बच्चों को सिखाएं रिश्तों की अहमियत

2019-07-01 0


अपने परिवार को जोड़े रखने और समाज में स्वस्थ वातावरण के लिए रिश्तों की भूमिका सराहनीय है। इसे और अधिक पुख्ता करने के लिए जरूरी सावधानियां और सुझाव !!!

जैसे-जैसे व्यक्ति आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है,वैसे-वैसे देश और समाज में उन्नति भी दिखाई पड़ रही है।

लेकिन जैसा सभी जानते हैं कि जहां कुछ अच्छा होता है, वहां कुछ बुरा भी होता है। ऐसी ही कुछ दशा आज के आधुनिक जीवनशैली अपना चुके बच्चों की भी है। कहने को तो वे पहले से अधिक प्रतिभावान हैं पर वे अपने जीवन के कुछ महत्वपूर्ण रिश्तों को खोते जा रहे हैं, जिसका उन्हें एहसास नहीं है।

अगर उन्हें टोका जाता है तो एक झटके से माता-पिता या टोकने वाले को दकियानूसी विचार वाला कहते हुए आगे बढ़ जाते हैं। रिश्ते उनके लिए बोझ बनते जा रहे हैं। उनकी नैतिकता और मानसिकता बदल चुकी है।

पाबंदी नागरवार-इसके बारे में मनोरोग चिकित्सक कहते हैं, ‘‘बच्चों द्वारा रिश्तों के अनादर का हमारे समाज पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। आज के बच्चे माता-पिता, बुजुर्ग या शिक्षकों तक किसी को भी उतना आदर या अहमियत नहीं देते, जितना देना चाहिए। इसकी वजह आज की एकाकी परिवार प्रथा है। जहां बच्चे अपने माता-पिता के साथ रहते हैं। उनके काम पर चले जाने के बाद या तो वे अकेले घर पर रहते हैं या फिर मेड सर्वेन्ट की देखभाल या डे-केयर में समय बिताते हैं। ऐसे में अगर उनके परिवार में कोई बड़ा-बुजुर्ग आ जाए तो उन्हें पाबंदी महसूस होने लगती है। फलस्वरूप वे उनका अपमान करने से भी नहीं कतराते। उनकी दुनिया माडर्न गैजेट्स में समाई रहती है।

सोच पर असर-‘‘माता-पिता भी थके-हारे जब घर लौटते हैं तो बच्चों के किसी भी फरमाइश की जांच किए बिना तुरंत उनकी फरमाइश पूरी कर डालते हैं। बच्चों को ऐसा बनाने में मीडिया भी काफी हद तक जिम्मेदार है, जिसमें टीवी शोज की प्रमुख भूमिका है। जैसे ‘रिऐलिटी शोज’ के नाम पर भड़काऊ शब्द और वाक्यों का प्रयोग करके शो की टीआरपी बढ़ाने की जो तकनीक अपनाई जाती है बच्चे उसका आनंद तो लेते ही हैं, साथ ही उनकी सोच पर भी उसका असर होता है।

काउंसलर के हवाले- ‘‘अगर बच्चा घर में कुछ गलत काम करता है तो आरोप पिता पर लगता है, लेकिन वही पिता चॉकलेट लेकर घर आकर बच्चे के हाथ में थमा देते हैं। स्कूल में भी काउंसलर के नाम पर व्यापार है, जहां स्कूल अपनी जिम्मेदारी काउंसलर के सहारे माता-पिता पर डालता है। नतीजा, माता-पिता के वश में बच्चा नहीं रह जाता। कई बार माता-पिता काउंसलर के आगे अपने बच्चे की बिगड़ी आदतों का रोना रोते हैं, लेकिन उन्हें कोई दिशा नहीं मिल पाती।’’

आर्थिक आजादी घातक है- डॉक्टर कहते हैं, ‘‘आधुनिकता की होड़ में ये बच्चे रिश्तों का मजाक बना चुके हैं, जिसे ठीक करना आसान नहीं है। माता-पिता के हाथ से बच्चे निकल चुके हैं।

‘‘दरअसल, उन्हें समझाने की जरूरत है कि रिश्ते क्यों जरूरी हैं, उन्हें कैसे संभालना है। इस बारे में माता-पिता को बच्चों के साथ चर्चा करना जरूरी है, जो कम उम्र से ही शुरू होनी चाहिए।’’

अपने अनुभव के बारे में डॉक्टर कहते हैं, ‘‘एक सब्जी वाले ने मुश्किल से बेटे को पढ़ाया। जब बेटा कमाने लायक हुआ तो कमाकर उन पैसों को वह अपने ऐशो-आराम पर खर्च करने लगा। माता-पिता से वह अलग रहने लगा क्योंकि उसकी जीवनशैली में माता-पिता का कोई स्थान नहीं था। इसलिए समय रहते रिश्तों के बारे में बताना जरूरी है। पश्चिम की आर्थिक आजादी पारिवारिक दृष्टि से घातक है। अमेरिका के लोग भी पारंपरिक भारतीय रिश्तों को ही सही मानते हैं।’’

कुछ बातें रिश्तों के लिए

  • बच्चे को अगर रिश्ते के बारे में 5 साल के बाद से समझाना शुरू कर दें।
  • अगर वह कुछ बातें न माने तो उसे तर्कसंगत ढंग से समझाएं।
  • रिश्तों के महत्व को बताएं, जो आगे चलकर उसकी व्यस्त जीवनशैली में टॉनिक का काम करेगा।
  • माता-पिता को जब भी समय मिले रिश्तेदारों के पास बच्चे को ले जाएं, वहां के तौर-तरीके उसको सिखाएं।
  • माता-पिता खुद ही बच्चे के सामने रिश्तों का मजाक न उड़ाएं। बल्कि उनके प्रति सम्मान प्रकट करें क्योंकि बच्चे बातों से कम उदाहरणों से अधिक सीखते हैं।
  • उन्हें ऐसे संबोधनों और शब्दों का ज्ञान करवाएं, जिनसे रिश्ते बनते और बिगड़ते हैं।
  • बच्चा अगर किसी रिश्ते का मजाक उड़ाता है तो आप उसमें सहभागी न बनें, बल्कि उसके दुष्परिणामों के बारे में बताएं।
  • अपने परिवार की पंरपरा और संस्कार की जानकारी भी बचपन से दें। बड़े होने पर बच्चा खुद नहीं सीख सकेगा।
  • उसे धैर्यवान बनने के लिए प्रेरित करें, जो उसके आगे आने वाली जीवनशैली और रिश्तों को मधुर बनाने में कारगर होगी।

घर के बुजुर्ग, शिक्षक व पास-पड़ोस के लोगों से बात करने के तरीके बताएं। अगर न माने तो समझाएं।

समाज व परिवार-बदलते परिवेश में रिश्तों की परिभाषा जरूर बदली है पर अहमियत हमेशा रही है और रहेगी भी। पाश्चात्य संस्कृति और आधुनिक शिक्षा पद्धति इसे धूमिल नहीं कर सकती।

एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि किसी स्वस्थ रिश्ते से व्यक्ति को 85 प्रतिशत खुशी मिलती है, जबकि उपलब्धियों से केवल 15 प्रतिशत यही वजह है कि समय रहते अगर माता-पिता बच्चों को रिश्तों की अहमियत को समझाएंगे तो एक सभ्य और उन्नत संस्कृति की नींव अवश्य बनेगी जिसका लाभ समाज और परिवार दोनों को होगा। 



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