चीनी सेहत के लिए कितना नुकसानदेह है?

क्या वाकई चीनी आप की सेहत के लिए खराब है? आज से हजारों
साल पहले हमारे शिकारी पूर्वजों को चीनी या मीठा गाहे-बगाहे ही मिलता था। जब फलों
का सीजन होता था, उन दिनों में ही वो मीठा खाते थे। फलों को खाने के लिए भी उनका मुकाबला
परिंदों और दूसरे जानवरों से होता था।
एक वो दौर था और अब आज का वक्त है। आप सोचिए कि मीठा खाना है और आप
के इर्द-गिर्द विकल्पों के ढेर लगे दिखाोगे। चॉकलेट, मिठाई, सिरप,
केक,
जूस
और न जाने क्या-क्या।
आज आप को मीठा हर रूप-रंग में मिल जाएगा। कोल्ड ड्रिंक में या फिर जो
सीरियल्स का डिब्बा आप सुबह नाश्ते में इस्तेमाल करने के लिए खाोलते हैं, हर
चीज में चीनी है।
इसीलिए चीनी को आज जनता की सेहत का दुश्मन नंबर एक घोषित कर दिया गया
है। सरकारें चीनी पर टैक्स लगा रही हैं। स्कूल और अस्पतालों में मीठी चीजों को खाने की मशीनों से हटाया जा रहा है। जानकार आपको सलाह देते हैं कि चीनी को खान-पान
से पूरी तरह से हटा दें।
और चीनी को इतना बड़ा विलेन तब बनाया जा रहा है, जब
वैज्ञानिक अभी पूरी तरह से ये साबित नहीं कर सके हैं कि ज्यादा चीनी वाला खान-पान
आप के लिए नुकसानदेह है।
क्या कहते हैं रिसर्च
पिछले पांच सालों में हुए तमाम रिसर्च का निचोड़ ये है कि रोजाना 150 ग्राम से ज्यादा फ्रक्टोज (चीनी का एक रूप) लेने से इंसुलिन नाम के हारमोन का असर कम होने लगता है। इससे आप की सेहत पर बुरे असर जैसे ब्लड प्रेशर और और कोलेस्ट्रॉल बढने लगते हैं। लेकिन, रिसर्च ये भी बताते हैं कि ऐसा तभी होता है, जब आप अपने शरीर की जरूरत से ज्यादा कैलोरी लेते हैं। यानी सिर्फ शुगर से आप की सेहत पर बुरा असर नहीं पड़ता। बल्कि, इसकी वजह से आप जो ज्यादा कैलोरी ले लेते हैं, उसका बुरा असर सेहत पर पड़ता है।
बहुत से जानकार तर्क देते हैं कि खान-पान की किसी एक चीज को विलेन
बनाना ठीक नहीं। इससे बहुत से अहम तत्व नहीं मिल पाते हैं।
चीनी का मतलब है चीनी या उससे बनी चीजें, शहद, फलों
के रस और कोल्ड ड्रिंक में मिली चीनी है। इसे स्वाद बेहतर बनाने के लिए मिलाया
जाता है।
चीनी ही नहीं, सामान्य कार्बाेहाइड्रेट जैसे चावल या
आटा भी चीनी के कणों से ही बने होते हैं। जब खाना हमारे शरीर में जाता है, तो
हमारी आंतें इन्हें तोड़ कर उनमें से ग्लूकोज निकालती हैं। इस
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ग्लूकोज को हमारे शरीर की सभी कोशिकाएं इस्तेमाल करती हैं। सब्जियों
और अनाज में भी चीनी इसी रूप में मिली होती है। चीनी के कई कुदरती रूप होते हैं।
जैसे फलों में पाया जाने वाला फ्रक्टोज, दूध में मिलने वाला लैक्टोज और दूसरी
मीठी चीजों में डला हुआ ग्लूकोज।
16वीं सदी से पहले चीनी इतनी खास थी कि इसे रईस लोग ही इस्तेमाल कर
पाते थे। साम्राज्यवादी विस्तार और कारोबार के दौरान चीनी आम लोगों तक पहुची।
1960 के दशक में ग्लूकोज और फ्रक्टोज की मदद से बना सिरप अचानक पूरी
दुनिया में बहुत लोकप्रिय हो गया। कॉर्न सिरप को कई बीमारियों की जड़ बताया जाता
है।
चीनी की भारी खपत
1970 और 1990 के बीच अमरीका में चीनी से बने कॉर्न सिरप की मांग बहुत बढ़ गई थी।
रिसर्चर कहते हैं कि इसी के बाद अमरीका में मोटापा राष्ट्रीय चुनौती बन गया।
चीनी से बनी चीजें जैसे कोल्ड ड्रिंक्स, हमारी सेहत पर
असर डालने के रिसर्च के केंद्र में रही हैं। 88 तजुर्बों का
निचोड़ ये कहता है कि चीनी वाले पेय पदार्थों का शरीर का वजन बढ़ने से सीधा ताल्लुक
है। जब लोग कोल्ड ड्रिंक पीते हैं, तो उसके साथ दूसरी चीजें खाकर और
कैलोरी ले लेते हैं। इतनी कैलोरी की शरीर को जरूरत नहीं होती। यही कैलोरी शरीर में
जमा हो जाती है।
लेकिन, रिसर्चर कहते हैं कि भले ही चीनी से बनी कोल्ड ड्रिंक या दूसरी चीजों
के इस्तेमाल का संबंध अमरीका में बढ़ते मोटापे से पाया गया है। मगर इसकी और भी
वजहें रही हैं।
कुछ जानकार कहते हैं कि पिछले दस सालों में चीनी का इस्तेमाल अमरीका
में घट रहा है। फिर भी अमरीकियों का मोटापा बढ़ रहा है। आज डायबिटीज और मोटापे के मरीजों
की तादाद अमरीका में बहुत बढ़ गई है। ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय देशों में तो फ्रक्टोज
और कॉर्न सिरप का उतना इस्तेमाल भी नहीं होता। मगर, यहां मोटापे ने
महामारी का रूप धर लिया है।
सिर्फ कॉर्न सिरप में पाया जाने वाला फ्रक्टोज ही नहीं, बल्कि
चीनी से तैयार दूसरी चीजों को भी कई बीमारियों के लिए जिम्मेदार बताया जाता है।
फ्रक्टोज के बारे में कहा जाता है कि ये दिल की बीमारियों को जन्म देता है।
क्योंकि जब ये हमारे शरीर में पहुंचता है, तो जिगर, इसे तोड़ता है।
इससे ट्राईग्लिसेराइड नाम का केमिकल निकलता है। ये एक तरह का फैट है, जो
हमारे लिवर की कोशिकाओं से हो कर हमारी खून की नलियों में पहुंच जाता है। ये खून
की नलियों को जाम कर सकता है।
पंद्रह साल तक किया गया एक रिसर्च इस बात को सही ठहराता है। इस
रिसर्च के हिसाब से, जो लोग रोजाना अपनी जरूरत से 25 फीसद या इससे
भी ज्यादा कैलोरी लेते हैं, उनके दिल की बीमारी से मरने की आशंका
दोगुनी हो जाती है। टाइप-2 डायबिटीज के लिए भी ज्यादा चीनी खाने
को
जिम्मेदार बताया जाता है। दो बड़ी रिसर्च से पता चला है कि जो महिलाएं
दिन भर में एक सॉफ्रट ड्रिंक या जूस की बोतल से ज्यादा पीती हैं, तो
उनको डायबिटीज होने की आशंका दोगुनी हो जाती है।
रिसर्च कम, कनफ्रयूजन ज्यादा ?
इन रिसर्च से ये बिल्कुल साफ नहीं है कि चीनी से दिल की बीमारी या
डायबिटीज होती है। स्विटजरलैंड की लुसान यूनिवर्सिटी में मनोविज्ञान के प्रोफेसर
ल्यूक टैपी कहते हैं कि मोटापे, दिल की बीमारी और डायबिटीज की बड़ी वजह
है जरूरत से ज्यादा कैलोरी लेना। जरूरी नहीं कि ये कैलोरी आप चीनी के जरिए लें।
प्रोफेसर ल्यूक कहते हैं कि, खर्च से ज्यादा ईंधन शरीर में भरना आगे
चल कर फैट के रूप में जमा हो जाता है। इससे इंसुलिन का असर कम हो जाता है। जिगर
में वसा जमा हो जाती है। अगर आप जितनी कैलोरी खाते हैं, उतनी ही खर्च
करें, तो चीनी या मीठी चीजें खाने में कोई हर्ज नहीं।’
वो खिलाड़ियों की मिसाल देते हैं, जो ज्यादा शुगर
लेते हैं। मगर उन्हें दिल की बीमारी नहीं होती। क्योंकि वो ज्यादा कैलोरी को मेहनत
कर के जला देते हैं।
कुल मिलाकर कहें तो, ज्यादा मीठा खाने से डायबिटीज, दिल
की बीमारी, मोटापा या कैंसर होने के तर्कों में दम नहीं है। हां, ज्यादा
मीठा खाने से ये सब होता है। लेकिन, इसकी सीधी वजह मीठा खाना ही है,
ये
अभी पक्के तौर पर नहीं साबित हुआ है।
चीनी के बारे में ये भी कहा जाता है कि इसकी लत पड़ जाती है। लेकिन अब
तक की रिसर्च से ये बात भी साबित नहीं हुई है।
2017 में ब्रिटिश जर्नल ऑफ स्पोर्ट्स मेडिसिन ने एक तजुर्बे के हवाले से
छापा था कि चूहों को चीनी से चिढ़ हो सकती है। उनमें चीनी को लेकर कोकीन जैसी लत के
लक्षण देखे गए हैं। लेकिन, इस दावे की कड़ी निंदा हुई थी।
ऑस्ट्रेलिया की स्विनबर्न यूनिवर्सिटी में एक्सपर्ट मैथ्यू पेस ने
चीनी की लत को लेकर रिसर्च की है। पेस पक्के तौर पर ये कहने को राजी नहीं हैं कि
चीनी का हमारी दिमागी सेहत पर असर पड़ता है। यानी इसकी लत पड़ती है या नहीं, ये
वो नहीं कहते।
हाल ही में हुई एक रिसर्च में तो ये दावा किया गया कि मीठा खाने से
याददाश्त मजबूत होती है। खास तौर से बुजुर्गों में इसका अच्छा असर देखा गया। वो
मीठा खाकर बड़ी चुनौतियों का बेहतर ढंग से सामना करते दिखे । उन्हें इसके लिए मशक्कत
भी नहीं करनी पड़ी। वो काम करते वक्त ज्यादा थके भी नहीं। बल्कि काम पूरा होने पर
उन्होंने ऽुशी महसूस की।
कितनी चीनी खाएं रोजाना ?
मौजूदा गाइडलाइन कहती हैं कि हमारी रोजाना की डाइट में पांच फीसद से
ज्यादा चीनी नहीं होनी चाहिए। लेकिन, जानकार कहते हैं कि हर इंसान के लिए
संतुलित आहार का पैमाना अलग होता है।
ब्रिटिश डायटिशियन रीनी मैक्ग्रेगर कहती हैं, ‘मैं खिलाड़ियों
के साथ काम कर चुकी हूं। उन्हें ज्यादा कैलोरी यानी मीठे की जरूरत होती है। लेकिन
वो वर्जिश से ज्यादा कैलोरी को जला लेते हैं। जबकि वो तो गाइडलाइन से ज्यादा चीनी
ले रहे होते हैं।’
अब जो लोग खिलाड़ी नहीं हैं, उनके लिए चीनी को खान-पान का अहम
हिस्सा बनाना जरूरी नहीं है। लेकिन उसे विलेन साबित करना भी ठीक नहीं।
रीनी मैक्ग्रेगर कहती हैं कि जब भी आप किसी चीज को न खाने का प्रण
लेते हैं, तो आप को उसको खाने का और भी मन करता है। बेहतर हो कि बंदिशें न
लगाएं। हां, मीठा खाने की तादाद पर काबू रखे ।
जेम्स मेडिसन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एलन लेविनोवित्ज एक और मजेदार
थ्योरी लेकर आए हैं। वो कहते हैं कि इंसान ने ऐतिहासिक रूप से उस चीज को विलेन
साबित करने की कोशिश की है, जिसके प्रति वो ज्यादा आकर्षित होता है।
वो विक्टोरियन युग की मिसाल देते हैं, जब यौन सुख को खराब बता कर उससे परहेज
की सलाह ब्रिटेन के लोगों को दी जाती थी। लेविनोवित्ज कहते हैं कि आज चीनी के साथ
यही हो रहा है। चूंकि हम मीठा खाने से पूरी तरह मुंह नहीं फेर पाते, तो,
हम
उसे विलेन साबित करने में लगे हैं।
लेविनोवित्ज कहते हैं कि, ‘मीठा खाने में बहुत आनंद आता है। नतीजा
ये है कि हम मीठा खाने को पाप मान बैठे हैं। जब भी हम किसी चीज को पुण्य और पाप के
चश्मे से देखते हैं, तो ये मानना मुश्किल हो जाता है कि हम किसी बुराई को थोड़ी सी तादाद
में बर्दाश्त कर सकते हैं। आज चीनी के साथ यही हो रहा है।’
जानकार कहते हैं कि कौन सी मिठास अच्छी है और कौन सी बुरी, ये
बहस अभी चल रही है। बेहतर है हम इसकी फिक्र करना छोड़ दें।
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