इंग्लैंड में जॉब छोड़कर किसान बने नवदीप की कहानी करेगी आपको भी प्रेरित

2019-06-01 0

जहां इन दिनों खेती को घाटे का सौदा कहा जा रहा है, वहीं कुछ लोग देश-विदेश में मोटी कमाई वाली नौकरियां छोड़कर अपने वतन में रहकर माटी का कर्ज चुकाने के लिए कमर कस चुके हैं। ऐसे ही एक युवा किसान हैं जोधपुर के नवदीप गोलेच्छा।

ट्रेडिशनल बिजनेस फैमिली के नवदीप ने ‘फाइनेंसियल इकोनॉमिक्स’ में इंग्लैंड से एमएससी की, साथ ही कॉलेज टॉपर रहे। ‘रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड’ में ग्रेजुएट स्कीम के तहत तगड़ी पगार के लिए चुन भी लिए गए। कुछ समय काम किया, फिर मन उचट गया और अपने वतन हिंदुस्तान लौट आए!

पिछले तीन वर्षों से वो जोधपुर से 170 किलोमीटर दूर सिरोही में अपने 150 एकड़ के ‘नेचुरा फार्म’ में कुल 30 एकड़ में अनार, पपीता और नींबू की खेती कर रहे हैं। अनार उत्पादक किसान के रुप में वे धीरे-धीरे साख बना रहे हैं।

खेती का फैसला तो लिया पर इसमें भी विरोधा भास था---

नवदीप बताते हैं, ‘स्वदेश लौटने पर खेती का मन बनाया। आज भी 70% आबादी गांवों और कृषि से जुड़ी है, बावजूद इसके हम लोग खेती के मामले में उतने उन्नत देशों में शुमार नहीं किए जाते, जितना हमें किया जाना चाहिए। मुझे लगा कि अपनी क्षमताओं का इस्तेमाल करते हुए मुझे इस गैप को कवर करना चाहिए। मैं व्यापारी वर्ग से था, घर में किसी के कृषि से जुड़े होने की बात तो दूर मेरे दोस्तों तक में कोई इससे जुड़ा हुआ नहीं था।’

वो आगे कहते हैं, ‘हर कोई मुझे यह कहता कि कहां तू विदेश से पढ़ कर आया और खेती-बाड़ी की सोचता है, पूरी दुनिया तो खेती-बाड़ी छोड़ के शहरों की तरफ आ रही है और तुम शहरों से गांव की तरफ जाने की सोच रहे हो? यह वह वत्तफ़ था, जब मैं खुद कशमकश में था कि क्या वाकई मुझे खेती करनी चाहिए? मेरे लिए खेती और भी ज्यादा जिम्मेदारी और चुनौती वाला कार्य होने वाला था, क्योंकि अब मुझे खुद के फैसले को सही साबित करना था। मैं अपनी जगह सही था, मुझे अपनी रिसर्च के बाद यह ज्ञान हो गया था कि इस फील्ड में बहुत स्कोप है, बशर्ते खेती को पूरी शिद्दत के साथ किया जाए।’

उपजाया क्या जाए? बड़ा सवाल था---

नवदीप बताते हैं, ‘नौकरी भी छोड़ दी, घर भी लौट आयाखेती ही करुंगा यह भी तय था। अब सबसे अहम सवाल यह था कि खेतों में उगाया क्या जाए? बहुत सारे किसानों से मिलकर बहुत सी मिश्रित प्रतिक्रियाएं मिलीं। कुछ कहते थे कि गेहूं और रायड़े की खेती करुं, वही ठीक है, एक फिक्स इनकम हो जाएगी, ज्यादा रिस्क भी नहीं है। कृषि विभाग और केवीके जाने पर रास्ता साफ दिखाई दिया। मिट्टी  और पानी की जांच से बात आगे बढ़ी। मैंने अनार की खेती का मन बनाया।’

और शुरु हुई एंडलेस जर्नी---

चैलेंज यह था कि अनार कहां से लिए जाएं? कोई पौधा 30 रुपए में भी मिल रहा था, कोई 10 रुपए में भी बिक रहा था। तो कोई 100 रुपए में भी पौधा बेच रहा था। तब वो उन किसानों से मिले जो पिछले 5 से 8 साल से अनार की खेती कर रहे थे। उन किसानों की सलाह उन्हें बड़ी काम आई।

वो कहते हैं, ‘कुछ ने कहा 2 साल खेतों में घूमो, रिसर्च करो उसके बाद पौधे लगाओ। मैंने सोचा 2 साल क्यों घूमूं? 2 साल घूमने के बाद फिर 2 साल बाद रिजल्ट आएगा। उससे बेहतर है कि अभी लगाऊं और 2 साल बचा लूं। इन 2 सालों में बहुत कुछ सीखा । सतत् सीते रहने की सोच के साथ आगे बढ़ता गया, 3 साल के परिणाम आप सबके सामने है।

वे बताते हैं, ‘अनार की खेती के परिणामों से प्रभावित होकर राष्ट्रीय अनार अनुसंधान केंद्र सोलापुर की निदेशक डॉ- ज्योत्स्ना शर्मा मेरे फार्म की विजिट के लिए सिरोही आईं। यह मेरे लिए सबसे बड़ी उपलब्धि थी।’

किसानों को चाहिए कि वे क्वालिटी से समझौता न करें ---

इस साल अनार के भाव कम रहने से किसानों में भारी निराशा है। अगर गौर करें तो पाएंगे कि अनार 20 रुपए किलो में भी बिके और 60 रूपए किलो में भी। हम अपनी फसल में गुणवत्ता किस स्तर की ला पाते हैं, यह सबसे महत्वपूर्ण है। ज्यादा ध्यान गुणवत्ता पर देना होता है। अनार की साइज और कलर सबसे महत्वपूर्ण है। मुझे लगता है कि अभी अनार के एक्सपोर्ट में भी बहुत ज्यादा संभावनानाएं हैं। अभी तक राजस्थान का एक भी किसान एपीडा के अनार नेट में रजिस्टर्ड नहीं था, अब इसकी शुरुआत हो चुकी है। मेरे खेत को पहले खेत के रूप में अनार नेट में रजिस्टर्ड किया गया है। हम अगले साल से अनार को सीधा एक्सपोर्ट कर पाएंगे।

अगर अनार का प्रोडक्शन बढ़ गया है और हमको उसकी सही वैल्यू लेनी है तो हमें उसका मार्केट भी खेद ही बनाना होगा । हम सिर्फ डॉमेस्टिक मंडियों के भरोसे ही क्यों रहें? गुणवत्ता वाला फ्रूट लाएं, एक्सपोर्ट करें और ट्रू वैल्यू कमाएं!

किसान के दिमाग में यही रहता है कि अगर 3 साल का पौधा है और उस पर जितने भी फ्रूट हैं, सब के सब ले लें। ऐसा नहीं करके यदि हम सीमित मात्र में फल लें तो अच्छे साइज का फल ले सकते हैं। वे थीनिंग पर ध्यान नहीं देते। मेरी सोच है कि अनार की खेती में थीनिंग बहुत इंपोर्टेंट कांसेप्ट है।

थीनिंग का मतलब है कि यदि पौधे पर 200 फल लगे हैं तो मुझे पौधे की साइज और उम्र देखकर यह तय करना है कि कौन से 70, 80 या 90 फ्रूट मुझे रखने हैं, ताकि मुझे ऑप्टिमम साइज मिल सके।

यदि मेरा पौधा 2 साल का है और उस पर 100 फल हैं और मैं 100 फल ले लूंगा तो एक फल 100 ग्राम का ही होगा। ऐसा करने पर मुझे उसके सही भाव नहीं मिलेंगे, बजाय इसके मैं इस पर 30, 40, 50 फल ही रखूं  जो 200 से 250 ग्राम तक के हों। ऐसा करने पर मुझे मार्केट में इनकी अच्छी वैल्यू भी मिल जाएगी। यदि हम एक्सपोर्ट की बात करें तो एक्सपोर्ट में 200 से 250 ग्राम से ऊपर का फल चाहिए। इस गुणवत्ता का फल होगा, तो ही हम एक्सपोर्ट कर पाएंगे, इसलिए हमें थीनिंग पर ध्यान देना चाहिए।

साढ़े 3 एकड़ में मल्चिंग पेपर पर पपीते की खेती करने वाले नवदीप बताते हैं, ‘आज से 2 साल पहले भी मैंने पपीता लगाया था। तब कई लोग कह रहे थे कि यह क्षेत्र बबूल के जंगल वाला इलाका है, यहां पर वायरस की प्रॉब्लम आ जाएगी इसलिए इस पर खर्चा न करो। उसके बाद भी मैं डरा नहीं और मैंने पपीते की खेती की, बहुत शानदार परिणाम आए।

रेड लेडी 786’ वैरायटी है। पपीते पर यह मेरा दूसरा ट्रायल है। प्रति पौधा 80 से 85 किलो फ्रूट निकला था। इस बार पपीते की खेती को मल्चिंग पेपर पर कर रहा हूं। मल्चिंग के अंदर ही इनलाइन ड्रिप इरिगेशन है।’

उन्होंने 100% जैविक कागजी वैरायटी के नींबू का बगीचा भी तैयार किया है। सिरोही क्षेत्र में इस बगीचे के नींबू बड़े प्रसिद्ध हैं। खासियत यह है कि कोई भी नींबू 15 से 20 दिन तक खराब नहीं होता।

वे बताते हैं, ‘इस परिणाम से उत्साहित होकर मैं इस जुलाई में और 20 बीघा में नींबू का बगीचा लगा रहा हूं। श्केन्द्रीय लिंबूवर्गीय संशोधन केंद्रश्, नागपुर ने ‘एनआरसीसी 7’ एवं ‘8’ वैरायटी लॉन्च की है, उसे लगाऊंगा।’

अब आगे क्या?---

इस सवाल पर वे बताते हैं, ‘15 बीघा में सीताफल की खेती का मन बनाया है। चाहता हूं कि मेरे खेत में सब पौधे अलग-अलग प्रकार के हों, ताकि आगे चलकर मैं एग्रीकल्चर टूरिज्म को भी बढ़ावा दे सकूं। मार्केट में भी देखा  जाता है कि कभी किसी फल के दाम कम मिलते हैं, कभी ज्यादा, इसलिए विविधतापूर्ण खेती हो तो अच्छी आमदनी होती रहती है। मेरा मानना है कि सालभर खेत से किसी ना किसी फल का उत्पादन होता रहना चाहिए।’

खेती घाटे का सौदा है, यह मिथक तोड़ना होगा---

खेती फायदे का सौदा है या नहीं? इस पर एक लंबी बहस छिड़ी हुई है। पिछले 50 सालों से चली आ रही पद्धति से यदि हम खेती करेंगे तो जितने फायदे की हम उम्मीद करते हैं, उतना फायदा हमें नहीं होगा।

आज के जमाने में खेती को यदि फायदे का सौदा बनाना है तो खेती को खेती की तरह नहीं, इंडस्ट्री की तरह लेना होगा। इस खेती में भी हमें टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हुए प्रोसेसिंग में जाते हुए एक्सपोर्ट तक जाकर बिजनेस को ब्रॉड माइंडेड होकर करना होगा।

मुनाफे का गणित---

इस साल खेत से मैंने अनार की खेती में 70 लाख रूपए की आय प्राप्त की। मेरा मानना है कि इस आंकड़े को एक्सपोर्ट की मदद से अगले वर्ष तक सवा करोड़ रुपए तक ले आऊंगा। 



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