दत्तक प्रक्रिया के लिए इन बातों का ध्यान रखना आवश्यक!

गोद लेने के लिए हिंदू कानून अलग है और मुस्लिम, ईसाई, पारसी और यहूदी कानून अलग है। गोद लेने के कानूनों में 2015 में कुछ संशोधन किए गए हैं। गोद लेते हुए यह ध्यान रऽना जरूरी है कि यह किसी नर्सिंग होम, अस्पताल या गैर-मान्यता प्राप्त संस्थाओं से न हो, वरना दत्तक प्रक्रिया को गैर-कानूनी माना जा सकता है।
कुछ साल पहले दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट में एक बच्चे के लिए दो
दावेदार सामने आए। एक थे बच्चे के जैविक माता-पिता, जो बच्चे के
जन्म के वत्तफ़ विवाहित नहीं थे। बदनामी के डर से बच्चे को गोद दे दिया था। अब
शादी के बाद बच्चे को वापस मांगने लगे। गोद लेने वाले रिश्तेदारों ने मना कर दिया।
पर अदालत ने असली माता-पिता को बच्चा सौंपने का आदेश दिया, क्योंकि
गोद लेने की प्रक्रिया कानूनी तौर पर पूरी नहीं की गई थी। भारत में गोद लेने का
नियम 1956 में बना लिया था। यह हिंदू अडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट के नाम से
जाना जाता है।
पर्याप्त शर्तों का पालन करके ही बच्चे को गोद लें तो अच्छा है, वरना
कभी भी गोद लेना अवैध हो सकता है। गोद लेने की प्रक्रिया संक्षेप में इस तरह है।
यह रजिस्टर्ड कानूनी प्रक्रिया है। गोद की प्रक्रिया पूरी करने के लिए एक आयोजन
होता है। इसमें दोनों पक्ष गोद लेने वाला तथा जिससे गोद लिया जा रहा हो, इलाके
के सब-रजिस्ट्रार के सामने पेश होते हैं। फिर स्टाम्प पेपर पर डीड तैयार की जाती
है। डीड पर बच्चा गोद लेने वालों के फोटो लगते हैं। साथ ही दो गवाहों के भी
हस्ताक्षर होते हैं। डीड पर सब रजिस्ट्रार भी हस्ताक्षर करते हैं। यह रिकॉर्ड में
रजिस्टर्ड कर लिया जाता है। यदि बच्चा अनाथालय से लिया है तो जैविक माता-पिता के
स्थान पर अनाथालय का नाम लिऽना होता है। जब बच्चे को गोद लिया जाता है तो बच्चे के
नाम पर मौजूदा संपत्ति भी उसके साथ चली जाती है (यानी यह बच्चे की ही रहेगी)। गोद
देने वाले के यहां से बच्चे के सभी कानूनी हक ऽत्म हो जाते हैं।