निशानेबाज, सौरभ चौधारी पढ़ाई से बचने के लिए सीखी निशानेबाजी

2018-10-05 0

मेरठ के कलीना गांव के रहने वाले सौरभ का पढ़ाई में बहुत मन नहीं लगता था। गणित के सवाल तो उनके सिर के ऊपर से ही निकल जाते थे। पढ़ाई से ज्यादा उन्हें खेल पसंद था। हिंडन नदी के किनारे बसा उनका गांव कलीना मेरठ सिटी से करीब तीस किलोमीटर की दूरी पर है। यहां करीब पांच सौ परिवार रहते हैं। आबादी है लगभग चार हजार। ज्यादातर लोगों का गुजारा खेती पर निर्भर है। दिलचस्प बात यह है कि यह गांव यूपी के सबसे अधिक साक्षरता वाले गांव में शुमार है। यानी यहां के लोगों में शिक्षा को लेकर काफी जागरूकता है।


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शुरुआत में तो वह बिना किसी को बताए निशानेबाजी सीखने जाते थे, पर बाद में उन्होंने घरवालों को बता दिया कि वह खेल में ही अपना करियर बनाना चाहते हैं। पिताजी को भी समझ में आ गया था कि बेटे पर पढ़ाई के लिए दबाव डालना बेकार है। इसलिए उन्होंने उसे निशानेबाजी में आगे बढ़ने दिया। घरवालों ने उनका पूरा साथ दिया। नहीं, तो वह कभी इस मुकाम पर नहीं पहुंच पाते।

दिलचस्प बात यह थी कि उनके परिवार में कभी कोई खेल में नहीं रहा। किसी ने निशानेबाजी नहीं सीखी । घरवालों को भी इस बारे में कोई खास जानकारी नहीं थी। पर बेटे का उत्साह और लगन देखकर उसे आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। 13 साल की उम्र से सौरभ निशानेबाजी सीखने लगे। साल 2015 में वह बड़ौत के करीब बिनौली में वीर शाहमल राइफल क्लब में ट्रेनिंग लेने पहुंचे। वहां वह रोजाना कम से कम आठ घंटे अभ्यास किया करते थे। शुरुआत में उनके पास अपनी बंदूक नहीं थी। कोच उनकी मेहनत से बहुत प्रभावित थे। इसलिए उन्होंने अपनी बंदूक उन्हें दे दी। सौरभ ने इसी बंदूक से सीऽकर राज्य स्तर की कई प्रतियोगिताएं जीतीं। अब सबको यकीन हो गया कि यह लड़का जरूर कामयाब होगा। इसलिए घरवालों ने उन्हें नई गन खरीदकर दी। इसकी कीमत थी एक लाख 75 हजार रुपये। नई बंदूक पाकर उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। निशानेबाजी के साथ ही उन्होंने पढ़ाई जारी रखी । इस समय वह 11वीं कक्षा में हैं। बड़े भाई नितिन बताते हैं, सौरभ के अंदर निशानेबाजी को लेकर एक जुनून था। वह ट्रेनिंग में इतना व्यस्त हो जाता था कि खाना-पीना भी भूल जाता था। यह जुनून ही उसकी ताकत है।

पिछले तीन साल में उन्होंने कड़ी मेहनत की। ज्यादातर वत्तफ़ नेशनल और इंटरनेशनल कैंप में बीता। पिछले साल एशियाई खेलों के लिए चुने जाने के बाद सौरभ कठिन अभ्यास में जुट गए। उन्होंने अपने घर के कमरे में ही छोटी शूटिंग रेंज बना ली और वहां दिन-रात अभ्यास करने लगे। इस दौरान उन्होंने लोगों से मिलना-जुलना बंद कर दिया। ट्रेनिंग इंस्टीटड्ढूट में उनकी पहचान एक ऐसे खिलाड़ी की रही, जो अपने काम से काम रखने में यकीन रखता था। कोच जसपाल राणा कहते हैं, सौरभ बहुत ही शांत लड़का है। वह कम बोलता है। मोबाइल फोन से दूर रहता है। यही उसकी खूबी है। अपनी इन्हीं आदतों की वजह से उसने तीन साल के अंदर इतनी बड़ी कामयाबी हासिल की।

टाइम को लेकर भी वह हमेशा से गंभीर रहे। ट्रेनिंग के दौरान वह हमेशा प्रैक्टिस शुरू होने से पहले शूटिंग रेंज में पहुंच जाते थे। इस वजह से उनके कोच बहुत खुश रहते थे। पिछले साल दिसंबर में उन्होंने यूथ ओलंपिक खेलों के लिए क्वालिफाई किया और गोल्ड मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया। 10वीं एशिया यूथ ओलंपिक गेम्स में भी उन्होंने जूनियर वर्ग में विश्व रिकॉर्ड बनाया। सौरभ कहते हैं, जीत-हार को लेकर मैंने कभी दबाव महसूस नहीं किया। मैं हमेशा मन से खेला, बिना चिंता किए।

जकार्ता में चल रहे एशियाई खेलों में उन्होंने गोल्ड मेडल अपने नाम किया। एशियन गेम्स में गोल्ड मेडल जीतने वाले वह सबसे युवा भारतीय खिलाड़ी हैं। 


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