सम्पत्ति में विधावा का अधिाकार

2019-08-01 0

शादी होने के बाद पति की संपत्ति पर उसकी पत्नी का उस पर मालिकाना हक नहीं होता है, लेकिन पति की हैसियत के हिसाब से उसकी पत्नी को गुजारा भत्ता दिया जाता है। उस पत्नी को कानून से यह अधिकार दिया गया है, कि वह अपने पति से उसकी हैसियत के अनुसार अपने भरण - पोषण के लिए खर्चा प्राप्त कर सके। यदि पति की मृत्यु के बाद उसके माता - पिता या कोई रिश्तेदार पति की हैसियत के हिसाब से उसकी पत्नी को उसके भरण - पोषण के लिए ऽर्चा देने में असमर्थ होते है, या वे लोग उस पत्नी को खार्चा देने के लिए मना कर देते हैं, तो वह महिला न्यायालय में जाकर अपना अधिकार प्राप्त करने के लिए याचना कर सकती है, जहां से उसे सभी सबूतों और गवाहों के आधार पर उचित न्याय प्राप्त हो सकता है।

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भारत में लागू कानून के अनुसार एक पत्नी अपने पति से, भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973, हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955, हिन्दू संरक्षण और रखा रखाव अधिनियम, 1956, और घरेलू हिंसा कानून के तहत गुजारे भत्ते की मांग कर सकती है। अगर उसके पति ने मृत्यु होने से पहले अपनी कोई वसीयत बनाई है, तो उसकी मृत्यु के बाद उसकी पत्नी को वसीयत के मुताबिक संपत्ति में हिस्सा दिया जाता है। लेकिन पति अपनी खुद की अर्जित संपत्ति की ही वसीयत कर सकता है, वह अपनी पैतृक संपत्ति की अपनी पत्नी के लिए वसीयत नहीं कर सकता। अगर उसके पति ने कोई वसीयत नहीं बनाई हुई है, और उसकी मौत हो जाती है, तो पत्नी को उसके पति की खुद की अर्जित की हुई संपत्ति में हिस्सा दिया जाता है, लेकिन वह अपने पति की पैतृक संपत्ति में उत्तराधिकार के लिए दावा नहीं कर सकती है।

हिन्दू उत्तराधिकार कानून के तहत विधवा के लिए प्रावधान

हमारे देश भारत में शादी होने के बाद पति को ही परिवार, उसकी पत्नी और बच्चों का संरक्षक या अविभावक माना जाता है, यदि किसी कारणवश पति की मृत्यु हो जाती है, तो परिवार का खर्चा चलाना बहुत ही मुश्किल हो जाता है, इसी बात को ध्यान में रखते हुए कुछ कानून ऐसे बनाये गए हैं, जिनके अनुसार पति की मृत्यु के पश्चात् उसकी संपत्ति को उसकी पत्नी या उसके उत्तराधिकारियों के नाम पर हस्तांतरित कर दिया जाता है। हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में अनुसूची के प्रथम श्रेणी में किसी व्यत्तिफ़ की सम्पति के सभी वारिसों के बीच संपत्ति के वितरण के बारे में उल्लेख किया गया है। इस अधिनियम के अनुसार यदि किसी व्यत्तिफ़ की मृत्यु हो जाती है, और यदि उसकी एक या एक से अधिक विधवाएं हैं, तो उस व्यत्तिफ़ की संपत्ति का बंटवारा उसकी सभी विधवाओं में सामान रूप से किया जाता है, क्योंकि इस नियम के अनुसार पत्नी को प्रथम श्रेणी का उत्तराधिकारी माना जाता है, जबकि पति के रिश्तेदारों को द्वितीय श्रेणी का उत्तराधिकारी माना जाता है। हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अनुसार अगर किसी व्यत्तिफ़ की मौत हो जाती है, तो उसकी संपत्ति उसके प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारियों के पास हस्तांतरित कर दी जाती है, ये लोग निम्न हैंः

1-            बेटा

2-            बेटी

3-            विधवा पत्नी

4-            माँ

5-            मरे हुए बेटे का बेटा

6-            मरे हुए बेटे की बेटी

7-            मर चुकी बेटी का बेटा

8-            मर चुकी बेटी की बेटी

पुनर्विवाह के बाद महिला का अपने मृत पति की संपत्ति में अधिकार

साल 2008, से पहले कोई महिला अपने पति की मृत्यु के बाद यदि पुनर्विवाह करती थी, तो वह अपने पूर्व पति की संपत्ति में अपना किसी भी प्रकार का अधिकार नहीं प्राप्त कर सकती थी, किन्तु बर्ष 2008, में भारत की सर्वाेच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956, में संसोधन करके यह निर्णय लिया, कि पुनर्विवाह करने वाली विधवा को उसके मृत पति की संपत्ति में अधिकार देने से वंचित नहीं किया जा सकता है। जबकि इससे पहले भारत में विधवा पुनर्विवाह के बाद पूर्व पति की संपत्ति में अधिकार के लिए हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856, के प्रावधानों को महत्व दिया जाता था। नए कानून के अनुसार एक विधवा अपने मृत पति की संपत्ति में अधिकार प्राप्त कर सकती है, और साथ ही साथ वह प्राप्त की गयी संपत्ति को किसी अन्य व्यत्तिफ़ को दान करने या बेचने के बारे में विचार भी कर सकती है।

भारत के सर्वाेच्च न्यायालय ने हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856, के प्रावधानों के साथ सहमति न जताते हुए यह कहा था कि, एक विधवा महिला को उसके पति की मृत्यु के बाद विरासत में या उस महिला और उसके बच्चों के रख -रखाव के लिए जो भी संपत्ति प्रदान की जाती है, वो उसके पुनर्विवाह के बाद उससे वापस नहीं ली जा सकती है। यह इसलिए भी किया गया है, क्योंकि पहले के समय में विधवा महिला के पास पुनर्विवाह करने का अधिकार नहीं होता था, और इसके स्थान पर सती प्रथा जैसी अन्य कुरीतियां समाज में फैली हुई थी। पुनर्विवाह करना एक विधवा का अधिकार है, और यह अधिकार उससे कोई नहीं छीन सकता है।

सर्वाेच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा, कि हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956, ने शास्त्री हिन्दू कानून में एक बहुत बड़ा परिवर्तन किया, जिससे देश में विरासत और उत्तराधिकार के मामले में हिन्दू विधवाओं को भी अन्य पुरुष उत्तराधिकारियों की भांति योग्य और समान बनाया जा सका।

हिन्दू विधवाओं को पुनर्विवाह के बाद संपत्ति प्राप्त करने के अन्यमहत्वपूर्ण नियम

भारत में विधवाओं के पुनर्विवाह के बाद अपने पति की संपत्ति में अधिकार प्राप्त करने के लिए कई अन्य महत्वपूर्ण नियम हैं। उनमें से कुछ नियम नीचे सूचीबद्ध किये गए हैं

1- वह व्यत्तिफ़ जो बिना वसीयत के मर गया है, और यदि उसकी एक या एक से अधिक विधवाएँ हों, तो सभी विधवाओं को संपत्ति में सामान अधिकार दिया जाएगा।

2- पूर्व - मृत बेटों की श्रेणी में उत्तराधिकारियों के बीच ऐसा किया जाता है, कि उनकी विधवा (या एक से अधिक विधवा) और बचे हुए बेटों और बेटियों को पिता की संपत्ति का समान भाग मिले, और यदि उनके भी पूर्व - मृत पुत्र हैं, तो उनके उत्तराधिकारियों को भी संपत्ति का समान भाग प्राप्त हो।

3- यदि पति ने किसी वंशज का त्याग कर दिया है, तो उसकी सम्पूर्ण संपत्ति का एक तिहाई हिस्सा उसकी विधवा को दिया जायेगा, और शेष दो तिहाई उसके अन्य वंशजों को दिया जाएगा।



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