भाजपा के खिलाफ़ लड़ाई की तैयारी - डॉ- उदित राज

भारतीय जनता पार्टी का पुनः सत्ता में आने पर कांग्रेस सपा-बसपा सहित
अन्य पार्टियां अपनी हार का आंकलन करने
में लग गईं जिसमें अनेक प्रकार के मुद्दे शामिल हैं। इसमें कई पार्टियों ने ईवीएम
में गड़बड़ी का आरोप लगाया कि भाजपा इतनी प्रचंड बहुमत से कैसे जीत गई। सभी
पार्टियों ने अपने वर्तमान सांसद में कइयों के टिकट काटे, कई नये चेहरे
सांसद पहुंचे। लेकिन एक खबर जो सर्वश्रेष्ठ सांसद का अवार्ड प्राप्त किया
जिन्हाेंने सबसे ज्यादा जनता दरबार लगाकर लोगों की समस्याओं का निपटारा किया जिनके
अपने संगठन अनुसूचित जाति-जनजाति परिसंघ के बैनर तले रामलीला मैदान दिल्ली में
लाखों लोगों की भीड़ प्रतिवर्ष एकत्रित होती है। उसके अध्यक्ष डॉ- उदित राज का टिकट
काट दिया। जिसकी प्रतिक्रिया पूरे देश में हुई कि आखिर भाजपा ने ऐसा क्यों किया।
इतने बड़े जनाधार वाले नेता से भाजपा ने नाराजगी मोल क्यों ली?
जब
डॉ- संसद में लगातार अपने संसदीय क्षेत्र के अलावा पूरे देश के दलितों से जुड़े
मुद्दे उठाने लगे तो भाजपा नेताओं की आंखों में खटकने लगे। शायद भाजपा को दबंग
दलित नेता रास नहीं आया जो पार्टी के इशारों पर चले। पार्टी कहे दिन है तो दिन है,
रात
है तो रात है। उदितराज इस कहावत पर खरे नहीं उतरे जबकि भाजपा को यह पता होना चाहिए
कि उदित राज जब इन्कम टैक्स में एडिशनल कमिश्नर थे तब भी तत्कालीन सरकारोें के
खिलाफ बोलते आये, तब की सरकार भी डॉ- के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की, शायद
सरकारों को इनके पीछे के जन-समर्थन का एहसास था। एहसास तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी को भी है। जब डॉ- ने रामलीला मैदान में अपने संगठन की रैली की थी, तब
अगले दिन संसद भवन में रैली को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने डॉ- उदित राज
से बात की और रैलीकी चर्चा की, लेकिन पेंच तो तब से ज्यादा फंसा जब 2
अप्रैल को दलितों द्वारा केन्द्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ भारत बंद बुलाया
जिसका डॉ- ने खुलकर सपोर्ट किया। दूसरा योगी सरकार द्वारा भीम आर्मी के संस्थापक
को जेल में डालने पर डॉ- ने रिहाई की मांग की, उत्तर प्रदेश के
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राजस्थान विधानसभा के चुनावों में हनुमान को दलित
बताया, तब संघ व भाजपा ने योगी से किनारा किया लेकिन उदित राज ने मीडिया के
माध्यम से योगी को जाति बताने पर धन्यवाद दिया। तब से देश के एक बुद्धिजीवी वर्ग
को एहसास हो गया था कि भाजपा शायद इनको टिकट दे। हालांकि डॉ- ने अपने संसदीय
क्षेत्र को काफी मजबूत रखा। खैर जब टिकट कट ही गया तो गुस्सा आना भी लाजिमी था।
क्योंकि डॉ- ने अपनी पार्टी इंडियन जस्टिस पार्टी को भाजपा में विलय किया था।
शर्तें क्या थीं यह तो भाजपा व उदित राज के बीच का मामला है।
मौके की नजाकत को देखते हुए डॉ- को कांग्रेस अपने पाले में ले आयी।
कांग्रेस ने डॉ- को राज्यसभा व दिल्ली विधानसभा में बतौर मुख्यमंत्री पेश करे,
क्या
करे, पार्टी व डॉ- के बीच में क्या बात हुई, यह तो आने वाला
समय ही बताएगा। लेकिन जो गलती भाजपा ने की, शायद ही वो गलती
कांग्रेस करे। क्योंकि उदित राज के माध्यम से बसपा के वोटों में कांग्रेस सेंध लगा
सकती है जो कभी कांग्रेस का वोट बैंक होता था। क्योंकि डॉ- के संगठन में 10
लाख लोग जुड़ेहोने का दावा किया जाता है जो रामलीला मैदान में देखने को मिलता है।
इतने बड़े जन-समर्थन के कारण किसी भी नेता को राष्ट्रीय स्तर का नेता बनाने के लिए
पर्याप्त है। लेकिन भाजपा द्वारा टिकट नहीं दिये जाने पर देश भर के दलितों की
सहानुभूति जरूर डॉ- को मिली जिसकी झलक 6 और 7 जुलाई दो
दिवसीय मांवलकर हाल कार्यक्रम में मिली जिसमें मुख्य मुद्दा ईवीएम को हटाने को था।
समस्त दलित बुद्धिजीवियों से आह्नान किया कि आने वाले समय में इसको राष्ट्रव्यापी
अभियान बनाएं, जबकि ये अभियान तो कांग्रेस का है उसको छेड़ना चाहिए जबसे रामविलास
पासवान व रामदास अठावले संसद में दलित मुद्दे पर मौन हैं चाहे वो मुद्दा 2 अप्रैल
का हो या अन्य दोनों के प्रति दति समाज में नाराजगी देखी गई है। अब देश में बसपा
सुप्रीमो मायावती व डॉ- उदित राज ही हैं जो दलितों की लड़ाई लड़ते हैं। लेकिन दोनों
नेता अब संसद का हिस्सा नहीं हैं तो दलित मुद्दों को कौन उठाएगा। वैसे तो एससी और
एसटी के संसद सदस्य 131 हैं लेकिन ज्यादातर अपनी टिकट व राजनीति बचाने के लिए चुप रहते हैं।
उन्हें डर है कि उनके द्वारा उठाये गये मुद्दे से पार्टी हाईकमान नाराज न हो जाये,
कहीं
उनकी राजनीति खत्म न हो जाये। जो काम इन सांसदों को करना चाहिए था वो उसुदीन ओवेशी
ने किया। जब संसद में ओवेशी शपथ के लिए खड़ा हुआ तो ओवेशी ने जय भीम बोला जबकि कई
सांसदों ने जय श्रीराम का नारा लगाया। ये संसद के इतिहास में विचित्र स्थिति पहली
बार हुई।
खैर, कांग्रेस में उदित राज की भूमिका क्या रहेगी सरकारी कम्पनियों को निजी क्षेत्र से बचाना, चुनाव बैलेट पेपर से कराना, आरक्षण बचाना, संविधान बचाना। ये सभी मुद्दे इन्होंने अपने 6 और 7 जुलाई के कार्यक्रम में अपने संगठन के पदाधिकारियों के साथ मिलकर तय कर दिये। अब ये देखना है कि ये सभी मुद्दे सड़क पर लड़ने के लिए एक कांग्रेस नेता के तौर पर लड़ेंगे या फिर अपने संगठन के माध्यम से। अब कांग्रेस डॉ- के साथ मिलकर लड़ेगी। पहले के अनुभव के आधार पर देखने को मिला, सरकारें सामाजिक आन्दोलन के आगे झुकी हैं। सरकार चाहे किसी की भी हो, जनता में अपनी छवि खराब नहीं करती।