आयुर्वेद से डायबिटीज के मरीजों में कम होगा हार्ट अटैक का खतराः अध्ययन

2018-08-01 0

डायबिटीज के मरीजों के लिए सबसे बड़ा खतरा होता है हार्ट अटैक का। पहले से इसका पता लगाना संभव नहीं है, मगर आयुर्वेद की मदद से इसके खतरे को कम किया जा सकता है। 

वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद  (सीएसआईआर) ने एक ऐसी दवा विकसित करने का दावा किया है, जिसकी मदद से हार्ट अटैक के खतरे को कम किया जा सकेगा। यह दवा बीजीआर-34 है, जो मधुमेह रोगियों में हार्ट अटैक के खतरे को पचास फीसदी तक कम करने में सक्षम होगी। शोध के दौरान इस दवा के करीब 50 फीसदी सेवनकर्ताओं में ग्लाइकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन का स्तर नियंत्रित पाया गया। 

जर्नल ऑफ ट्रेडिशनल कंप्लीमेंट्री मेडिसिन के ताजा अंक में इससे जुड़े शोध को प्रकाशित किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार बीजीआर-34 मधुमेह रोगियों के लिए कारगर दवा के रूप में पहले से ही स्थापित है। मौजूदा एलोपैथ दवाएं शर्करा का स्तर तो कम करती हैं लेकिन इससे जुड़ी अन्य दिक्कतों को ठीक कर पाती हैं। बीजीआर में इन दिक्कतों को भी दूर करने के गुण देखे गये हैं। 

जर्नल के अनुसार भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद् (आईसीएमआर) के दिशा-निर्देशों के तहत एक अस्पताल में 64 मरीजों पर चार महीने तक इस दवा का परीक्षण किया गया है। इस दौरान दो किस्म के नतीजे सामने आए। 80 फीसदी मरीजों में शर्करा के स्तर में कमी दर्ज की गई। दवा शुरू करने से पहले शर्करा का औसत स्तर 196 (खाली पेट) था जो चार महीने बाद घटकर 129 एमजीडीएल रह गया। जबकि भोजन के बाद यह स्तर 276 से घटकर 191 एमजीडीएल रह गया। विशेषज्ञों का कहना है कि ये नतीजे अच्छे हैं लेकिन इस प्रकार के नतीजे कई एलोपैथिक दवाएं भी देती हैं। 

रिपोर्ट के अनुसार दूसरा उत्साहजनक नतीजा ग्लाइकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन (एचबीए1सी) को लेकर है। 30-50 फीसदी मरीजों में इस दवा के सेवन से ग्लाइकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन नियंत्रित हो गया जबकि बाकी मरीजों में भी इसके स्तर में दस फीसदी तक की कमी आई थी। दरअसर, ग्लाइकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन की रक्त में अधिकता रक्त कोशिकाओं से जुड़ी बीमारियों के कारण बनती हैं। जिसमें हार्ट अटैक होना और दौरे पड़ना प्रमुख हैं। मधुमेह रोगियों में ये दोनों ही मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। 

हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं के भीतर होता है। इसका कार्य आक्सीजन का संचार करना होता है। लेकिन जब हीमोग्लोबिन में शर्करा की मात्रा घुल जाती है तो हीमोग्लोबिन का कार्य बाधित हो जाता है। इसे ही ग्लाइकोसिलेटेड हीमोग्लोबिन कहते हैं। इसका प्रभाव कई महीनों तक रहता है। किन्तु बीजीआर-34 से यह स्तर नियंत्रित हो रहा है।


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