अनगिनत भक्तों की श्राद्धा प्रतीक - माता वैष्णो देवी जी

2018-11-01 0

माँ वैष्णव का धाम शक्ति आराधना का जाग्रत स्थल माना जाता है। यहां पर अन्य देवी मंदिरों की भांति देवी की साकार और श्रृंगारित प्रतिमा न होकर मां वैष्णवी तीन पिण्डियों के सामूहिक स्वरुप में दर्शन देती हैं। जिनके दर्शन मात्र  से ही हर प्रकार की मुरादें पूरी होने के साथ ही दूर हो जाते हैं सारे पाप और कष्ट। यहां देश के कोने-कोने से श्रद्धालु-गण आते ही रहते हैं, परन्तु यहां वही भक्त पहुंच पाता है, जिसे मां का बुलावा होता है और जो एक बार मां के द्वार पहुंच गया, वो फि़र कहीं और नहीं जाता।

चमत्कार के एक-दो नहीं ढेरों कहानियां अपने अंदर समेटे हसीन वादियों में त्रिकूट पर्वत पर गुफा में विराजमान हैं आदि शत्तिफ़ जगत जननी माता वैष्णो देवी। खासियत है कि यहां अन्य देवी मंदिरों की भांति देवी की साकार और श्रृंगारित प्रतिमा न होकर मां वैष्णवी तीन पिण्डियों के सामूहिक स्वरुप में अपने भक्तों को दर्शन देती हैं। कहते हैं जो श्रद्धालु जमां की पूजा विधि-विधान व तौर-तरीकों से कर लिया उसकी हर प्रकार की मुरादें पूरी होने के साथ ही दूर हो जाते हैं सारे पाप और कष्ट। मां का ये धाम अनोखा व अद्भूत इसलिए भी है कि माता वैष्णवी अधर्म और दुष्टों का नाश कर जगत कल्याण के लिए आज भी वैष्णव धाम में वास करती हैं। मां अपने किसी भी भत्तफ़ को खाली हाथ नहीं भेजती, तभी तो मां के दर्शन को हर रोज लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं। कहा यह भी जाता है कि मां के दर्शन मात्र से शत्रु तो परास्त होते ही हैं, मिल जाता है राजसत्ता सुख  का वरदान। मां के आशीर्वाद से बिगड़े काम भी तो बनते ही हैं, सफलता की राह में आ रही बाधाएं भी दूर हो जाती हैं। मुश्किलों को हरने वाली मां के शरण में आने वाला राजा हो या रंक मां के नेत्र सभी पर एक समान कृपा बरसाते हैं। मां की कृपा से असंभव कार्य भी पूरे हो जाते हैं। ताज्जुब इस बात का है कि देश के कोने-कोने से तो श्रद्धालुओं का मां के दर्शन को आना होता ही है, यहां वही भत्तफ़ पहुंच पाता है, जिसे मां का बुलावा होता है और जो एक बार मां के द्वार पहुंच गया, वो फिर कहीं और नहीं जाता।

कहते हैं दरबार में नित्य होने वाली मां के चारों रुपों की आरती का दर्शन कर लेने मात्र से हजार अश्वमेघ यज्ञ के फलों की प्राप्ति होती है। चैत यानी वासंतिक व शारदीय नवरात्र के नौ दिनों तक विशाल मेला लगता है। इस मेले में लाख -दो ला नहीं बल्कि 25-30 लाख  से भी अधिक श्रद्धालु पहुंचते हैं। कहते हैं मां वैष्णवी एक मात्र ऐसी जागृत शत्तिफ़पीठ है जिसका अस्तित्व सृष्टि आरंभ होने से पूर्व और प्रलय के बाद भी रहेगा। शत्तिफ़ को समर्पित यह मनोरम व दिव्य स्थल जम्मू-कश्मीर के कटरा स्थित मां वैष्णवी या त्रिकूट पर्वत पर है। यह उत्तरी भारत में सबसे पूजनीय पवित्र स्थलों में से एक है। मंदिर, 5,200 फीट की ऊंचाई और कटरा से लगभग 12 किलोमीटर (7-45 मील) की दूरी पर है। यह भारत में तिरूमला वेंकटेश्वर मंदिर के बाद दूसरा सर्वाधिक देखा जाने वाला धार्मिक तीर्थ-स्थल है, जो वैष्णो देवी या माता रानी और वैष्णवी के रूप में भी जानी जाती हैं। जहां तक मातारानी के पहाड़ों पर विराजमान होने का सवाल है तो मां वैष्णव देवी ही नहीं बल्कि गुवाहाटी में कामख्या, हरिद्वार में मनसा देवी सहित लगभग सभी माताओं के मंदिर पहाड़ों पर होते हैं। यहां तक की मां दुर्गा का एक नाम पहाड़ों वाली भी है। दरअसल, हमारे वेद-पुराणों में पंच-तत्व के महत्व को बताया गया है। सृष्टि की रचना पंचतत्वों से हुई है तो इंसान के शरीर भी इन्हीं पंचतत्वों से बने हुए हैं। ये पंच तत्व हैं जल, वायु, अग्नि, भूमि और व्योम अर्थात आकाश। इन पांचों तत्वों के अधिपति एक-एक देवता भी हैं। जल के अधिपति गणेश हैं तो वायु के विष्णु, भूमि के शंकर हैं तो अग्नि के अग्नि देवता वहीं व्योम के देवता हैं सूर्य। शत्तिफ़ यानी दुर्गा को संपूर्ण धरती की अधिष्ठात्री माना गया है। साथ ही वे शत्तिफ़ का प्रतीक हैं। जानकारों की मानें तो पहाड़ों को धरती का मुकुट और सिंहासन माना जाता है। मां इस संपूर्ण सृष्टि की अधिष्ठात्री हैं, इसलिए वे सिंहासन पर विराजती हैं। यही वजह है कि लगभग सभी महत्वपूर्ण और प्राचीन देवी मंदिर पहाड़ों पर ही स्थित है।

पौराणिक मान्यताएं

पौराणिक मान्यता है कि मां वैष्णो देवी ने भारत के दक्षिण में रत्नाकर सागर के घर जन्म लिया। उनके लौकिक माता-पिता लंबे समय तक निःसंतान थे। दैवी बालिका के जन्म से एक रात पहले, रत्नाकर ने वचन लिया कि बालिका जो भी चाहे, वे उसकी इच्छा के रास्ते में कभी नहीं आएंगे- मां वैष्णो देवी को बचपन में त्रिकुटा नाम से बुलाया जाता था। बाद में भगवान विष्णु के वंश से जन्म लेने के कारण वे वैष्णवी कहलाईं। जब त्रिकुटा 9 साल की थीं, तब उन्होंने अपने पिता से समुद्र के किनारे पर तपस्या करने की अनुमति चाही। त्रिकुटा ने राम के रूप में भगवान विष्णु से प्रार्थना की। सीता की खोज करते समय श्रीराम अपनी सेना के साथ समुद्र के किनारे पहुंचे। उनकी दृष्टि गहरे ध्यान में लीन इस दिव्य बालिका पर पड़ी। त्रिकुटा ने श्री राम से कहा कि उसने उन्हें अपने पति के रूप में स्वीकार किया है। श्रीराम ने उसे बताया कि उन्होंने इस अवतार में केवल सीता के प्रति निष्ठावान रहने का वचन लिया है। लेकिन भगवान ने उसे आश्वासन दिया कि कलियुग में वे कल्कि के रूप में प्रकट होंगे और उससे विवाह करेंगे। इस बीच, श्री राम ने त्रिकुटा से उत्तर भारत में स्थित माणिक पहाड़ियों की त्रिकुटा श्रृंखला में अवस्थित गुफा में ध्यान में लीन रहने के लिए कहा। रावण के विरुद्ध श्रीराम की विजय के लिए मां ने नवरात्र मनाने का निर्णय लिया। इसलिए उत्तफ़ संदर्भ में लोग, नवरात्र के 9 दिनों की अवधि में रामायण का पाठ करते हैं। श्रीराम ने वचन दिया था कि समस्त संसार द्वारा मां वैष्णो देवी की स्तुति गाई जाएगी। त्रिकुटा, वैष्णो देवी के रूप में प्रसिद्ध होंगी और सदा के लिए अमर हो जाएंगी।


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मान्यता यह भी है कि माता वैष्णो के एक परम भत्तफ़ श्रीधर, जो कटरा से 2 किमी दूर हसली गांव में रहता था, की भत्तिफ़ से प्रसन्न होकर मां ने एक मोहक युवा लड़की के रूप में उनको दर्शन दी। युवा लड़की ने विनम्र पंडित से भंडारा (भिक्षुकों और भत्तफ़ों के लिए एक प्रीतिभोज) आयोजित करने के लिए कहा। पंडित गांव और निकटस्थ जगहों से लोगों को आमंत्रित करने के लिए चल पड़े। उन्होंने सभी गांव वालों व साधु-संतों को भंडारे में पधारने का निमंत्रण देने के साथ ही एक स्वार्थी राक्षस भैरवनाथ व उसके शिष्यों को भी आमंत्रित किया। इस विशालतम आयोजन की रुपरेखा देख एकबारगी गांव वालों को विश्वास ही नहीं हुआ कि निर्धन श्रीधर भण्डारा कर रहा है। भैरव नाथ ने श्रीधर से पूछा कि वे कैसे अपेक्षाओं को पूरा करने की योजना बना रहे हैं। उसने श्रीधर को विफलता की स्थिति में बुरे परिणामों का स्मरण कराया। भंडारे में भैरवनाथ ने खीर-पूड़ी की जगह मांस-मदिरा का सेवन करने की बात की तब श्रीधर ने इस पर असहमति जताई। भोजन को लेकर भैरवनाथ के हठ पर अड़ जाने के कारण श्रीधर चिंता में डूब गए, तभी दिव्य बालिका प्रकट हुईं अौर भैरवनाथ को समझाने की कोशिश की किंतु भैरवनाथ ने उसकी एक ना मानी। तब कन्यारुपी वैष्णवी देवी ने श्रीधर से कहा कि वे निराश न हों, सब व्यवस्था हो चुकी है। उन्होंने कहा कि 360 से अधिक श्रद्धालुओं को छोटी-सी कुटिया में बिठा सकते हो। उनके कहे अनुसार ही भंडारा में अतिरित्तफ़ भोजन और बैठने की व्यवस्था के साथ निर्विघ्न आयोजन संपन्न हुआ और श्रीधर की लाज रखने के लिए मां वैष्णो देवी कन्या का रूप धारण करके भण्डारे में आई। साथ ही दुनिया को अपने अस्तित्व का प्रमाण दिया। भंडारा सकुशल संपंन होने पर भैरवनाथ ने स्वीकार किया कि बालिका में अलौकिक शत्तिफ़यां थीं और आगे और परीक्षा लेने का निर्णय लिया। उसने त्रिकुटा पहाड़ियों तक उस दिव्य बालिका का पीछा किया। रास्ते में जब भैरवनाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा, तब वह कन्या वहां से त्रिकूट पर्वत की ओर भागी और उस कन्यारूपी वैष्णो देवी हनुमान को बुलाकर कहा कि भैरवनाथ के साथ खेलों मैं इस गुफा में नौ माह तक तपस्या करूंगी। इस गुफा के बाहर माता की रक्षा के लिए हनुमानजी ने भैरवनाथ के साथ नौ माह खेला। इस तरह 9 महीनों तक भैरवनाथ उस रहस्यमय बालिका को ढूंढ़ता रहा, जिसे वह देवी मां का अवतार मानता था। कहते हैं उस वत्तफ़ हनुमानजी मां की रक्षा के लिए मां वैष्णो देवी के साथ ही थे। हनुमानजी को प्यास लगने पर माता ने उनके आग्रह पर धनुष से पहाड़ पर एक बाण चलाकर जलधारा को निकाला और उस जल में अपने केश धोए। आज यह पवित्र जलधारा बाणगंगा के नाम से जानी जाती है, जिसके पवित्र जल का पान करने या इससे स्नान करने से भत्तफ़ों की सारी व्याधियां दूर हो जाती हैं। नदी के किनारे, जिसे चरण पादुका कहा जाता है, देवी मां के पैरों के निशान हैं, जो आज तक उसी तरह विद्यमान हैं। इसके बाद वैष्णो देवी ने अर्धक्वांरी के पास गर्भ जून में शरण ली, जहां वे 9 महीनों तक ध्यान-मग्न रहीं और आध्यात्मिक ज्ञान और शत्तिफ़यां प्राप्त कीं। भैरव द्वारा उन्हें ढूंढ़ लेने पर उनकी साधना भंग हुई। जब भैरव ने उन्हें मारने की कोशिश की, तो विवश होकर वैष्णो देवी ने महाकाली का रूप धारण कर पवित्र गुफा के

द्वार पर प्रकट हुईं और भैरव का सिर धड़ से ऐसे अलग किया कि उसकी खोपड़ी पवित्र गुफा से 2-5 किमी की दूरी पर भैरव घाटी नामक स्थान पर जा गिरी। आज इस पवित्र गुफा को अर्धक्वांरी के नाम से जाना जाता है। अर्धक्वांरी के पास ही माता की चरण पादुका भी है। यह वह स्थान है, जहां माता ने भागते-भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा  था। भैरव ने मरते समय क्षमा याचना की। देवी जानती थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव की प्रमुख मंशा मोक्ष प्राप्त करने की थी। उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुत्तिफ़ प्रदान करते हुए न सिर्फ उसे अपने से उंचा स्थान दिया, बल्कि वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएंगे, जब तक कोई भत्तफ़ मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा। अतः श्रद्धालु आज भी भैरवनाथ के दर्शन को अवश्य जाते हैं। वह स्थान आज पूरी दुनिया में भवन के नाम से प्रसिद्ध है। भैरवनाथ का वध करने पर उसका शीश भवन से 3 किमी दूर जिस स्थान पर गिरा, आज उस स्थान को भैरोनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। इस बीच वैष्णो देवी ने तीन पिंड (सिर) सहित एक चट्टान  का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गईं। उसके बाद से श्रीधर और उनके वंशज मां वैष्णो देवी की पूजा करते आ रहे हैं।

क्या है वैष्णव देवी तीन पिंडियों का रहस्य

माता की तीन पिण्डियों के संबंध में पुराण कथा अनुसार राक्षस महिषासुर के दुष्टता और आंतक से पीड़ित इन्द्र सहित सभी देवता ब्रह्मा और शिव के साथ जाकर वैकुण्ठ में विष्णु भगवान से मिले। देवताओं ने विष्णु भगवान से इस संकट से छुटकारा दिलाने की प्रार्थना की। तब भगवान विष्णु ने दिव्य-दृष्टि से जानकर बताया कि महिषासुर की मृत्यु केवल एक नारी के द्वारा ही संभव है, देवताओं द्वारा नहीं। इसके बाद देवताओं द्वारा स्तुति करने पर ब्रह्मा, विष्णु और शिव के सामूहिक तेज से एक नारी स्वरुप शत्तिफ़ की उत्पत्ति हुई। इस शत्तिफ़ में ब्रह्मा के अंश से महासरस्वती, विष्णु के अंश से महालक्ष्मी और शिव के अंश से महाकाली पैदा हुई। गुफा में तीन पिण्डियां इन तीन देवी रुपों का प्रतीक है। इनका सामूहिक स्वरुप ही मां वैष्णवी है। बाहरी रुप से अलग-अलग दिखाई देने पर भी इन तीन रुपों में कोई भेद नहीं है। माना जाता है कि वैज्ञानिकों ने भी इन पिण्डियों के रहस्य को जानना चाहा। उनके द्वारा वैज्ञानिक निष्कर्षों में भी यह पाया कि गुफा में यह तीन पिण्डियां बिना आधार के स्थित है यानि दिव्य पिण्डियां बिना किसी सहारे के हवा में खड़ी हैं, जो अद्भुत है। आध्यात्मिक दृष्टि से अलौकिक शत्तिफ़ का रुप यह तीन पिण्डियां इच्छाशत्तिफ़, ज्ञान शत्तिफ़ और क्रियाशत्तिफ़ की प्रतीक है। इस तथ्य को व्यावहारिक जीवन से जोड़ें तो पाते हैं कि जीवन में इच्छा, विद्या और कर्म के अभाव में किसी कार्य में सफलता नहीं मिलती है। शात्तफ़ ग्रंथों में भी आदिशत्तिफ़ वैष्णवी ने शत्तिफ़ के इन अवतारों का मुख्य उद्देश्य देवताओं की रक्षा, मानव-कल्याण, दानवों का नाश, भत्तफ़ों को निर्भय करना और धर्म की रक्षा बताया है। माता वैष्णवी की चमत्कारिक पिण्डियों की भांति ही वैष्णव मां की पवित्र गुफा में बहने वाला जल भी रहस्य का विषय है। इस जल का स्त्रेत वैज्ञानिकों को भी नहीं मिला। यही कारण है कि माता के दरबार से धर्मावलंबी भत्तफ़ों की अटूट आस्था और विश्वास है। इस बहते जल को भी वह मां का आशीर्वाद और उसका सेवन समस्त पापों को नष्ट करने वाला मानते हैं। माना जाता हैं कि यहीं पर मां ने भैरवनाथ का वध किया था और उसका सिर 3 किमी की दूरी पर जाकर गिरा था। यहां बीच में विराजती हैं लक्ष्मी माँ जिनके बाएं पार्श्व में महाकाली और दाहिनी पार्श्व में हैं सरस्वती। इन तीनों का मिलाजुला रूप ही वैष्णव देवी कहलाता हैं। महाकाली और लक्ष्मी के बीच में छतरी हैं- बाएं पार्श्व में महाकाली के पास ज्योति जलती रहती हैं। तीनों माताओं के सामने पिंडियां हैं। मूर्तियों के सामने नीचे बहुत ध्यान से देखना पड़ता हैं इन पिंडियों को। वास्तव में इन पिंडियों के ही दर्शन किए जाने हैं। माना जाता हैं कि ये पिंडियां प्राकृतिक रूप से उभर आई हैं।

क्या है मां का चढ़ावा

यहां अपनी मर्जी से चढ़ावे की व्यवस्था नहीं हैं। इसीलिए मां के दर्शन के साथ-साथ चढ़ावे का भी बहुत महत्त्व हैं। ऐसे में स्त्रियां, ब्याहता हो या कुंआरी, मां को चूडियां जरूर चढ़ाती हैं। जब पुरोहित चूड़ियों को माता की मूर्ति के चरणों में रख कर उनमें से कुछ चूड़ियां प्रसाद के रूप में लौटाते हैं तब लगता हैं जैसे मां का आशीर्वाद मिल गया। मान्यता हैं कि मां के दर्शनोपरांत शत्तिफ़, ज्ञान और धैर्य की रश्मियां भत्तफ़ के शरीर में संचार कर जाती हैं जो तीनो माताओं की द्योतक हैं। इस सम्पूर्ण शत्तिफ़ को मां वैष्णवी ने कड़ी तपस्या के बाद पाया था। यहां से पहाडी रास्ते पर आगे बढ़ने के बाद शिव मंदिर हैं जहां शिवलिंग के दर्शन किए जाते हैं।

कैसे पहुंचें मां के दरबार

मां वैष्णो देवी की यात्र का पहला पड़ाव जम्मू होता है। जम्मू तक आप बस, टैक्सी, ट्रेन या फिर हवाई जहाज से पहुंच सकते हैं। जम्मू ब्राड गेज लाइन द्वारा जुड़ा है। गर्मियों में वैष्णो देवी जाने वाले यात्रियों की संख्या में अचानक वृद्धि हो जाती है इसलिए रेलवे द्वारा प्रतिवर्ष यात्रियों की सुविधा के लिए दिल्ली से जम्मू के लिए विशेष ट्रेनें चलाई जाती हैं। जम्मू भारत के राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 1 ए पर स्थित है। अतः यदि आप बस या टैक्सी से भी जम्मू पहुंचना चाहते हैं तो भी आपको कोई परेशानी नहीं होगी। उत्तर भारत के कई प्रमुख शहरों से जम्मू के लिए आपको आसानी से बस व टैक्सी मिल सकती है। वैष्णो देवी के भवन तक की यात्र की शुरुआत कटरा से होती है, जो कि जम्मू जिले का एक गांव, जो वर्तमान में शहर का रुप ले चुका है। जम्मू से कटरा की दूरी लगभग 60 किमी है। जम्मू से बस या टैक्सी द्वारा कटरा पहुंचा जा सकता है। जम्मू रेलवे स्टेशन से कटरा के लिए बस व रेल सेवा भी उपलब्ध है जिससे 2 घंटे में आसानी से कटरा पहुंचा जा सकता है।

आसपास के दर्शनीय स्थल

कटरा व जम्मू के नजदीक कई दर्शनीय स्थल व हिल स्टेशन हैं, जहां जाकर आप जम्मू की ठंडी हसीन वादियों का लुत्फ उठा सकते हैं। जम्मू में अमर महल, बहू फोर्ट, मंसर लेक, रघुनाथ टेंपल आदि देखने लायक स्थान हैं। जम्मू से लगभग 112 किमी की दूरी पर पटनी टॉप एक प्रसिद्ध हिल स्टेशन है। सर्दियों में यहां आप स्नोफॉल का भी मजा ले सकते हैं। कटरा के नजदीक शिव खोरी, झज्झर कोटली, सनासर, बाबा धनसार, मानतलाई, कुद, बटोट आदि कई दर्शनीय स्थल हैं।

इन बातों का रखें  ख्याल

वैसे तो माँ वैष्णो देवी के दर्शनार्थ वर्षभर श्रद्धालु जाते हैं परंतु यहां जाने का बेहतर मौसम गर्मी है। सर्दियों में भवन का न्यूनतम तापमान 3 से 4 डिग्री तक चला जाता है और इस मौसम से चट्टानों  के खिसकने का खतरा भी रहता है। अतः इस मौसम में यात्र करने से बचें। ब्लड प्रेशर के मरीज चढ़ाई के लिए सीढियों का उपयोग न करें। भवन ऊँचाई पर स्थित होने से यहां तक की चढ़ाई में आपको उलटी व जी मचलाने संबंधी परेशानियां हो सकती हैं, जिनसे बचने के लिए अपने साथ आवश्यक दवाइयां जरूर रखें । चढ़ाई के वत्तफ़ जहां तक हो सके, कम से कम सामान अपने साथ ले जाएं ताकि चढ़ाई में आपको कोई परेशानी न हो। पैदल चढ़ाई करने में छड़ी आपके लिए बेहद मददगार सिद्ध होगी। ट्रेकिंग शूज चढ़ाई में आपके लिए बहुत आरामदायक होंगे। माँ का जयकारा आपके रास्ते की सारी मुश्किलें हल कर देगा।  


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