मैं जुनूनी डिबेटर हूं और नींद में भी डिबेट कर सकता हूं

- अर्नब गोस्वामी
अर्नब कहते हैं जिस क्षण राहुल गांधी ने मुझे इंटरव्यू दिया, यह
एकदम स्पष्ट हो गया कि यह व्यक्तित्वों की स्पर्द्धा हो गई है।
अर्नब गोस्वामी अपने प्रोग्राम में कई मुश्किल सवालों के स्पष्ट और सीधे
जवाब लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करते दिखते हैं। उग्र शैली वाले इस सेलेब्रिटी
इंटरव्यूअर के साथ डॉ- भारत अग्रवाल का
इंटरव्यू-
डॉ- अग्रवाल- अर्नब गोस्वामी का कोई सॉफ्रट पहलू भी है?
गोस्वामी- 6जी क्लास से मैं डिबेटर रहा हूं। मैं
तो केवल अपने जुनून, अपनेे शौक को ही आगे बढ़ा रहा हूं। ऐसा कुछ जिसका मैं हमेशा लुत्फ
उठाता रहा हूं। स्कूल और कॉलेज में जिस चीज से मैं थोड़ा-सा पैसा कमा लेता था, उसी
को मैंने आजीविका बना लिया। इसलिए मैं खुद को बहुत खुशकिस्मत मानता हूं कि मैं
लगातार 20 साल बाद भी यही कर रहा हूं। असल में मैं बहुत जुनूनी डिबेटर हूं और
नींद में भी डिबेट कर सकता हूं।
डॉ- अग्रवाल- आपको यह स्किल कहां से मिली, मां
से या पिता से?
गोस्वामी- मुझे लगता है सब तरफ से। मैं स्कूल के दिनों में डिबेट में भाग लेता था। मैं दिल्ली में माउंट सेंट मेरी और फिर सेंट्रल स्कूल में पढ़ता था। मैं सेंट्रल स्कूल डिबेटिंग कॉम्पीटिशन में भाग लेता था। हम इटारसी, जबलपुर से भोपाल जाया करते थे। वहां नेशनल कॉम्पीटिशन होता था। मैंने जिंदगी में जो बेस्ट डिबेट देखी वह दून स्कूल के
खिलाफ नहीं, सेंट्रल स्कूल
के खिलाफ देखी हैं। इसलिए मैं सोचता हूं कि सेंट्रल स्कूल की डिबेट में ही मैंने
यह स्किल हासिल की है। सरकारी शिक्षा ने मेरी बहुत मदद की।
डॉ- अग्रवाल- आपका परिवार सोशल मीडिया के जहरीले कमेंट्स को कैसे
लेता है?
गोस्वामी- कुछ भी हमेशा नहीं बना रहता। सफलता व असफलता दोनों को
देऽने का यह दार्शनिक तरीका है। भारत, सफलता हमेशा
नहीं रहेगी, इसलिए इससे लगाव मत रखो , विफलता हमेशा
नहीं रहेगी, इसलिए हताश मत हो। लोग आपको देखेंगे तो क्रिटिसिज्म तो होगी। कुछ लोग
नापसंद करेंगे। आप तानाशाह होकर यह नहीं कह सकते कि मैं चाहता हूं हर कोई मुझे
पसंद करे। फिर जर्नलिस्ट और फिल्म स्टार में फर्क ही क्या बचेगा।
डॉ- अग्रवाल- क्या कभी अर्नब गोस्वामी नेता के रूप में दिखाई देंगे।
एमजे अकबर, आशुतोष, अरुण शौरी आदि के नक्शे कदम पर चलेंगे?
गोस्वामी- एक बात मैं पूरे आत्मविश्वास से कह सकता हूं कि अंतिम दिन
तक मैं जर्नलिस्ट ही रहूंगा। मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूं कि मैं कभी राजनीति
में नहीं आऊंगा। मैं सिर्फ जर्नलिज्म करना चाहता हूं। मेरा एक एम्बीशन है कि हम, भारतीय
मीडिया के सारे लोग किसी दिन कुछ ऐसा करें कि भारतीय मीडिया इंटरनेशनल हो जाए।
मुझे लगता है कि अगला बीबीसी या सीएनएन भारत में बनाया जा सकता है। यह मेरी हसरत
है। मैं राजनीति में कभी नहीं उतरूंगा। न तो आज और न 40
साल बाद।
डॉ- अग्रवाल- कुछ समय से मीडिया ट्रायल यानी मीडिया द्वारा मुकदमा
चलाए जाने की बात की जाती है। आपकी राय में ज्यूडिशियल केसेस की तुलना में यह कहां
ठहरता है?
गोस्वामी- मेरा मानना है कि दोनों में कोई तुलना नहीं हो सकती। हमने जिन भी घोटालों का पर्दाफाश किया है- कॉमनवेल्थ, 2-जी, डेवस-इसरो, कारगिल मुनाफा, आदर्श, एयरसेल-मैक्सिस, ललितगेट और अब यह पूरा माल्यागेट_ ये सारे मामलों का खुलासा उस हद तक किया गया कि वे अदालत में पहुंच पाएंगे। जब वे कोर्ट में पहुंच गए तो हम वहां पर समांतर दबाव नहीं डालते। जो भी हो, मैं मानता हूं कि अदालतें इतनी बुद्धिमान हैं कि वे अपना नतीजा निकाल सकती हैं। हालांकि, हमने यह सुनिश्चित करने में बहुत ही सक्रिय भूमिका निभाई है कि इनमें से कई मुद्दे अदालत के सामने पहुंच जाएं। पहले भी कोर्ट ने खुद ये कहा है कि मीडिया ने फैक्ट्स को उनके सामने लाने का अच्छा काम किया है। मैं नहीं सोचता कि मीडिया के बिना 2-जी या कोयला आवंटन जैसे मामलों में कोई जस्टिस होता। वास्तविकता तो ये है कि कोयला (आवंटन) मामले में फैक्ट्स पाए गए, क्योंकि उस समय हम सरकार के पीछे पड़े थे। इसलिए मैं सोचता हूं कि इसे मीडिया ट्रायल नहीं कहना चाहिए। ये तो सीरियस जर्नलिज्म है, गंभीर जांच-पड़ताल करने वाली पत्रकारिता है। जो लोग इससे प्रभावित होते हैं, वे इसे मीडिया ट्रायल कहते हैं। विजय माल्या और सुरेश कलमाड़ी ने इसे मीडिया ट्रायल कहा था। उन्होंने मुझे मुकदमे की, कोर्ट में ले जाने और जेल में बंद करने की धमकी दी थी। मेरे लिए तो यह मीडिया ट्रायल नहीं है, मैं तो वास्तव में अपना काम कर रहा हूं।