बजट 2019 आर्थिक सुधाारों पर जोर देने वाला, लेकिन संरक्षणवादी है

वित्त मंत्री निर्मला सीतारामण ने जो बजट पेश किया उसने वित्तीय
मजबूती बनाए रखने के नरेंद्र मोदी सरकार के रेकार्ड को कायम रखने के साथ ही राजस्व
बढ़ाने के उसके प्रयासों को मजबूती देने के कई उपाय भी किए। मोदी सरकार के दूसरे
कार्यकाल के पहले बजट ने कई और नए आर्थिक सुधारों को रेखांकित किया- मसलन निजीकरण
की ओर बड़ी पहल, एफडीआई नीति के साथ ही विदेशी निवेशकों के लिए और छूट, किराये
के घरों के लिए नई नीति, बिजली वाली कारों के प्रयोग में तेजी
लाने के लिए प्रोत्साहन, आवास योजनाओं के वास्ते सार्वजनिक
उपक्रमों के कब्जे वाली जमीन को मुत्तफ़ करना, लघु एवं मझोले
उद्यमों के लिए सरल भुगतान नीति, आदि।
लेकिन वित्त मंत्री ने राजस्व बढ़ाने के लिए कई तरह के करों का
प्रस्ताव रखा, पेट्रोलियम सेक्टर में हाथ डाला और संरक्षणवाद को बढ़ावा दिया। इस तरह,
उन्होंने
अमीरों पर आयकर बढ़ाया, पेट्रोल और डीजल पर अतिरिक्त कर और अधिभार लगाया, तीन
दर्जन से ज्यादा चीजों पर कस्टम ड्यूटी बढ़ाई, ताकि घरेलू
उद्योगों को समान अवसर हासिल हों।
करों के इतर दूसरे स्रोतों से आने वाले राजस्व के लिए उन्होंने
विनिवेश से होने वाली आय में 31 प्रतिशत वृद्धि लाने का प्रस्ताव किया
है। इसके साथ ही, रिजर्व बैंक और दूसरे वित्तीय संस्थानों से प्राप्त होने वाले लाभांश
एवं सरप्लस में 43 प्रतिशत की वृद्धि लाने का भी प्रस्ताव किया। उन्हें आशा है कि
जालान कमिटी केंद्रीय बैंक से ज्यादा सरप्लस दिए जाने की सिफारिश करेगी। राजस्व
बढ़ाने के इन उपायों की मदद से सीतारामण ने 2019-20 के लिए जीडीपी
के मुकाबले 3-3 प्रतिशत के वित्तीय घाटे का अनुमान पेश किया, जो कि 2018-19
में 3-4 प्रतिशत था। यह राजस्व व्यय को नीचा दिखाने की जद्दोजहद के बाद
हासिल किया गया था। राजस्व व्यय को नीचा इसलिए दिखाया गया ताकि पिछले वर्ष के
संशोधित अनुमान की तुलना में कुल कर राजस्व में 1-67 खरब की भारी
गिरावट की भरपाई की जा सके।
गौरतलब है कि सीतारामण ने अपने बजट में 2018-19 के लिए राजस्व
तथा व्यय के अनुमानित हिसाब नहीं पेश किए, जिन्हें कंट्रोलर ऑफ जेनरल एकाउंट्स ने
अंतिम रूप दे दिया है। इसकी बजाय वित्त मंत्री ने फरवरी 2019 के अन्तरिम बजट
में पेश किए गए उन्हीं संशोधित आंकड़ों को रख दिया।
2019-20 के लिए वित्तीय घाटे में जो मामूली कमी प्रस्तावित की गई है उसे
करों के मामले में कई उपाय करके हासिल करने का इरादा जताया गया है। ये उपाय हैं-
उत्पाद शुल्क से होने वाली आय में 15 प्रतिशत की वृद्धि करना (मुख्यतः
पेट्रोल-डीजल पर अतिरित्तफ़ उत्पाद और अधिभार शुल्क लगाकर), कस्टम डड्ढूटी
से आमद में 20 प्रतिशत की वृद्धि करना (प्लास्टिक, ऑटोमोबाइल के
कलपुर्जों, इलेक्ट्रॉनिक सामान, इस्पात के समान, अखबारी कागज और
छपी हुई किताबों समेत 37 जीन्सों पर शुल्क बढ़ाकर) और आयकर से आमद में 21
प्रतिशत की वृद्धि करना (मुख्यतः 2 करोड़ की कर योग्य सालाना आय वालों के
लिए सरचार्ज बढ़ाकर प्रभावी टैक्स में 3-7 प्रतिशत का इजाफा करके)।
करों पर लगाए जाने वाली इन लेवियों से केंद्र को ही ज्यादा लाभ होगा,
क्योंकि
इनमें से कई उपाय सरचार्ज या सेस के जरिए किए गए हैं, जिन्हें राज्यों
के साथ साझा नहीं किया जाता। इसलिए इन उपायों से केंद्र के राजस्व संग्रह में
वृद्धि दहाई वाले आंकड़े में होगी। लेकिन इस वृद्धि में राज्यों का हिस्सा केवल 6
प्रतिशत बढ़ेगा, जो 2018-19 के 7-6 खरब से बढ़कर 2019-20 में 8-1 खरब हो जाएगा।
वैसे, सीतारमण ने भारतीय कंपनी जगत को पूरी तरह निराश नहीं किया है।
उन्होंने घोषणा की कि 400 करोड़ तक के सालाना टर्नओवर वाली
कंपनियों के लिए कॉर्पाेरेट टैक्स 30 से घटाकर 25 प्रतिशत किया
जा रहा है। पहले, 25 प्रतिशत टैक्स 250 करोड़ तक के सालाना टर्नओवर वाली
कंपनियों के लिए लागू था। टैक्स रेट में कमी के कारण 99-3 प्रतिशत
कंपनियां 25 प्रतिशत टैक्स रेट का लाभ उठा सकेंगी। लगभग पांच साल पहले, मोदी
सरकार ने सभी कंपनियों के लिए 25 प्रतिशत का कॉर्पाेरेट टैक्स लागू
करने का विचार पेश किया था।
इसी तरह, सीतारामण ने कंपनियों और व्यत्तिफ़यों के लिए एक साल में नकदी के
उपयोग की सीमा तय करने का कड़ा फैसला भी सुनाया, ‘व्यापार संबंधी
भुगतान नकदी में न हो इसके लिए मैं किसी बैंक खाते से 1 करोड़ रु- से
ज्यादा की नकदी निकासी पर स्रोत पर ही 2 प्रतिशत लेवी टैक्स कटौती लगाने का
प्रस्ताव रख रही हूं।’
वित्त मंत्री ने अपने बजट में आर्थिक सुधारों पर जोर देने में कोई
कोताही नहीं बरती है। उन्होंने निजीकरण नीति की रूपरेखा पेश की, जिसके
तहत सरकार अलग-अलग सार्वजनिक उपक्रमों (पीएसयू) के लिए 51 प्रतिशत की
सीमा से भी नीचे जा सकती है। पीएसयू में सरकारी इक्विटीज का रणनीतिक विनिवेश एक
प्राथमिकता बनी रहेगी, लेकिन सूचीबद्ध पीएसयू के लिए 25 प्रतिशत की
सार्वजनिक शेयर होल्डिंग का मानदंड कायम रहेगा। बजट ने यह भी संकेत दिया कि रेलवे
में सेवाएं देने के लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल के तहत निजी क्षेत्र को
ज्यादा बड़ी भूमिका दी जा सकती है।
कई संभावनाओं से भरे कदम के तौर पर वित्त मंत्री ने सरकार के इस
इरादे की भी घोषणा की कि वह विदेशी मुद्रा वाले बाहर के बाजारों में कुल उधारी
कार्यक्रम के एक हिस्से को बढ़ा सकती है। इससे घरेलू बाजार में सरकारी प्रतिभूतियों
की मांग पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा। उन्होंने सरकार द्वारा जारी ट्रेजरी बिलों और
प्रतिभूतियों में खुदरा निवेश को बढ़ाने के उपाय करने का भी प्रस्ताव किया।
वित्तीय क्षेत्र के लिए, सीतारामण ने सरकारी बैंकों को फिर से
पूंजी मुहैया कराने के वास्ते 70 हजार करोड़ देने की घोषणा की, रिजर्व
बैंक को आवास वित्त सेक्टर की जिम्मेदारी सौंपी, और सरकारी
बैंकों को वित्तीय रूप से ठोस गैर-बैंकिंग कंपनियों की 1 खरब मूल्य की
परिसंपत्तियों की खरीद पर आंशिक क्रेडिट मुहैया करने की योजना पेश की।
एफडीआई संबंधी नीति के मामले में वित्त मंत्री ने उîóयन,
मीडिया
(एनीमेशन, विजुअल इफेक्ट्स, गेमिंग व कॉमिक्स, एवीजीसी)
और बीमा में एफडीआई की सीमा में छूट देने पर विचार करने की घोषणा भी की। उन्होंने
कहा कि बीमा की सहायक कंपनियों में 100 फीसदी एफडीआई की छूट होगी और सिंगल
ब्रांड खुदरा सेक्टर में एफडीआई के लिए स्थानीय सोर्सिंग की शर्तेर्ं ढीली की
जाएंगी।
देश में विदेशी पोर्टफोलियो पूंजी के आगमन को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने किसी कंपनी में फॉरेन पोर्टफोलियो निवेश की मौजूदा 24 फीसदी की वैधानिक सीमा को बढ़ाकर संबन्धित सेक्टर से जुड़ी एफडीआई की सीमा के बराबर लाने का प्रस्ताव किया। रियल एस्टेट और निवेश कोषों द्वारा जारी सूचीबद्ध ऋण प्रतिभूतियों की खरीद के लिए एफपीआई की भी इजाजत दी जाएगी।