भारत से नेपाल को दूर करने करने के लिए चीन की गहरी चाल
चीन ने भारत और नेपाल के बीच में दूरी पैदा करने के लिए एक और गहरी
चाल चली है, जो भारत के लिए किसी झटके से कम नहीं है।
नेपाल का भारत पर से निर्भरता कम करने के प्रयासों में चीन ने नेपाल
को अपने चार बंदरगाहों और तीन लैंड पोर्टों का इस्तेमाल करने की इजाजत दे दी है।
माना जा रहा है कि चीन का यह दांव अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्य के लिए जमीन से घिरे
नेपाल की भारत पर व्यापारिक निर्भरता कम करने की कोशिशों के मद्देनजर है। चीन के
इस दांव से स्पष्ट है कि नेपाल का झुकाव चीन की ओर और बढ़ जाएगा।
विदेशी मंत्रलय के सूत्रें के मुताबिक, नेपाल चीन के शेन्जेन, लिआनयुंगांग, झांजियांग और टियांजिन तक पहुंचने में सक्षम हो जाएगा। इनमें से तियानजिन बंदरगाह नेपाल की सीमा से सबसे नजदीक बंदरगाह है, जो करीब 3,000 किमी की दूरी पर स्थित है। ठीक इसी तरह से चीन ने नेपाल को लंझाऊ, ल्हासा और शीगाट्स लैंड पोर्टों (ड्राई पोर्ट्स) के इस्तेमाल करने की भी अनुमति दे दी।
चीन की यह पेशकश अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए नेपाल के लिए वैकल्पिक मार्ग मुहैया कराएंगे। इस नये अरैंजमेंट के अंतर्गत चीनी अधिकारी तिब्बत में शिगाट्से के रास्ते नेपाल सामान लेकर जा रहे ट्रकों और कंटेनरों को परमिट देंगे। माना जा रहा है कि इस सौदे ने नेपाल के लिए कारोबार के नए दरवाजे खोल दिए हैं। ऽास बात है कि अब तक नेपाल तीसरे देशों से व्यापार के लिए भारतीय बंदरगाहों पर पूरी तरह निर्भर था।
चीन के साथ ट्रांजिट एंड ट्रांसपोर्ट एग्रीमेंट (टीटीए) के प्रोटोकॉल
को अंतिम रूप देने के लिए नेपाली और चीनी अधिकारियों की बैठक में नेपाल के
प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करते हुए उद्योग, वाणिज्य और
आपूर्ति मंत्रलय के संयुत्तफ़ सचिव रविशंकर सैंजु ने कहा कि तीसरे देश के साथ
कारोबार के लिए नेपाली कारोबारियों को बंदरगाहों तक पहुंचने के लिए रेल या सड़क
किसी भी मार्ग का इस्तेमाल करने की इजाजत दी जाएगी।
अधिकारियों ने कहा कि प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली की चीन यात्र के दौरान मार्च 2016 में चीन के साथ ट्रांजिट और ट्रांसपोर्ट समझौते पर हस्ताक्षर किए गये थे, जो अब प्रोटोकॉल का आदान-प्रदान होने के बाद लागू हो जाएगा। गौरतलब है कि 2015 में मधेसी आंदोलन ने नेपाल को चीन के साथ व्यापारिक संबंधों का पता लगाने और भारत पर अपनी दीर्घकालिक निर्भरता को कम करने के लिए मजबूर कर दिया था। 2015 में मधेसी आंदोलन के दौरान नेपाल में रोजमर्रा की चीजों की आपूर्ति भी प्रभावित हुई थी।