कृषि क्षेत्र में इजरायली तकनीक का प्रयोग करके पैदावार में बढ़ोत्तरी

2019-07-01 0


  • इजरायल की तकनीक का हरियाणा की खेती और चेन्नई के जल शोधन में इस्तेमाल भारत में बिना शोर-शराबे के क्रांति ला रहा है
  • करनाल में सब्जियों के लिए सेंटर फॉर एक्सिलेंस भारत व इजरायल के बीच 2008-10 के एक्शन प्लान का है हिस्सा
  • यह हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान और गुजरात में सेंटर फॉर एक्सिलेंस की स्थापना पर केन्द्रित करता है ध्यान

इस केन्द्र में प्रशिक्षण के बाद एक किसान अवतार सिंह ने अपने खेत में पॉली हाउस स्थापित किया और आज खीरा और शिमला मिर्च की पैदावार खुले खेत के मुकाबले चार गुना बढ़ गई है। साथ ही आय में भी चार गुने का इजाफा हुआ।

चार साल पहले हरियाणा के कैथल जिले के 42 वर्षीय किसान अवतार सिंह गुड़गांव से गुजर रहे थे तो उन्होंने पहली बार एक खेत में काफी ज्यादा पॉलि हाउस (उच्च मूल्य वाले कृषि उत्पादों की रक्षा के लिए पॉलीथिन से बना घर) देखा। कुछ रिश्तेदारों से पूछताछ करने के बाद वह करनाल में 2010-11 में स्थापित इंडो-इजरायल परियोजना सेंटर एक्सिलेंस फॉर वेजिटेबल पहुंच गये।

सिंह को वहां इजरायल की कृषि तकनीक, कम लागत वाली ड्रिप सिंचाई की व्यवस्था और रोगमुक्त पौध बनाने के बारे में जानकारी मिली। उन्हें बिना सीजन वाली सब्जी उगाने का तीन दिन का प्रशिक्षण मिला। सिंह ने कहा, प्रशिक्षण के बाद हमने अपने खेत में पॉलि हाउस स्थापित किया और आज खीरा और शिमला मिर्च की पैदावार खुले खेत के मुकाबले चार गुना बढ़ गई है। साथ ही आय में भी चार गुने का इजाफा हुआ।

करनाल में सब्जियों के लिए सेंटर फॉर एक्सिलेंस भारत व इजरायल के बीच 2008-10 के एक्शन प्लान का हिस्सा है। यह हरियाणा, महाराष्ट्र, राजस्थान और गुजरात में सेंटर फॉर एक्सिलेंस की स्थापना पर ध्यान केन्द्रित करता है। साल 2013 में उपोष्ण कटिबंधीय फलों के लिए भारत-इजरायल सेंटर फॉर एक्सिलेंस सिरसा जिले में खोला गया। इजरायल ने ड्रिप सिंचाई की तकनीक से वहां की खेती में बदलाव कर दिया।

करनाल में बागवानी के उपनिदेशक दीपक कुमार दत्तरवल ने कहा, 2010-11 में केन्द्र खोले जाने के बाद उन्होंने 15,000 किसानों को प्रशिक्षण दिया है। उन्होंने कहा, किसान बागवानी की ओर बढ़ रहे हैं क्योंकि पारंपरिक फसलों मसलन गेहूं व धान के मुकाबले इसमें ज्यादा लाभ है। अन्य कारण मिट्टी का क्षरण, जमीन के आकार में सिकुड़न और भूजल का गिरता स्तर है।

हरियाणा सरकार के आंकड़ों से पता चलता है कि कुल 44.23 लाख हेक्टेयर में से करीब 50 फीसदी क्षेत्र मिट्टी क्षरण, लवणता और जलजमाव आदि से समस्याग्रस्त है। साथ ही जरूरत से ज्यादा पानी के दोहन के चलते कुल 22 जिले में से 10 को पहले से ही डार्क जोन में रख दिया गया है। लेकिन इजरायल की तकनीक के फायदे और बढ़ते लाभ के बावजूद हरियाणा में बागवानी में तेज रफ़्तार से इजाफा नहीं हो रहा है। किसानों व विशेषज्ञों ने कहा कि यह मुख्य रूप से उच्च निवेश और इससे जड़े जोखिम के चलते है।

एक एकड़ में पॉलि हाउस स्थापित करने की लागत करीब 30 लाख रुपए है, जिसमें से 65 फीसदी हरियाणा सरकार से सब्सिडी मिलती है। सिंह ने कहा, अभी भी किसानों को 10-12 लाख का इंतजाम खुद करना होता है। किसान क्रेडिट कार्ड की उधारी सीमा 3 लाख रुपए तक है। ऐसे में किसानों को या तो साहूकारों या बैंक पर निर्भर होना पडता है। साथ ही इससे जोखिम भी जुड़ा है। अगर फसल नाकाम होती है तो उन्हें भारी ब्याज लागत और उच्च इनपुट लागत का भार सहना होता है। 50 फीसदी किसानों के साथ ऐसा हुआ है जिन्होंने बिना प्रशिक्षण के इस तकनीक पर हाथ आजमाने की कोश्शि की। हर तीन साल पर पॉलीथिन बदलने की लागत 3 लाख रुपए बैठती है।

हरियाणा सरकार एक किसान को सिर्फ एक एकड़ जमीन पर ही सब्सिडी मुहैया कराती है। चेन्नई में भी इजरायल की एक तकनकी वहां के वाशिंदों को राहत पहुंचा रहा है। ईस्ट कोस्ट रोड पर 20 से ज्यादा एकड़ में फैले नीमली डीसैलिनेशन प्लांट चेन्नई में पेय जल का प्रमुख स्रोत बन गया है। इसका निर्माण इजरायल की आईडीई टेक्नोलॉजिज  ने किया है और 2013 में परिचालन शुरू होने के बाद से वहां रोजाना 10 करोड़ लीटर पानी की आपूर्ति कर रहा है। यह संयंत्र समुद्री जल को पेय जल में बदलता है और इसकी आपूर्ति चेन्नई के दक्षिण उपनगरीय इलाकों में 10 लाख लोगों को करता है। 



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