नेता और नौकरशाह एक-दूसरे को समझें, तो नहीं होगा विवाद

- आईएएस टॉपर इरा सिंघल
जीवन के प्रति सकारात्मक सोच, देश सेवा की ललक
और जीवन में चुनौतियों से जूझने का जज्बा इरा सिंघल के व्यक्तित्व में बिल्कुल
साफ़ नजर आते हैं। उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा 2014 में प्रथम स्थान
प्राप्त किया है। शारीरिक चुनौतियों से जूझ रही इरा एक पल के लिए भी लाचार नहीं
दिखतीं। उनके चेहरे की मुस्कान और आत्मविश्वास प्रेरणादायी लगते हैं। उन्होंने यह
साबित कर दिया है कि अगर जुनून और जज्बा है तो दुनिया की कोई भी ताकत आपको अपनी
मंजिल हासिल करने से नहीं रोक सकती।
जीवन के प्रति सकारात्मक सोच, देश सेवा की ललक
और जीवन में चुनौतियों से जूझने का जज्बा इरा सिंघल के व्यत्तिफ़त्व में बिल्कुल
साफ नजर आते हैं। उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा 2014 में प्रथम
स्थान प्राप्त किया है। शारीरिक चुनौतियों से जूझ रही इरा एक पल के लिए भी लाचार
नहीं दिऽतीं। उनके चेहरे की मुस्कान और आत्मविश्वास प्रेरणादायी लगते हैं। रजनीश
आनंद ने उनसे लंबी बातचीत की। उनकी सफलता की राह को जानने के साथ यह समझने की
कोशिश की कि वे एक आइएएस अफसर के रूप में क्या करना चाहती हैं और आज जब नौकरशाह
हमारी राजनीतिक सत्ता के पिछलग्गू भर बन कर रहे गये हैं, वह
कैसे कुछ अलग कर पायेंगी।
प्रश्नः जब आपको यह पता चला कि आपने सिविल सेवा परीक्षा में टॉप किया
है, तो आपको आश्चर्य हुआ या यह अंदाजा पहले से ही था?
उत्तरः मैंने जिस तरह से परीक्षा दी थी और जैसी तैयारी की थी, उससे
मुझे यह उम्मीद तो थी कि अच्छी रैंक मिलेगी, लेकिन टॉपर हो
जाऊंगी, इसकी मुझे जरा भी उम्मीद नहीं थी। जब मुझे पता चला, तो
मुझे एकबारगी विश्वास ही नहीं हुआ। यह मेरे लिए आश्चर्य के समान था। मैंने कहा कि
नहीं, ऐसा नहीं हो सकता है। मैंने लोगों से कहा कि आप इस बारे में पक्का कर
लें। फिर मैंने एक-दो बार नहीं, बल्कि कई बार अपने रिजल्ट को देखा और
फिर जाकर मुझे यकीन आया। तो मैं यह कहूंगी कि आइएएस टॉपर होना मेरे लिए आश्चर्य के
समान था।
प्रश्नः इस मंजिल तक पहुंचने का जो सफर था, वह
कितना मुश्किल था?
उत्तरः मैं आपको बताना चाहूंगी कि मैंने अब तक छह बार आइएएस की
परीक्षा दी है। जिसमें से दो बार मैं बस यूं ही देखने-समझने के लिए परीक्षा में
शामिल हो गयी थी, लेकिन चार बार (वर्ष 2010, 2011, 2013 और
2014 में ) मैंने पूरी तैयारी करके परीक्षा दी। और, चारों
ही बार मुझे सफलता मिली। 2010 में मैंने 815वीं
रैंक हासिल की और भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) में मेरा चयन हुआ। लेकिन मेरी
शारीरिक चुनौतियों के कारण (इरा को रीढ़ की हड्डी में समस्या
है) मुझे शारीरिक रूप से इस सेवा के लिए अयोग्य बताया गया।
दरअसल, मुझे आईएएस के अलावा सभी सेवाओं के लिए अयोग्य करार दिया गया था और
मेरी रैंक तब आईएएस बनने लायक नहीं थी। इसलिए मैं लगातार परीक्षा देती रही। साथ ही
मैंने अपने और अपने जैसे दूसरे लोगों के हक की लड़ाई के लिए सेंट्रल
एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रिब्यूनल का दरवाजा खटखटाया। इस लड़ाई में मैं इसलिए भी उतरी
क्योंकि शारीरिक चुनौतियों से जूझ रहे बहुत से लोग मुझसे ऐसा करने को कह रहे थे।
अब सबकी आर्थिक स्थिति या परिस्थितियां ऐसी नहीं होतीं कि वे न्यायालय में जा
सकें। अदालत से मुझे राहत मिली। मुझे हैदराबाद में आईआरएस की ट्रेनिंग में ले लिया
गया। मैंने अपनी लड़ाई वर्ष 2012 में शुरू की थी और इसका नतीजा मुझे 2014
में मिला। लेकिन मेरी ख्वाहिश थी आईएएस बनने की, इसलिए मैं फिर
परीक्षा में बैठी।
प्रश्नः आखिर आप आईएएस ही क्यों बनना चाहती थीं? आईआरएस
से क्या समस्या थी?
उत्तरः आईआरएस से समस्या कोई नहीं थी, लेकिन मेरी बचपन
से ही यह दिली ख्वाहिश थी कि मैं देश की सेवा करूं। मुझे ऐसा महसूस होता है कि देश
सेवा के लिए दो ही प्लेटफॉर्म सबसे बढ़िया हैं। या तो आप डॉक्टर बन जायें या फिर
आईएएस। लेकिन मेरे पापा ने मुझे आईएएस बनने का सुझाव दिया। उनका मानना था कि मैं
अपनी शारीरिक चुनौतियों की वजह से डॉक्टर नहीं बन पाऊंगी। यही कारण था कि उन्होंने
मुझे बारहवीं में बायोलॉजी लेने नहीं दिया। सो मेरे लिए आईएएस का प्लेटफॉर्म ही
देश सेवा के लिए बेहतर था।
प्रश्नः एक आईएएस के रूप में किस तरह से आप देश सेवा करेंगी? इस
बारे में कोई खास योजना आपके दिमाग में हो तो बताइए?
उत्तरः देश की सेवा तो करनी है, पर मैं इस बारे
में अभी ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहूंगी, क्योंकि मैं यह
बिलकुल नहीं जानती कि एक आईएएस को क्या काम करने होते हैं। सबसे पहले तो मैं यह
समझूंगी कि एक आईएएस की जिम्मेदारियां और भूमिका क्या होती है, उसके
बाद ही मैं यह तय कर पाऊंगी कि मुझे क्या और कैसे करना है। अभी मैं भविष्य की
योजनाओं के बारे में ज्यादा कुछ नहीं बता पाऊंगी।
प्रश्नः आज के नौकरशाहों को देऽ कर क्या आपको लगता है कि आप ज्यादा
कुछ कर पायेंगी? क्योंकि नौकरशाह अपनी भूमिका को भूल कर नेताओं के पिछलग्गू दिऽने लगे
हैं। अच्छी पोस्टिंग की चाहत में वे तरह-तरह के समझौते करते हैं। आम तौर पर वे गलत
को गलत कहने का साहस भी नहीं जुटा पाते हैं? ऐसे में आप खुद को कैसे स्थापित कर पायेंगी?
उत्तरः मैं ऐसा नहीं मानती कि नौकरशाह कुछ नहीं करते। इतने सालों से
यह देश चल रहा है और आज कई देशों से आगे है, तो बिना कुछ
किये तो यह स्थिति नहीं है। यह अलग बात है कि नौकरशाह जो करते हैं, वो
लाइमलाइट में नहीं आ पाता है, जिसके कारण उसके बारे में ज्यादा लोगों
को जानकारी नहीं मिल पाती है। कई ऐसे अधिकारी सामने आये हैं, जिन्होंने
अपने कार्यों से अपना लोहा मनवाया है। जहां तक बात ऽुद को स्थापित करने की है, तो
मैं आपको यह बता हूं कि मैं हमेशा सच का साथ देती हूं। लेकिन मैं किसी को गलत नहीं
समझती हूं। मेरा यह मानना है कि हर आदमी का दृष्टिकोण अलग होता है और वह अपने
तरीके से अपनी बातों को रऽता है। हो सकता है कि एक नेता और नौकरशाह के बीच मतभेद
हो, लेकिन इसमें ध्यान देने वाली बात यह है कि दोनों का उद्देश्य तो एक
ही है, देश सेवा। ऐसे में अगर हम एक दूसरे की बातों को समझेंगे और उसका
सम्मान करेंगे, तो विवाद नहीं होगा और देश का काम भी सहजता से होगा। मैं सकारात्मक
सोच रखती हूं, और मेरा ऐसा मानना है कि अगर आप कुछ करना चाहते हैं, तो
कोई बाधा आपको रोक नहीं सकती है।
प्रश्नः पिछले दिनों यूपीएससी की सीसैट परीक्षा (सिविल सर्विसेज
एप्टीटड्ढूड टेस्ट) का काफी विरोध देऽने को मिला। इसका विरोध आम तौर पर वो छात्र
कर रहे थे जो हिंदी माध्यम से पढ़े हैं और जिनका ताल्लुक प्रबंधन व विज्ञान के
विषयों की पृष्ठभूमि से नहीं है। क्या आप भी सीसैट को भेदभावपूर्ण मानती हैं? आपका
इस परीक्षा के बारे में क्या नजरिया है?
उत्तरः जी, मैं इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं
करना चाहूंगी।
प्रश्नः अक्सर यह कहा जाता है कि आईएएस की परीक्षा अंग्रेजी माध्यम
से पढ़े छात्रें के पक्ष में झुकी हुई है। हिंदी माध्यम के छात्रें को काफी
परेशानियां झेलनी पड़ती हैं। आप इस बारे में क्या कहेंगी?
उत्तरः देिऽए मुझे ऐसा लगता है कि भाषा से कुछ नहीं होता है। हां, यह
जरूर है कि हिंदीभाषी परीक्षार्थियों को तैयारी के लिए सामग्री कम मिल पाती होगी।
इसके अलावा कोई खास परेशानी मेरी समझ से नहीं होती है। हालांकि मैंने हिंदी माध्यम
से परीक्षा नहीं दी है, इसलिए मैं इस बारे में ज्यादा नहीं बता
पाऊंगी। मेरा मानना है कि परीक्षा के पैटर्न को दोष देने की बजाय अगर हम अपनी
तैयारी पर ध्यान दें, तो ज्यादा उचित होगा। अगर हम यह कहते
हैं कि पैटर्न सही नहीं है, तो यह तो पल्ला झाड़ने वाली बात हुई। इस
बार जिन्हें 13वां रैंक मिला है निशांत, वे हिंदी माध्यम
के ही हैं, इसलिए यह कहना कि भाषा के कारण सफलता मिलने में परेशानी होती है, मेरी
समझ से सही नहीं होगा।
प्रश्नः एक बार फिर कुछ व्यत्तिफ़गत प्रश्नों की ओर लौटते हैं। आप
शारीरिक रूप से निःशत्तफ़ हैं और आपने इतनी बड़ी सफलता प्राप्त की है। लेकिन समाज
में ऐसे कई लोग हैं, जो निःशत्तफ़ता के कारण सफल नहीं हो पाते हैं। निश्चित रूप से इसके
लिए हमारा सिस्टम और हमारा समाज भी कसूरवार है। यह सब बदलने में तो वत्तफ़ लगेगा, ऐसे
में निजी तौर पर आप क्या सलाह देंगी?
उत्तरः जी मैं यही कहना चाहती हूं कि अगर ईश्वर ने किसी को निःशत्तफ़
बनाया है, तो उसे कोई ना कोई ऽूबी जरूर दी होगी। जरूरी यह है कि आप उस ऽूबी को
पहचानें और उसे तराशने, विकसित करने में जुट जायें। पूरी मेहनत
से अपने लक्ष्य को साधने में जुट जायें। जीवन में असफलता जैसी कोई चीज नहीं होती
है। लक्ष्य तक नहीं पहुंच जाने में जो बाधाएं आती हैं, उनसे
हमको नयी सीख ही मिलती है।
प्रश्नः आपको जीवन में किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
उत्तरः देखिए , मेरा ऐसा मानना है कि बुरी चीजों को
भूल जाना चाहिए और मैं ऐसा ही करती हूं। मैं यह मानती हूं कि अगर आपको जीवन में
सफल होना है, तो सकारात्मक दृष्टिकोण को अपनाना होगा। निगेटिविटी से कुछ नहीं होगा, इसलिए
बुरी बातों को भूल जाना चाहिए। आप यह कह सकते हैं कि अगर मैं आज जीवन में कुछ कर
पायी हूं, तो इसी सोच के साथ।
प्रश्नः कोई ऐसी बात या घटना जिसने आपको बहुत चोट पहुंचायी हो?
उत्तरः मैं अपने को लेकर बिलकुल भी संवेदनशील नहीं हूं, किसी
की बातों का बुरा नहीं मानती और बुरी बातों को भूल जाती हूं। कोई बात मैं दिल से
लगा कर नहीं रऽती इसलिए मुझे ऐसी कोई घटना याद नहीं है।
प्रश्नः निःशत्तफ़ता को लेकर तो आपका रवैया काफी सकारात्मक है। लेकिन, क्या
महिला होने के कारण आपको कभी चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
उत्तरः एक महिला होने के नाते मेरी यह सफलता ज्यादा बड़ी है, क्योंकि
हमारी सोसाइटी आज भी महिलाओं के प्रति संकुचित नजरिया रखती है। उसकी सोच यह है कि
यह लड़की है, इसे तो दूसरे के घर जाना है, इसे पढ़ा-लिखा कर
क्या फायदा? मुझे भी कई लोगों ने यह सलाह दी कि तुम यह सब क्यों कर रही हो, तुम
लड़की हो। लेकिन मेरे माता-पिता मेरे साथ थे। वे यह चाहते थे कि मैं कुछ करूं। वे
हमेशा मेरी प्रेरणा बने और मुझे प्रोत्साहित करते रहे। उन्होंने कभी भी मुझे यह
नहीं कहा कि तुम लड़की हो, इसलिए फलां चीज ना करो। पढ़ाई के
साथ-साथ मैंने खूब घूमा-फिरा, मौज-मस्ती की, पर
मेरे माता-पिता ने कभी रोक-टोक नहीं कि लड़कियों को ऐसा नहीं करना चाहिए। लेकिन
सबके साथ ऐसा नहीं है।
सच्चाई यह है कि आज भी हमारा समाज महिलाओं को दूसरे दरजे का समझता
है। लड़के ऐसी सोच रखते हैं कि वे हमसे बेहतर हैं, इसलिए हमें उनकी
बात सुननी चाहिए। अगर कोई लड़की अपनी राय रखती है या फिर फैसला लेती है, तो
उसके प्रति लोग गलत नजरिया रऽते हैं और उसे गलत लड़की करार देते हैं। कहने का आशय
यह है कि उसके प्रति लोग नकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं। यही कारण है कि आज भी
हमारे समाज में लड़कियों को जीवन में सफलता पाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है।
मैं खुशकिस्मत हूं कि मुझे यह सब नहीं झेलना पड़ा।
प्रश्नः महिलाओं के आगे बढ़ने की राह में एक बड़ा रोड़ा उनके प्रति होने
वाले अपराध हैं। कई बार तो यह डर इतना ज्यादा होता है कि लड़कियां पढ़ाई तक छोड़ देती
हैं। एक आइएएस अधिकारी के रूप में आप महिलाओं के खिलाफ अपराध किस तरह रोकेंगी?
उत्तरः मैं यह कहना चाहती हूं कि मैं जिस जिले में पदस्थापित रहूंगी, मेरी
प्राथमिकता यह होगी कि मैं महिलाओं की सुरक्षा के लिए सभी प्रशासनिक बंदोबस्त
करूं। उन्होंने सुरक्षा का एहसास करा सकूं, ताकि वे
स्वतंत्रता के साथ कहीं भी आ-जा सकें और शिक्षति हो सकें। क्योंकि जब तक सुरक्षा
नहीं होगी, कोई अपना विकास नहीं कर सकता है। जब आप सुरिक्षत होंगे, तो
अपनी जिंदगी जी पायेंगे और अपनी क्षमता का विस्तार भी कर सकेंगे। लेकिन, मैं
साथ में यह भी कहना चाहती हूं कि महिलाओं को प्रताड़ित करने के जो भी मामले मेरे
सामने आयेंगे, मैं उनकी तटस्थता के साथ जांच करूंगी, क्योंकि आजकल
फर्जी मामले भी सामने आते हैं। मैं सच का साथ दूंगी और जो प्रताड़ित होगा उसे न्याय
दिलाऊंगी।
प्रश्नः जीवन में कोई ऐसी बात जिसने आपको सबसे ज्यादा प्रेरित किया
हो?
उत्तरः अभी अचानक से मुझे ऐसी कोई घटना याद नहीं आ रही है। लेकिन मैं
आपको बताना चाहती हूं कि मैं छोटी-छोटी बातों से प्रेरणा लेती हूं। हर पल को सीऽने
का अवसर मानती हूं। सीऽने के लिए कोई बात छोटी नहीं होती। मैं यह मानती हूं इन्सान
को कर्म करना चाहिए, फल की चिंता नहीं करनी चाहिए। हमेशा सकारात्मक सोच रऽनी चाहिए। किसी
बात को जीवन-मरण का प्रश्न नहीं बनाना चाहिए। जो कुछ आपको मिलना होगा, वह
मिल कर रहेगा।
प्रश्नः जीवन में कोई ऐसा व्यत्तिफ़ जो आपका प्रेरणा स्रोत रहा हो?
उत्तरः ऐसे किसी एक व्यत्तिफ़ का नाम मैं आपको नहीं बता सकती। मैंने
जीवन में अच्छी चीजें किसी से भी सीऽने की कोशिश की है, फिर
चाहे वह एक रिक्शा वाला हो या फिर कोई महापुरुष या नेता। मैं यह मानती हूं कि हर
इन्सान में कोई ना कोई ऽूबी होती है, जरूरत इस बात की
है कि आप उससे वही बात सीऽें। अच्छी चीजों को लें, बाकी को छोड़
दें। मैंने स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी से कई बातें सीखी है, तो
रिक्शे वाले से भी कुछ ना कुछ अच्छा सीखा है।
ऐसी हैं इरा - मेरठ-दिल्ली में पढ़ाई मेरा परिवार उत्तर प्रदेश से है। मेरा जन्म मेरठ में हुआ है। 1995 में दिल्ली आने से पूर्व हमारा परिवार मेरठ में रहता था। मेरे पिता वैल्यूअर हैं और मां इंश्योरेंस कंपनी में काम करती हैं। परिवार में हम तीन लोग हैं। मेरी शिक्षा मेरठ और दिल्ली में हुई है। मैंने मेरठ के सोफिया गर्ल्स स्कूल से पहली से छठवीं तक की पढ़ाई की। वहां से दिल्ली आने के बाद दिल्ली के लोरेटो कॉन्वेंट स्कूल से 10वीं पास की। फिर धौला कुआं स्थित आर्मी पब्लिक स्कूल से 12वीं की पढ़ाई पूरी की। वर्ष 2006 में नेताजी सुभाष इंस्टीटड्ढूट ऑफ टेक्नोलॉजी, द्वारका से पढ़ाई की। वर्ष 2006 से वर्ष 2008 तक दिल्ली विश्वविद्यालय की फैकल्टी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज से एमबीए किया। फिर कैडबरी इंडिया में कस्टमर डेवलपमेंट मैनेजर के पद पर दो साल तक काम किया।
दुनिया घूमना चाहती हैं
मुझे पढ़ने का बहुत शौक है, इसलिए खाली समय
में किताबें पढ़ती हूं। मैं ज्यादातर अंग्रेजी की किताबें पढ़ती हूं और जे- ऑस्टिन
मेरे प्रिय लेखक हैं। इसके अलावा घूमने का भी बहुत शौक है, मैं
यह चाहती हूं पूरी दुनिया की सैर करूं। दोस्तों के साथ घूमना चाहती हूं। मेरे बहुत
सारे दोस्त हैं, उनसे मिलना चाहती हूं, उनके साथ समय
बिताना चाहती हूं। मुझे डांस और गानों का भी शौक है। मुझे हिंदी गाने खास तौर पर
पसंद हैं। लता मंगेशकर मेरी प्रिय गायिका हैं। मैं मानती हूं कि उनसे ऊपर कोई नहीं
है। मेरा प्रिय गाना दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे से हैः ना जाने मेरे दिल को
क्या हो गया, अभी तो यहीं था, कहीं खो गया--- इस गाने को लता जी और
कुमार शानू ने अपनी आवाज दी है।
फिल्में बहुत पसंद हैं
मैं फिल्में देखने की शौकीन हूं। खूब फिल्में देऽती हूं। मैं
ज्यादातर हॉलीवुड की फिल्में देऽती हूं।
हालांकि मैं बॉलीवुड की फिल्में भी देऽती हूं। लेकिन मेरा कोई पसंदीदा हीरो या
हीरोइन नहीं है। जो फिल्म अच्छी होती है मैं देख लेती हूं। मैंने इधर ह्यक्वीन“ण
और ह्यतनु वेड्स मनु रिटर्न“ण देखी है। मुझे खेल में उतनी रुचि नहीं है। क्रिकेट
कुछ खास पसंद नहीं है। लेकिन मैं फुटबॉल की शौकीन हूं। मैं फुटबॉल के कई मैच देखती
हूं।
अचार बनाना आता है
मुझे खाना पकाने का काफी शौक है। मैं किचन में काफी समय देती हूं। यहां तक कि घर में अचार वगैरह मैं ही डालती हूं। लेकिन अगर कोई मुझसे यह कहे कि तुम लड़की हो, इसलिए किचन में काम करो, तो मैं कतई कुछ नहीं बनाने वाली। लेकिन मजेदार बात यह है कि मुझे खुद खाने का कुछ ज्यादा शौक नहीं है। मुझे परिवार और दोस्तों के लिए पकाना अच्छा लगता है।