इलेक्ट्रिक वाहनों का इस्तेमाल बढ़ाने की सरकारी पहल

देश में इलेक्ट्रिक वाहनों के प्रोत्साहन के लिए तमाम नीतिगत कदम
उठाए गए हैं। इन वाहनों के साथ कई लाभ जुड़े हैं। वे शून्य-उत्सर्जन के साथ शोर भी
बहुत कम करते हैं। प्रति किलोमीटर उपभजोग के संदर्भ में विद्युत ऊर्जा काफी सस्ती
पड़ती है। इन वाहनों के इंजन में आंतरिक दहन (आईसी) इंजनों की तुलना में गतिशील
हिस्से कम होते हैं। इस वजह से उनका रख रखाव आसान होता है और उनके ठप हो जाने की
आशंका कम होती है। हाइब्रिड इंजनों के लिए भी यह बात सही है क्योंकि उसमें आईसी
इंजन को कम क्षति होती है।
हालांकि इलेक्ट्रिक वाहनों की कीमतें इनका एक नकारात्मक पहलू है।
करों में कटौती के बावजूद इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड वाहनों की कीमतें आईसी इंजन वाले
वाहनों से काफी अधिक होती हैं। परिचालन लागत कम होने से इसकी थोड़ी भरपाई होती है
फिर भी फर्क अधिक है। सुरक्षा का मुद्दा भी है। इलेक्ट्रिक वाहनों में आग लगने पर
उसे बुझा पाना बहुत मुश्किल होता है। लिथियम-आयन बैटरी की आग बुझाए जाने के कई
घंटे बाद भी शॉर्ट-सर्किट होने से दोबारा आग भड़क सकती है। अग्निशमन विभाग को बैटरी
चालित वाहनों में लगी आग बुझाने के लिए नए सिरे से प्रशिक्षित करने की जरूरत है।
इलेक्ट्रिक वाहन को चार्ज करने में अधिक वक्त लगता है। यहां तक कि फास्ट रिचार्ज
करने में भी कम-से-कम 20 मिनट लग जाते हैं। बैटरी की अदला-बदली एक जल्दबाजी वाला विकल्प है
लेकिन वह भी पेचीदा काम है। अलग-अलग वाहनों को अलग तीव्र एवं सुस्त चार्जिंग
स्टेशनों की जरूरत होती है।
इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए जरूरी ढांचागत आधार तैयार करना एक चुनौती है। देश भर में 60,000 से अधिक पेट्रोल पंप हैं। इससे एक अंदाजा मिलता है कि बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रिक वाहन अपनाने के लिए कितने चार्जिंग स्टेशनों की जरूरत पड़ेगी? बैटरी चालित वाहनों की सर्विसिंग, रख रखाव और मरम्मत के लिए अपने कर्मचारियों को नए सिरे से प्रशिक्षित करने की भी जरूरत होगी। मार्च 2019 में मंत्रिमंडल ने 10,000 करोड़ रुपये वाले फेम-2 कार्यक्रम को हरी झंडी दिखाई थी। हाइब्रिड एवं इलेक्ट्रिक वाहनों के तीव्र अंगीकरण एवं विनिर्माण (फेम) के पहले कार्यक्रम की शुरुआत 1 अप्रैल, 2015 को 895 करोड़ रुपये के बजट के साथ हुई थी। दो साल की अवधि वाले फेम-1 कार्यक्रम की मियाद कई बार बढ़ाई गई।
फेम-2 के लिए सरकार ने तीन साल की अवधि तय की है। इसका लक्ष्य 10 लाख दोपहिया, 5 लाख तिपहिया, 55 हजार चार-पहिया और 7,000 बसों को मदद देना है। इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री निम्न आधार होने से बहुत तेजी से बढ़ रही है। इलेक्ट्रिक वाहन विनिर्माता सोसाइटी का दावा है कि वर्ष 2018-19 में 6-3 लाख इलेक्ट्रिक ऑटो-रिक्शा और 1-26 लाख दोपहिया वाहन और करीब 3,600 यात्री कारों की बिक्री हुई। यह 1-9 करोड़ से अधिक दोपहिया-तिपहिया वाहनों की बिक्री के चार फीसदी से भी कम है और 30 लाखसे अधिक कारों के एक फीसदी से भी कम है।
फेम-2 कार्यक्रम के तहत 2019-20 में 1500 करोड़ रुपये,
2020-21 में 5,000 करोड़ रुपये और 2021-22 में 3,500 करोड़ रुपये दिए
जाएंगे। इस कार्यक्रम में 35,000 चार-पहिया इलेक्ट्रिक वाहनों को 1-5
लाख रुपये और 20,000 हाइब्रिड चार-पहिया वाहनों को 13,000 रुपये की
सब्सिडी दी जाती है। इसके अलावा 7,090 ई-बसों को 50-50 लाख रुपये की
सब्सिडी दी जाएगी। दिल्ली की इलेक्ट्रिक वाहन नीति 2018 के मसौदे में
वर्ष 2023 तक पंजीकृत होने वाले सभी नए वाहनों में 25 फीसदी हिस्सा
इलेक्ट्रिक वाहनों के पहुंचाने का लक्ष्य है और हरेक तीन किलोमीटर पर बैटरी
एक्सचेंज सेंटर और चार्जिंग स्टेशन बनाने
का उद्देश्य है। दिल्ली में सालाना करीब सात लाख नए वाहनों का पंजीकरण होता
है।
दिल्ली की इस नीति में फेम-2 कार्यक्रम के तहत दी जाने वाली
सुविधाओं के अलावा भी काफी कर-छूट एवं सब्सिडी देने का जिक्र है। एक इलेक्ट्रिक
दोपहिया को 22,000 रुपये तक की सब्सिडी देने के अलावा बैटरी बदलने पर भी अलग से
सब्सिडी मिलेगी। बीएस-2 या बीएस-3 मानक वाले दोपहिया वाहनों को कबाड़ में देने पर 15,000
रुपये का कैशबैक भी मिलेगा। सभी इलेक्ट्रिक वाहनों को रोड टैक्स, पंजीकरण,
एमसीडी
पार्किंग शुल्कों से छूट मिलती है और ई-ऑटो या ई-कैब के हरेक फेरे पर 10
रुपये का कैशबैक मिलेगा। दिल्ली सरकार मौजूदा वित्त वर्ष में 1,000
इलेक्ट्रिक बसें भी खरीदने जा रही है।
शहरी इलाकों में हरेक तीन किलोमीटर और राजमार्गों पर हरेक 25
किलोमीटर दूरी पर एक चार्जिंग स्टेशन मुहैया कराने का लक्ष्य देखते हुए फेम-2 के
तहत चार्जिंग स्टेशनों को लाइसेंस-मुत्तफ़ किया गया है। हरेक चार्जिंग स्टेशन पर
फास्ट चार्ज और स्लो चार्ज के लिए अलग प्लग-प्वाइंट लगाने की जरूरत होती है। फास्ट
चार्ज सिस्टम में एक कंबाइंड चार्जिंग सिस्टम और एक चाडेमो प्लग लगा होता है
जिसमें 200-1000 वोल्ट के 50 किलोवाट के कनेक्शन होते हैं। वहां 380-480
वोल्ट के 22 किलोवाट क्षमता वाले टाइप-2 एसी फास्ट चार्जर की भी जरूरत होती
है। इसके अलावा स्लो चार्जिंग के भी दो प्वाइंट- भारत एसी 001 और
भारत डीसी 001 रखने होते हैं।
इलेक्ट्रिक वाहनों की संख्या बढने के लिए इनकी कीमतों का कम होना और बैटरियों की लागत में कमी आना जरूरी है। चार्ज स्टेशनों और दक्ष सेवा कर्मचारियों की संख्या भी निश्चित रूप से बढ़ेगी। लेकिन इसमें वक्त लगेगा। मौजूदा रुख के हिसाब से भारत में दोपहिया एवं तिपहिया इलेक्ट्रिक वाहनों के पहले रफ्रतार पकड़ने की संभावना है और किराये की सवारी के तौर पर लोग इनका अधिक इस्तेमाल करेंगे। हालांकि माहौल बदलने और कीमतों में कमी आने पर निजी उपयोग भी बढ़ सकता है।