स्कूली शिक्षा में कला एक शिक्षक का नजरिया

कल्पनाशील सोच-विचार
को शायद एक दक्षता न माना जाता हो लेकिन यह अधिकतर कलात्मक दक्षताओं से भी अधिक
आधारभूत है। छोटी कक्षाओं में यह सिखाना बहुत मुश्किल है। कला के संसार में अलग ही
कल्पना की अलग ही उड़ान होती है और इस संसार में प्रवेश कर पाना आसान नहीं है। कला-शिक्षण
के शुरुआत में सम्भव है कि किसी शिक्षक ने कोई आकृति बनाने या उसे रंगों से भरने
या फिर सीधी लकीरें खींचने के लिए कहा हो। कभी-कभी बच्चे ऐसा करने में बोरियत
महसूस करते हैं और कला की कक्षाओं में उनकी दिलचस्पी घटने लगती है। मैं आमतौर पर
उन्हें कोई रंग-बिरंगा दृश्यचित्र बनाने को देता हूँ, या फिर जानवरों या
किसी इन्सान की हल्की-फुलकी हंसी भरी तसवीर, तितलियाँ और
चित्रकारी आदि। यदि यह उनका खुद का चुनाव होगा तो अधिक सम्भावना है कि वे इस पर
मेहनत करेंगे। कभी-कभी वे शिल्प कार्य भी करते हैं। मैंने पाया है कि उन्हें इस
गतिविधि में अमूमन अधिक मजा आता है।
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आमतौर पर कक्षा 6 से कक्षा 8 तक के बच्चों को जो वे करना चाहते हैं
उसके चुनाव की छूट दी जाती है। कुछ दिलचस्पी लेते हैं और कुछ नहीं। बेहतर है कि
विद्यार्थियों को ऐसा काम न दिया जाए जिसके लिए वे तैयार न हों। मेरी कोशिश विभिन्न
विषयों पर कुछ विचार उन तक पहुँचाने की रहती है जिन्हें वे अपनी स्केच-बुक में
प्रयोग कर सकें। वे बहुत अच्छा प्रदर्शन न कर रहे हों तब भी मैं उन्हें
प्रोत्साहित करता हूँ। विद्यार्थी विचारों को अपना लेते हैं तो कुछ करने की इच्छा
और प्रेरणा सबसे सशत्तफ़ होते हैं। यानी किए गए महत्वपूर्ण चुनाव में उनका दखल
होना चाहिए। चुनाव वे स्वयं करेंगे तो काम भी बेहतर करेंगे।
महत्वपूर्ण चरण तब
आता है जब वे बड़ी कक्षाओं में पहुँचते हैं, जैसे कि कक्षा 12 में। इसी दौर में वे
रेदाचित्र बनाने की दक्षताएँ,
कला
का ज्ञान और रंगों की समझ विकसित करते हैं। इन कक्षाओं में स्थिर जीवन (स्टिल
लाइफ), कल्पनाशील
चित्रकला, पुस्तकों
के आवरण चढ़ाना, पोस्टर-निर्माण
और लिनो प्रिन्ट आदि विशेष विषय होते हैं। पाठड्ढचर्या का यह हिस्सा उन्हें
सामग्री से "खेल खिलवाड़य" करने का मौका देता है। उदाहरण के लिए, पानी के रंगों की
पारदर्शी रचना पर पेस्टल रंगों से चित्रकारी करना। पाठ का यह हिस्सा कला नहीं
बल्कि कला की दक्षता या शिल्प है जो शिक्षक द्वारा बहुत ही ध्यान से पेश किया जाता
है। कुछ विद्यार्थी आवेग में काम करते हैं, काम के महत्वपूर्ण
पक्षों पर पर्याप्त ध्यान दिए बिना उसे खत्म करने की जल्दी में रहते हैं। मैं
उन्हें अपने काम में जटिलता का विकास करने के लिए प्रोत्साहित करता हूँ। खुले सवाल
छोड़ता हूँ जिनसे ऐसे मुद्दे उठें जिन्हें वे अपने काम के लिए विचार में ला पाएँ।
उनके लिए सबसे अधिक आवश्यकता सोच पाने के अभ्यास की है। मैं सुझाव माँगता हूँ तो
पहले पूछता हूँ कि विद्यार्थी किस बारे में सोच रहा था। बहुत बार तो उसके पास पहले
से ही कोई विचार होता है मगर उसे प्रयोग में लाने का आत्मविश्वास नहीं होता। मैं
उन्हें यह कहकर प्रोत्साहित करता हूँ कि कुछ बातें अभ्यास से ही सीखी जा सकती हैं
और अधिक अभ्यास बेहतर नतीजों की ओर ले जाता है।
पिछले कुछ सालों में मैंने जीवन में कला-शिक्षा के महत्व के बारे में अपनी सोच कुछ विद्यार्थियों तक पहुँचाई। पिछले ही साल कक्षा 12 के दो विद्यार्थी अपने डिग्री पाठड्ढक्रम में फैशन डिजाइनिंग करना चाहते थे। इसमें कोई शक नहीं कि बच्चे के व्यत्तिफ़त्व और दक्षताओं के विकास में कला-शिक्षा का महत्व है। कला से बच्चे की बुद्धि का विकास होता है। देखा गया है कि कला से सम्बद्ध गतिविधियों में शामिल बच्चे अन्य विषयों की भी बेहतर समझ विकसित कर पाते हैं फिर वह चाहे भाषा हो या भूगोल या फिर विज्ञान। अध्ययनों से सिद्ध हुआ है कि कला के सम्पर्क और परिचय में आने से मस्तिष्क की गतिविधि को बढ़ावा मिलता है। कला बच्चे के समग्र व्यत्तिफ़त्व का विकास करती है, उसमें आत्म-सम्मान का निर्माण होता है और अनुशासन भी आता है। कला से सम्बद्ध होने की वजह से एक बच्चा अधिक रचनात्मक और नवाचारी बनता है तथा दूसरों के साथ सहयोग करना सीखता है। सारांश में, कला-गतिविधियाँ बच्चे के व्यत्तिफ़त्व-विकास, बौद्धिक प्रगति तथा अवलोकनात्मक दक्षताओं में बेहतरी लाने के लिए आवश्यक हैं।
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