ईरान के तेल पर भारत की निर्भरता कितनी?

2018-10-05 0

भारत और अमरीका के बीच 2$2 नाम वाली पहली बड़ी बातचीत खत्म तो हुई लेकिन शायद सबसे अहम मुद्दे पर परिणाम नहीं निकला। मामला है भारत का ईरान से कच्चे तेल का आयात। कच्चा तेल या क्रूड ऑयल आयात करने वाले दुनिया के शीर्ष देशों में भारत भी है।

सऊदी अरब, इराक, नाइजीरिया और वेनेजुएला के आलावा भारत में करीब 12% कच्चा तेल सीधे ईरान से आता है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले वर्ष भारत ने ईरान से करीब सात अरब डॉलर के कच्चे तेल का आयात किया था। लेकिन पिछले कुछ दिनों से भारत पर जबरदस्त अमरीकी दबाव है कि वो ईरान से कच्चा तेल आयत करना बंद करे।2018 के मई महीने में अमरीका ने ईरान पर दोबारा प्रतिबंध लगाने के अलावा एक नया फरमान जारी कर कहा था कि भारत, चीन और पाकिस्तान समेत एशिया के देश ईरान से तेल आयात बंद कर दें।


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दिल्ली में अमरीका के विदेश मंत्री माइकपोम्पियो ने कहा, ‘दूसरे देशों की तरह हमने भारत से भी कहा है कि चार नवंबर से ईरान से कच्चे तेल के निर्यात पर प्रतिबंध लग जाएंगे। उन मामलों पर हम आगे चलकर गौर करेंगे जिनको इन प्रतिबंधों में छूट दी जाएगी। लेकिन फिलहाल हमारी उम्मीद है कि हर देश ईरान से खरीदने वाले क्च्चे तेल की मात्र को जीरो (शून्य) तक ले आएँगे।’

हालांकि भारत ने लगातार कहा है कि वे इस मामले पर ‘बिना किसी दबाव फैसला लेंगे, लेकिन आधिकारिक अमरीकी बयानों के चलते भारत की दुविधाएं बढ़ गई हैं। तेल मामलों के जानकार और फिलहाल भाजपा सदस्य नरेंद्र तनेजा मानते हैं कि, चीजें उतनी सरल नहीं हैं जितनी दिखती हैं।’

उन्होंने कहा, ‘ईरान पर लगाए गए पुराने प्रतिबंधों और हाल के प्रतिबंध में फर्क है। पुराने प्रतिबंध बहुत से देशों ने मिल-जुल कर लगाए थे जबकि इस बार यूरोपीय संघ जैसे बड़े ब्लॉक इसमें शामिल नहीं हैं। इस बार अमरीका के एक तरफा प्रतिबंध हैं। हालांकि अमरीका और भारत के सामरिक संबंधों को देखते हुए थोड़ी दुविधा होना लाजमी है। ‘भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक इराक और सऊदी अरब के बाद भारत को तेल सप्लाई करने के मामले में ईरान का नंबर आता है।

दूसरी अहम बात ये है कि कच्चे तेल को ईरान से भारत लाने की कीमत दूसरे देशों के मुकाबले कम है और अरब जैसे खाड़ी देशों के मुकाबले ईरान भुगतान के मामले में ज्यादा बड़ी समय-सीमा देता है।

तीसरा, भारत और ईरान में तेल की कीमतों अदा करने का जरिए आसान है और हाल में भारत ने एक ईरानी बैंक को मुंबई में अपनी ब्रांच खोलने की इजाजत भी दे दी है।

चौथा, अपने सामरिक हितों के मद्देनजर भारत ने लाखो  अमरीकी डॉलर ईरान के चाबहार बंदरगाह में निवेश किए हैं।

व्यापार बढ़ाने के अलावा इसका उद्देश्य पड़ोसी अफगानिस्तान में व्यापार का खुला रास्ता भी है। ईरान के पास मौजूद विशाल प्राकृतिक गैस भंडार और भारत में इसकी बढ़ती जरूरतें भी फैक्टर हैं, तो भारत और ईरान के बीच दोस्ती के मुख्य रूप से दो आधार हैं। एक, भारत की ऊर्जा जरूरतें हैं और दूसरा ईरान के बाद दुनिया में सबसे ज्यादा शिया मुस्लिम भारत में होना। वैसे मुंबई में कुछ महीने पहले पत्रकारों से बात करते हुए भारत के पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने किसी भी दबाव से इनकार किया था।

उन्होंने कहा था, ‘हमें इस बात का एहसास है कि तेल की आपूर्ति के लिए कई स्त्रेत होने चाहिए। इसके बाद की सभी चीजें अंतर्राष्ट्रीय राजनीति पर छोड़ देनी चाहिए। हम सदैव अपना हित देखेंगे। जब भी ईरान मामले पर कोई फैसला होगा, आप लोगों को जरूर बताया जाएगा’।

हालांकि जब से अमरीका के ट्रंप प्रशासन ने ईरान से तेल आयात करने पर पूर्ण प्रतिबंध की बात कही है, तब से अपुष्ट खबरें आईं हैं कि भारत ने अपनी पेट्रोलियम रिफाइनरियों से दूसरे इंतजाम के लिए तैयार रहने को भी कह दिया है।

उधर नए अमरीकी प्रतिबंधों ने ईरान को भी परेशान कर रखा  है। साल की शुरुआत में ईरानी रियाल की कीमत डॉलर की तुलना आधी हो चुकी थी। कुछ महीने पहले ईरान में वो हुआ जो पिछले कुछ सालों से नहीं हुआ था। सरकार के खिलाफ बड़ी तादाद में लोग तेहरान की सड़कों पर उतरे थे। तेल निर्यातक देशों के संगठन ओपेक ने कुछ महीने पहले तेल उत्पादन बढ़ाने का फैसला किया था और अमरीका के समर्थन वाला ये कदम ईरान को और परेशान करने वाला है। तीखे  अमरीकी रुख  और ईरान की आर्थिक मुश्किलों के चलते वो तेल का उत्पादन बढ़ाने की स्थिति में नहीं है। लेकिन गोवा यूनिवर्सिटी के अंतर्राष्ट्रीय सम्बंध विभाग में पश्चिम एशिया मामलों के जानकार प्रोफेसर राहुल त्रिपाठी को लगता है, ‘दोनों देशों के बीच तेल के व्यापार से ज्यादा का रिश्ता है। ‘उनके मुताबिक, ‘व्यापार के अलावा दोनों देशों में सांस्कृतिक और धार्मिक घनिष्ठता रही है। अर्थशास्त्र जरूरी है और जाहिर तौर पर इसमें तेल की सप्लाई का बड़ा महत्व है, लेकिन तेल ही सब कुछ नहीं।’  



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