधानसभाओं
में भेजने को विवश है। इसी कारण भारत का लोकतंत्र अमीरों के हाथ में खेलता है। अब
लोगों को लगने लगा कि असमानताएं दूर होंगी और वास्तविक प्रजातंत्र लाने के लिए
सामाजिक एवं आर्थिक असमानताओं को मिटाना आवश्यक है, तभी सही अर्थों
में लोकतंत्र स्थापित किया जा सकता है। सबको लग रहा था कि अब सच्चा लोकतंत्र
स्थापित होगा जिसकी प्रतीक्षा पिछले 69 वर्षों से की जा रही थी।
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आख्या से स्पष्ट है कि रु- 15-41 करोड़ रु- में से रु- 15-31
लाख करोड़ वापस आ चुके हैं। अर्थात् 99-3 प्रतिशत मुद्रा बैंक प्रणाली में वापस
आ चुकी है। इसी कारण विमुद्रीकरण कदम के आलोचक यह कह रहे हैं कि इसका प्रमुख
उद्देश्य काले धन की समस्या को हल करना था और वह उद्देश्य पूरा नहीं हो पाया क्योंकि
अपेक्षा थी कि लगभग 2-5 लाख करोड़ रु- वापस नहीं आयेगा। सरकार की ओर से विमुद्रीकरण के दो
लाभ स्पष्ट से दावे किए जा रहे हैं जो सत्य है। आयकरदाताओं की संख्या कुल जनसंख्या
का पांच प्रतिशत से अधिक हुई है क्योंकि अब 130 करोड़ की
जनसंख्या में 7 करोड़ लोग आयकर देते हैं। दूसरे आयकर की राशि 2017-18
में 10 लाख करोड़ रु- का आंकड़ा पार कर गई थी और 2018-19
में पुनः 14 प्रतिशत वृद्धि की अपेक्षा है। दूसरी ओर जितना धन प्रणाली में वापस
नहीं आया, उससे अधिक नए नोटों की छपाई में चला गया। विमुद्रीकरण के उपरान्त
स्थिति में जो परिवर्तन हुआ है वह भारत की नकदी का संयोजन प्रमुख रूप से है-
100
रु- 100-200 500 500
रु- से
से
नीचे ऊपर (%)
मार्च 15 59-6 18 15-7 6-7
मार्च 16 58-1 17-5 17-4 7-0
मार्च 17 65-6 25-2 5-9 3-4
मार्च 18 58-0 23-5 15-1 3-3
अचानक 2018 में 100 रु- से नीचे के करेंसी नोटों का प्रतिशत गिर जाने से 100 रु- का नोट दुर्लभ हो गया है। इसी कारण बाजार में 100 रु- का नोट लेने वाला और देने वाला दोनों ही परेशान हो रहे हैं। 2017-18 वर्ष में 100 रु- के नोटों की स्थिति यह है कि पूर्ति में अचानक 60 प्रतिशत की कमी हो गयी है। जब बाजार में किसी भी वस्तु या सेवा की पूर्ति दुर्लभ हो जाती है तब नोट भी बाजार में जाली और नकली आने लगते हैं।साधारण व्यक्ति के लिए इनको सही रूप में पहचान करना कठिन हो जाता है।
विमुद्रीकरण का परिणाम यह हुआ कि नकली
करेन्सी जिसका उपयोग समाज विरोधी गतिविधियों के लिए किया जाता था वे काफी हद तक कम
हुई और इसका तुरन्त प्रभाव यह हुआ कि 2 प्रतिशत वार्षिक वृद्धि दर कम हो गई।
सकल घरेलूू उत्पाद कम हुआ तथा रोजगार का स्तर भी कम हुआ।
अतः विमुद्रीकरण का लाभ कम हुआ और इसकी
अवसर लागत भारी रही। प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ- सुरजीत भल्ला का भी यही मत है।
काला धन गोरा हो गया जबकि काले धन में कभी-कभी एक अजीब-सी गन्ध आती है। ईश्वर उस
गन्ध से दूर रखे।
धन्यवाद।