FATF के एक्शन से मुश्किल में पाकिस्तान, अर्थव्यवस्था को चोट, डिफ़ॉल्टर का भी खतरा

2019-07-01 0


 

एफ़एटीएफ़ के फ़ैसलों ने पाकिस्तान की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। एफ़एटीएफ़ का अगला कदम पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के लिए ताबूत की आखिरी कील साबित हो सकता है।

दुनियाभर में चरमपंथ और आतंकवाद की फंडिंग पर नजर रखने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्था फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स ( Financial Action Task Force ) का कहना है कि पाकिस्तान आतंकी फंडिंग रोकने के लिए दिए निर्देशों का पालन निर्धारित समय (मई, 2019) तक करने में असफल रहा है। यही नहीं संस्था ने पाकिस्तान से यह भी दो टूक कह दिया है कि उसने अक्टूबर, 2019 तक आतंकवाद के खिलाफ संतोषजनक कदम नहीं उठाया तो उसे काली सूची में डाल दिया जाएगा यानि उसको प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है। एफएटीएफ की यह चेतावनी पाकिस्तान के लिए किसी सदमे से कम नहीं है। एफएटीएफ का अगला कदम पाकिस्तासन की अर्थव्यस्था के लिए ताबूत की आखिरी कील साबित हो सकता है। आइए करते हैं इससे पैदा होने वाली मुश्किलों की पड़ताल

खोखली होती अर्थव्यवस्था के लिए खतरे के संकेत

टेरर फंडिंग को लेकर एफएटीएफ की यह चेतावनी पाकिस्तान की जर्जर होती अर्थव्यवस्था के लिए खतरे का संकेत है। एफएटीएफ अगर पाकिस्तान को काली सूची में डाल देता है तो यह उसकी बदहाल आर्थिक स्थिति के लिए करारा झटका होगा। इस कदम से विदेशी कंपनियों के लिए पाकिस्तान में निवेश करना मुश्किल होगा। यही नहीं, बीमा कंपनियां पाकिस्तान में कारोबार के लिए ज्यादा प्रीमियम लेने लगेंगी, क्योंकि उसे ज्यादा जोखिम वाला बाजार माना जाएगा। इससे पाकिस्तान की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था और चरमरा जाएगी।

10 अरब डॉलर का लगेगा झटका

एफएटीएफ ने पाकिस्तान को जून, 2018 में निगरानी सूची (ग्रे लिस्ट) में रखा था। फिलहाल, अंतर्राष्ट्रीय संस्था ने पाकिस्तान को निगरानी सूची में ही रखने का फैसला किया है। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर यह फैसला भी काफी भारी पड़ने वाला है। यही वजह है कि पाक प्रधानमंत्री इमरान खान से लेकर विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी तक एफएटीएफ की काली सूची में आने की संभावना के प्रति देश को आगाह कर चुके हैं। कुरैशी ने यहां तक कहा था कि इससे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को 10 अरब डॉलर का नुकसान पहुंचेगा।

अंतर्राष्ट्रीय संस्थान पाकिस्तान को करेंगे डाउनग्रेड

एफएटीएफ के पाकिस्तान को निगरानी सूची (ग्रे लिस्ट) में बदस्तूर रखे जाने के फैसले ने पाकिस्तान की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं, क्योंकि इस कार्रवाई के बाद अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ), विश्व बैंक (डब्ल्यूबी) और यूरोपीय संघ (ईयू) जैसे संस्थान भी पाकिस्तान को डाउनग्रेड करेंगे। यही नहीं मूडीज, एसएंडपी और फिच जैसी एजेंसियां भी उसके जोखिम रेटिंग में कमी करेंगी, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति और खराब होने की संभावना है। उसे विदेशों से कर्ज मिलने में मुश्किलें पेश आएंगी। बता दें कि पाकिस्तान के कुल खर्चों का 30-7 फीसद हिस्सा कर्ज की किस्तों को भरने में ही चला जाता है।

---तो बढ़ेगा डिफॉल्टर होने का खतरा

पाकिस्तान को मनीला स्थित एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) ने 3-4 अरब डॉलर की मदद देने से इनकार कर दिया है। इससे पाकिस्तान की प्रतिष्ठा को चोट पहुंची है। हालांकि, आईएमएफ से उसे 22वें कर्ज के तौर पर राहत मिली है। पाकिस्तान में राजस्व घाटा आसमान छू रहा तो दूसरी ओर भुगतान संतुलन भी बेपटरी है। 2015 में पाकिस्तान का चालू खाता घाटा 2-7 अरब डॉलर था जो 2018 में बढ़कर 18-2 अरब डॉलर के और ऊपर पहुंच गया है। अर्थशास्त्र के जानकारों की मानें तो यदि पाकिस्तान की आर्थिक सेहत में सुधार नहीं आया तो इसके डिफॉल्टर होने का खतरा और बढ़ जाएगा।

लक्ष्यों को पूरा करने में विफल रहे इमरान

इस महीने की शुरुआत में आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट ने भी पाकिस्तान सरकार को मायूस किया है। जून में खत्म होने वाले वित्तीय वर्ष में पाकिस्तान की आर्थिक वृद्धि दर के 3-3 फीसद रहने का अनुमान व्यक्त किया गया है। यह पाकिस्तान के लक्ष्य 6-3 फीसद से काफी नीचे है। इतना ही नहीं, पाक की मौजूदा अर्थव्यवस्था में चालू खाता और बजटीय घाटा बेकाबू में  है, विदेशी कर्ज लगातार बढ़ रहा है तथा मुद्रा का अवमूल्यन भी जारी है। निवेशक का पाकिस्तानी बाजार से विश्वास घट रहा है, नतीजतन उनकी संख्या  में तेजी से कम हो रही है। इमरान सरकार लगभग सभी सेक्टरों में लक्ष्यों को पूरा करने में विफल रही है। हालात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सुरक्षा को लेकर तमाम चुनौतियों के बावजूद सेना अगले वित्तीय वर्ष के लिए रक्षा बजट को कम करने पर रजामंद हो गई है। 



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