बवाल-ए-जान में बदल रहा तेजी से मोबाइल

2018-10-04 0

विशेषज्ञों का कहना है साइबर अपराधों के बढ़ने की वजह रोज नई-नई तकनीकों का बाजार में आना है। दिल्ली पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार गत वर्ष में सैलफोन और इंटरनेट से संबंधित अपराधों में 250 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिए, मोबाइल फोन को ही लें। मोबाइल फोन की कार्य प्रणाली विद्युत चुंबकीय तरंगों पर आधारित होती है। मोबाइल फोन के हैंडसैट के स्पीकर और माइक्रोफोन बहुत छोटे होते हैं, लेकिन होते हैं बहुत सक्षम। इसमें लगी बैटरी छोटी होते हुए भी बहुत कारगर होती है। इस बैटरी में संचित विद्युत की मदद से घंटों हैंडसेट का प्रयोग किया जा सकता है। मोबाइल छोटे-मोटे संदेश भेजने और पाने का काम तो बखुबी करता ही है, इससे बहुत सी जानकारी भी प्राप्त की जा सकती है, जैसे कि इसका उपयोग टेलीफोन डायरेक्ट्री की तरह भी किया जा सकता है जिसमें आप अपने परिचितों के पते और टेलीफोन नंबर रख  सकते हैं। मोबाइल फोन पर कई तरह के खेल भी खेले  जा सकते हैं।

इन सबसे बढ़ कर है मोबाइल फोन पर उपलब्ध इंटरनेट सुविधा। इसके लिए जरूरी है कि मोबाइल फोन में यह सब प्रदान करने की क्षमता मौजूद हो, साथ ही मोबाइल फोन की सुविधा प्रदान करने वाली कंपनी ये सब सुविधाएं उपलब्ध कराने में सक्षम हो। यह एक कैलकुलेटर की तरह भी काम करता है। बल्कि मोबाइल फोन में ‘ब्लू टूथ’ नामक ऐसी तकनीक है जिसके जरिए 15 मीटर के दायरे में संदेश खुद-ब-खुद फोन में आ जाते हैं और इसके लिए किसी इंटरनेट सेवा प्रदाता की जरूरत नहीं होती। फिलहाल भारत में मोबाइल फोन सेवा के लिए जीएसएम और डब्लूएलएल तकनीकों का ही इस्तेमाल किया जाता है। तीसरी पीढ़ी के मोबाइल फोन और नेटवर्क पहले से कहीं अधिक गतिशील होते हैं, साथ ही वृहत् बैंडविड्थ होने के कारण इनके जरिए आवाज, आंकड़े, वीडियो पल भर में इधर से उधर भेजे जा सकते हैं।

मोबाइल फोन पर मिलने वाली सुविधाओं में से सबसे प्रचलित हो रही महत्वपूर्ण सुविधा है- एसएमएस अर्थात् शार्ट मैसेज सर्विस जिसमें टैक्स्ट मैटर रूप में लघु संदेश को एक मोबाइल फोन से दूसरे मोबाइल फोन पर भेजा और प्राप्त किया जा सकता है। एसएमएस के बाद आया ईएमएस अर्थात् एन्हांस्ड मैसेजिंग सर्विस। इस सेवा के जरिए संदेशों का आदान प्रदान मात्र कुछ शब्दों की परिधि में प्रतिबंधित न रहकर चित्रें, कर्णप्रिय धुनों, एनिमेशन के रूप में विस्तार पा चुका है। और इसके बाद आ गई है एक और नई सेवा एमएमएस। मल्टीमीडिया मैसेजिंग सर्विस अर्थात् एमएमएस में लिखित  संदेश, संगीत और चित्रें का संयुत्तफ़ आदान-प्रदान मोबाइल फोन पर संभव है।


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एक तरफ जहां मोबाइल से इतने फायदे हैं वहीं इसके कई नुकसान भी हैं। मसलन मोबाइल से पोर्नाेगाफी का प्रचार-प्रसार बढ़ रहा है। एमएमएस और वीडियो क्लिपिंग के जरिए अश्लीलता का कारोबार किया जा रहा है। पश्चिम में तो मां-बाप मोबाइल से फैल रहे पोर्नाेग्राफी के कारोबार से पहले से ही चिंतित हैं। दुनिया में आज मोबाइल के जरिए चार अरब डालर से ज्यादा पोर्नाेग्राफी का कारोबार हो रहा है। जिस एमएमएस तकनीक ने मोबाइल फोन को हाईटेक बनाया था वही अब लोगों का सिरदर्द बनती जा रही है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, एमएमएस अर्थात मल्टीमीडिया मैसेजिंग सर्विस के जरिए मैसेज के साथ टेक्स्ट, आवाज, चित्र और वीडियो फिल्म भी भेजी या प्राप्त की जा सकती है। एमएमएस फोन के जरिए फोटोग्राफ, पिक्चर, स्क्रीन सेवर, ग्रीटिंग कार्ड आदि भी भेजे जा सकते हैं। इसके एक धंधा जो तेजी से पनप रहा है वह है ब्लैकमेलिंग का।

अपराध की दुनिया में भी मोबाइल का जमकर इस्तेमाल हो रहा है। कुछ साल पहलेे क्रिकेट की सट्टेबाजी के धंधेबाजी का पर्दाफाश, मोबाइल के जरिए ही हुआ था। आजकल बड़े-बड़े अपराधी जेल में बंद रहते हुए भी मोबाइल के जरिए अपनी आपराधिक गतिविधियों को चलाते रहते हैं। मोबाइल के जरिए अपराधी अपने शिकार से संपर्क साधते हैं तो वहीं आतंकवादी मोबाइल के जरिए अपने मॉडड्ढूल्स को निर्देशित करते हैं बल्कि पिछले दिनों एक ऐसी भी युत्तिफ़ सामने आई है जिसके जरिए आतंकवादी विस्फोट भी कर सकते हैं। मोबाइल आज हमारी निजता का हनन तो कर ही रहा है, इसके कई ऐसे दुरुपयोग भी सामने आ रहे हैं जिनकी पहले कभी कल्पना भी नहीं की गई थी। उदाहरण के लिए, पिछले दिनों मोबाइल फोन इम्तिहान में नकल करने के साधन के रूप में भी सामने आया है।

दिल्ली में एम्स द्वारा आयोजित ऑल इंडिया पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल एंटैंªस परीक्षा में नकल के लिए अपनाई गई तकनीक में मोबाइल फोन के साथ डॉक्यू-पेन नामक युत्तिफ़ का भी प्रयोग किया गया जिसकी मदद से पहले प्रतियोगियों ने प्रश्न पत्र को स्कैन किया। स्कैनिंग के समय इसे किसी कंप्यूटर से जोड़ने की भी जरूरत नहीं होती। इसके बाद काम शुरू होता है मोबाइल फोन का। स्कैन किए गए प्रश्न पत्रें को ब्लू टूथ तकनीक वाले मोबाइल फोनों के जरिए तथाकथित ‘विशेषज्ञों’ के पास भेजा गया। उन लोगों ने उन प्रश्न पत्रें को हल करके एसएमएस द्वारा परीक्षार्थियों तक पहुंचा दिया। वैसे तो परीक्षा हॉल में मोबाइल लेकर जाना प्रतिबंधित है लेकिन आज हमारे देश की कानून व्यवस्था की जो स्थिति है उसमें सब कुछ संभव है।

क्या आपके मोबाइल फोन का बिल अचानक ही दो-तीन गुना हो गया है? इसका मतलब है कि आप ‘मोबाइल क्लोनिंग’ का शिकार हो गए हैं। इसे सैल फोन पाइरेसी के नाम से भी जाना जाता है। दशकों से यह दुनिया भर में थी लेकिन इसने भारत में हाल के वर्षों में ही पदार्पण किया है। मोबाइल फोन आज हमारे दैनिक जीवन का जरूरी हिस्सा बन चुके हैं। एक ओर हैंडसैट की घटती कीमतों और फोन की गिरती दरों के कारण जहां भारत में मोबाइल फोन का बाजार तेजी से बढ़ा है, वहीं इनकी क्लोनिंग का ऽतरा भी बढ़ा है चाहे वह जीएसएम (ग्लोबल सिस्टम फॉर मोबाइल कम्युनिकेशन) हो या सी डी एम ए (कोड डिवीजन मल्टीपिल एक्सेस) हो। इसमें सबसे दुऽदाई बात यह है कि इसे रोकने के लिए हमारे पास खास कुछ नहीं है। मोबाइल क्लोनिंग का पहला अपराध जनवरी 2005 में सामने आया था जब दिल्ली पुलिस ने 20 सैल फोनों, एक लैपटॉप, एक सिम स्कैनर और राइटर के साथ एक आदमी को पकड़ा था। कुछ समय बाद ऐसा ही एक रैकेट मुंबई में पकड़ा गया।

अभी तक हैकर्स सिर्फ कंप्यूटरों को ही हैक करते थे, पर अब उनका जाल मोबाइल फोन पर भी फैलता जा रहा है। ब्रिटेन में किए गए शोध में इस बारे में खुलासा हुआ है। मोबाइल उद्योग के विशेषज्ञ कहते हैं कि नई टेक्नोलॉजी वाले अगली पीढ़ी के मोबाइल फोनों को हैकरों से काफी ऽतरा है। मोबाइल हैकर्स का जाल इस तरह फैल रहा है कि आपको पता भी नहीं चलेगा कि कब आपका मोबाइल फोन हैकिंग का शिकार हो गया।


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अब मोबाइल फोन पर वाइरस भी हमला बोल रहे हैं। केवल 2006 में ही 70 मोबाइल फोन वाइरसों की पहचान हुई है। अधिकांश मोबाइल वाइरस ब्लू टूथ कनेक्शन के जरिए फैलते हैं। ऐसा ही एक वाइरस है कॉमवैरियर। इस से संक्रमित मोबाइल फोन में, उसकी एडैªस बुक में मौजूद सभी नंबरों पर संदेश एवं पिक्चर मैसेज अपने आप ही चले जाते हैं। फोन के मालिक को इसका पता भारी-भरकम बिल को देख  कर ही चल पाता है हालांकि यह वाइरस मोबाइल को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाता।

अंग्रेजी में एक कहावत है ‘नो लॉ नो क्राइम’, लेकिन जब कानून भी हो और क्राइम भी, इसके बावजूद अपराधी कानून की पकड़ में न आए तो क्या हो? मोबाइल से जुड़े अपराधों की भी कुछ ऐसी ही स्थिति है। साइबर अपराध कुछ इस तेजी से बढ़े हैं कि 2000 में बना सूचना प्रौद्योगिकी कानून प्रभावहीन हो चुका है।

मोबाइल सेवा के बढ़ते दुरुपयोग से आम लोगों के एकांतता के अधिकार पर हमला हो रहा है। इससे देश की सुरक्षा और कानून व्यवस्था को गंभीर खतरा है। इनके गलत इस्तेमाल की प्रतिध्वनि सर्वाेच्च न्यायालय तक में सुनायी पड़ी है जब यह सामने आया कि उत्तर प्रदेश, बिहार तथा महाराष्ट्र आदि राज्यों में जेलों में बंद माफिया इन्हीं फोनों के जरिए अपराध करा रहे हैं। मोबाइल फोन द्वारा टैक्स वसूलने, अपहरण कराके फिरौती मांगने और न देने पर हत्या कराने के मामले तो आम हो चुके हैं। इनके प्रयोग से स्वास्थ्य पर होने वाले संघातिक दुष्परिणामों ने इनके औचित्य पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। लेकिन वर्तमान कानून में इसको नियंत्रित करने के लिए उपयुत्तफ़ प्रावधान ही नहीं है।

सच तो यह है कि इस समस्या का एकमात्र हल लोगों में मोबाइल संबंधी जागरूकता लाना है। अब समय आ गया है जब साइबर और समाज को निकट लाया जाए। लोगों को मोबाइल फोन के उपयोग के दुष्परिणामों से अवगत कराया जाए और इसके अनावश्यक प्रयोग को हतोत्साहित किया जाए। चूंकि अब बच्चे जल्दी बड़े होने लगे हैं, वे केवल घर परिवार के न रह कर ग्लोबल हो गए हैं, जरूरी हो गया है कि बालिग होने की नई परिभाषा बनाई जाए। साइबर अपराधियों की चपेट में आने से बचने के लिए लोगों में इस तकनीक के नकारात्मक पक्षों की जानकारी का प्रचार प्रसार किया जाए। साइबर अपराध का दायरा भारत ही नहीं पूरी दुनिया में फैल रहा है। यह जरूरी नहीं कि अपराधी देश में ही हों। मोबाइल तकनीक ऐसी तकनीक है कि इसके जरिए किया जाने वाला अपराध मिनटों में पूरी दुनिया में फैल जाता है इसलिए साइबर अपराधों के दुष्परिणाम ज्यादा घातक हैं। इनसे बचने के लिए मौजूदा साइबर कानून के दायरे को ज्यादा व्यापक बनाए जाने की जरूरत है साथ ही तकनीक बनाने वाली और सेवा प्रदाता कंपनियों को भी अपनी सामाजिक जिम्मेदारी निभानी होगी।

कुल मिलाकर बात अपने आप अपनी सुरक्षा की है।  


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