पैसा कमाने के चक्कर में कोचिंग सेंटरों द्वारा सुरक्षा की अनदेखी करना कितना खतरनाक

2019-06-01 0

सूरत में एक कोचिंग सेंटर में लगी आग ने कई बच्चों की जान ले ली है। आइए जानते हैं ये कोचिंग सेंटर्स सुरक्षा को किस तरह ताक पर रखते हैं।

ब सारा देश एक बार फिर मोदी सरकार को भारी बहुमत मिलने की खुशियां मना रहा था, तभी गुजरात के सूरत की एक हृदय-विदारक घटना ने हर किसी को झकझोर दिया। खासकर कोचिंग करने वाले बच्चों और उनके माता-पिता को। एक बिल्डिंग में लगी आग की चपेट में आकर जिस तरह से वहां कोचिंग में पढ़ रहे 23 छात्र-छात्रएं काल-कवलित हो गए, उसने देश के लगभग सभी शहरों में बड़ी संख्या में चल रहे कोचिंग संस्थानों की सुरक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान लगा दिया है। आखिर बच्चे और उनके माता-पिता क्यों कोचिंग को सफलता की गारंटी मानने लगे हैं और अधिकाधिक पैसे कमाने के फेर में कोचिंग संस्थानों द्वारा सुरक्षा उपायों की अनदेखी करना कितना अनुचित है, आइए जानते हैं-

एक्स्ट्राशॉट

वहां हर तरफ धुआं था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं? तभी आग से बचकर निकलने की कोशिश में करीब 13 साल की एक लड़की ऊपर से नीचे फर्श पर गिर गई। उसे देखकर मुझे काफी दुख हुआ। मैंने एक सीढ़ी ली और सबसे पहले छात्रें को बाहर आने में मदद की। मैं इमारत के पिछले हिस्से से आठ-दस छात्रें को बचाने में सफल रहा। बाद में मैंने दो और छात्रें को बचा लिया।’ यह कहना है सूरत में जान जोखिम में डालकर बच्चों को बचाने के लिए आगे आने वाले स्थानीय युवक केतन पटेल का।

जब तमाम लोग वीडियो बनाने में मशगूल थे, इस युवक ने बिना देर किए आगे बढ़कर मदद की। बेशक फायर ब्रिगेड घटनास्थल पर देर से पहुंची और उसके पास सुरक्षा व बचाव के पर्याप्त  इंतजाम नहीं थे, अन्यथा निःसंदेह और बच्चों की जान बचाई जा सकती थी। आसपास के लोग तो तुरंत वहां इकठ्ठा  हो गए थे, पर ज्यादातर तमाशाई के रूप में। लोगों ने सोशल मीडिया पर बच्चों को ऊपर से नीचे कूदते-गिरते देखा और यह भी देखा कि कैसे केतन पटेल नामक युवक एक छज्जे के सहारे अकेले बच्चों को बचाने का प्रयास कर रहे थे।

लोग वीडियो बनाना छोड़ विवेक का इस्तेमाल करते हुए पहले मानव-जाल या चादरों का जाल बनाकर अधिक से अधिक बच्चों को बचाने की पहल कर सकते थे, तत्परता से गद्दे आदि बिछवा सकते थे। हालांकि बाद में ऐसा किया भी गया, लेकिन तब तक कई बच्चे कंक्रीट के फर्श पर गिरकर हताहत हो चुके थे। वैसे लोगों द्वारा वीडियो बनाकर वायरल करने का दृश्य लगभग पूरे देश में आम है। किसी घटना के शिकार पीड़ितों की आगे बढ़कर मदद करने की बजाय ऐसा करना एक तरह से उनकी संवेदनशीलता पर ही प्रश्नचिह्न लगाता है।

कोचिंग का कारोबारः कोचिंग और टड्ढूशन का कारोबार हर छोटे-बड़े शहर में खूब फलफूल रहा है। विश्वास न हो तो आप अपने शहर में ही इसकी पड़ताल कर लीजिए। जरा दिल्ली के मुखर्जी नगर में चले जाइए। वहां घुसते ही आपको हर तरफ कोचिंग का बाजार नजर आ जाएगा। जहां तक आपकी नजर जाएगी, कोचिंग संस्थानों के पोस्टर, बैनर से पटी नजर आएगी।

ताज्जुब की बात यह है कि ऊपर की मंजिलों पर बेशक बड़े-बड़े हॉल मिलजाएंगे, जहां दो सौ से चार सौ स्टूडेंट्स का एक साथ क्लास लिया जाता है, लेकिन अगर उनके प्रवेश द्वारों पर गौर करें तो वहां आपको बेहद संकरी पतली सीढ़ी मिलेगी। जबकि ऊपर की मंजिलों पर कक्षाओं में सैकड़ों-हजारों छात्र उपस्थित होते हैं। क्या किसी ने कभी सोचा है कि अगर वहां कोई हादसा हो जाए, तो क्या होगा? शायद नहीं।

पैसे कमाने की होड़ में न तो कोचिंग संस्थानों को इसकी परवाह है,न ही इनसे चढ़ावा लेने वाले पुलिस विभाग, नगर निगम और फायर ब्रिगेड आदि को ही। हां, जब सूरत जैसा कोई हादसा होता है, तो अचानक जैसे सब जाग जाते हैं और थोड़े समय तक जागे रहने के बाद फिर सब कुछ पहले जैसा ही हो जाता है। क्यों हो बाध्यता आज प्राथमिक कक्षाओं से लेकर हर तरह की प्रतियोगिता परीक्षाओं तक में पास होने की गारंटी कोचिंग ही मान ली गई है।

चाहे बच्चे हों या उनके मातापिता, सभी को यह लगता है कि अगर टड्ढूशन या कोचिंग नहीं ज्वाइन किया, तो पूरे अंक नहीं आएंगे और अंक नहीं आएंगे तो पास नहीं होंगे। जो बच्चे कोचिंग नहीं करते, क्या इंटर्नशिप जॉब्स वे पास नहीं होते? आज क्यों हर बच्चे के लिए कोचिंग करना जरूरी हो गया है? एक किसान और मजदूर भी क्यों कर्ज लेकर या खेत बेचकर भी अपने बच्चे को कोचिंग कराना चाहता है? सरकार का ध्यान इस ओर क्यों नहीं जाता?

दरअसल, यहां भी सवाल शिक्षा व्यवस्था और शिक्षकों की पारंपरिक सोच में आमूल-चूल बदलाव का ही है। अगर शिक्षा सिर्फ किताबी और परीक्षा पास करने के लिए होने की बजाय विद्यार्थियों की समझ-बूझ बढ़ाने पर केंद्रित हो और हमारे अध्यापक रटंत विद्या देने की बजाय खुद अपडेट रहते हुए बच्चों को इनोवेटिव बनने के लिए प्रेरित करें, तो न अंकों को लेकर मारामारी दिखेगी और न ही बच्चों और उनके माता-पिता को कोचिंग के लिए हैरान-परेशान होना पड़ेगा।

पढ़ाई के साथ सीखें लाइफ-स्किलः बेशक हमारे शासन-प्रशासन और इंफ्रास्ट्रक्चर में अभी काफी सुधार होना है, नासूर बन चुके भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने के लिए लोगों की सोच बदलने की दिशा में काम करना है, लेकिन इससे पहले स्कूलों-कॉलेजों में शिक्षा प्रदान करने के साथ-साथ बच्चों को लाइफस्किल भी सिखाने की उतनी ही जरूरत है। दुनिया के तमाम देशों में पढ़ाई के साथ-साथ ‘जीवन जीने की कला’ को प्राथमिकता के साथ पढ़ाया और डेमो क्लासेज/वर्कशॉप आदि के जरिए बखूबी समझाया भी जाता है। अगर हमारे यहां भी बच्चों को इस तरह की शिक्षा मिले, तो सूरत जैसा हादसा होने की स्थिति में असहाय हो जाने या घबराहट में ऊपर से कूद जाने की बजाय अपनी सूझबूझ का परिचय देते हुए वे बचने का रास्ता निकाल लेते। ऐसे संकट के समय अपना धैर्य बनाए रखते हुए बच्चे अपने कपड़ों-जीन्स आदि की रस्सी बनाकर उसके जरिए आसानी से नीचे उतरकर अपने विवेक और साहस का परिचय दे सकते थे।

न बनें भीड़ का हिस्सा

अगर आप समझदार छात्र हैं, तो कभी भी अपने दोस्तों या दूसरों को देखकर कोचिंग ज्वाइन करने के बारे में कतई न सोचें। आप सबसे पहले तो अपने भीतर की प्रतिभा देखें और यह समझें कि मन से किस दिशा में आगे बढ़ना चाहते हैं। जो क्षेत्र सबसे ज्यादा पसंद हो, उसी में आज के जमाने के हिसाब से कोर्स करने की दिशा में आगे बढ़ें। हां, सिर्फ अध्यापकों और कोर्स के भरोसे रहने की बजाय खुद से भी पहल करते हुए इंटरनेट या अन्य साधनों की मदद से व्यावहारिक/प्रैक्टिकल नॉलेज हासिल करने पर ज्यादा जोर दें, क्योंकि किताबी ज्ञान की बजाय यही अधिक काम आएगा। अगर आप अभिभावक हैं, तो बाहर देखने और बच्चे को दूसरों जैसा बनाने की बजाय अपने बच्चे को उसी दिशा में बढ़ाने के लिए प्रेरित करें, जो उसे सबसे ज्यादा पसंद हो। इससे बच्चा भी खुश होगा और अपनी उपलब्धियों से हमेशा आपको भी खुश और गौरवान्वित करता रहेगा।

सोचिए इन बातों पर---

1- घटना की खबर सुनकर आसपास के लोग तुरंत वहां इकट्टा तो हो गए थे, पर ज्यादातर तमाशाई ही बने रहे। सिर्फ केतन पटेल नामक युवक को एक छज्जे के सहारे बच्चों को बचाने का प्रयास करते देखा गया।

2- पैसे कमाने की होड़ में न तो कोचिंग संस्थानों को सुरक्षा मानकों की परवाह है, न ही इनसे चढ़ावा लेने वाले पुलिस विभाग, नगर निगम और फायर ब्रिगेड आदि को ही।

3- आज क्यों हर बच्चे के लिए कोचिंग करना जरूरी हो गया है? क्यों लोग कर्ज लेकर भी अपने बच्चे को कोचिंग कराना चाहते हैं?



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