विरासत की प्रॉपर्टी पर ‘शादीशुदा बेटी’ का कितना अधिाकार?

2019-09-01 0


2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानून, 1956 में बदलाव हुआ है। इसमें पैतृक प्रॉपर्टी में बेटियों को बराबर का हिस्सा दियागया है।

गर पिता का निधन बिना वसीयत के हो जाता है तो पैतृक और पिता की प्रॉपर्टी पर बेटी का बेटे जितना अधिकार होता है।

तृप्ति शादीशुदा हैं। उनके माता-पिता को गुजरे सात साल बीत चुके हैं। वह जानना चाहती हैं कि क्या विरासत की प्रॉपर्टी पर शादीशुदा बेटी का कानूनी हक होता है? खासतौर से यह देखते हुए कि माता-पिता का निधन कई साल पहले हो चुका है।

2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानून, 1956 में बदलाव हुआ है। इसमें पैतृक प्रॉपर्टी में बेटियों को बराबर का हिस्सा दिया गया है। विरासत की प्रॉपर्टी के मामले में अब बेटी का भी जन्म से हिस्सा बन जाता है। वहीं, खुद खरीदी गई प्रॉपर्टी वसीयत के अनुसार बांटी जाती है।

अगर पिता का निधन बिना वसीयत के हो जाता है तो पैतृक और पिता की प्रॉपर्टी पर बेटी का बेटे जितना अधिकार होता है।

इस मामले में बेटी के शादीशुदा होने से कोई लेनादेना नहीं है। शादीशुदा बेटी का कुंवारी बेटी जितना ही अधिकार है। यहां एक बात जरूर ध्यान देने वाली है। अगर पिता की मौत 2005 से पहले हुई है तो विवाहित बेटी का पैतृक संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होगा। वहीं, पिता की खुद से खरीदी गई प्रॉपर्टी वसीयत के हिसाब से बंटेगी।

यदि पिता की मौत 2005 के बाद हुई है तो पुरखों की प्रॉपर्टी पर बेटी का दावा करने का पूरा हक बनता है। उत्तराधिकार का हक कभी ऽत्म नहीं होता है। फिर समय कितना भी बीत चुका हो।

इस तरह बतौर कानूनी वारिस तृप्ति प्रॉपर्टी में अपने हक के लिए कोर्ट में मुकदमा दाखिल कर सकती हैं। फिर भले उनके माता-पिता को गुजरे सात साल हो चुके हैं।

आइए, अब विनीता का सवाल लेते हैं।

विनीता के पिता बिना वसीयत छोड़े दुनिया से चल बसे। जिंदा रहते उन्होंने विनीता की मां के नाम प्रॉपर्टी ट्रांसफर कर दी थी। बिना रजिस्टर्ड गिफ्रट डीड के बच्चों को पैसा दिया था। विनीता की मां अब उन्हें प्रॉपर्टी देने से मना कर रही हैं। क्या उनका प्रॉपर्टी पर कानूनी अधिकार है?

अगर पिता ने खुद खरीदी प्रॉपर्टी को जीवित रहते किसी को दी है तो जिन वारिसों को उसमें हिस्सा नहीं मिला है, उनका पिता की मौत के बाद इसमें कोई हक नहीं है। हालांकि, रजिस्ट्रेशन एक्ट के अनुसार, अचल संपत्ति का गिफ्रट डीड कराना जरूरी है। गिफ्रट डीड का रजिस्टर न कराने पर इसे कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। इसमें विनीता अपने हिस्से की प्रॉपर्टी पर दावा कर सकती हैं।

अगर विनीता की मां प्रॉपर्टी में हिस्सा देने में इच्छुक नहीं हैं। जबकि मृतक की प्रॉपर्टी की वसीयत नहीं है तो इसका निपटान कानूनी होगा। इसका मतलब है कि खुद खरीदी गई प्रॉपर्टी को सबसे पहले बच्चों और पत्नी (क्लास 1 हायर) में बांटा जाएगा। इसमें इनका बराबर का हिस्सा होगा। मान्य गिफ्रट डीड या वसीयत न होने पर विनीता की मां उन्हें प्रॉपर्टी में अपना हिस्सा लेने से रोक नहीं सकती हैं।

चलिए, अब स्मिता का सवाल लेते हैं।

स्मिता के पिता की मौत बिना वसीयत के हो गई। मां को घर ट्रांसफर के लिए स्मिता और उनके भाई ने नो-आब्जेक्शन सर्टिफिकेट (छव्ब्) दिया था। अब मां उसे बेचना चाहती हैं। क्या वे उन्हें ऐसा करने से रोक सकते हैं?

पिता की वसीयत के बगैर मौत हो जाने पर प्रॉपर्टी को कानूनी वारिसों के बीच बांट दिया जाता है। खुद की प्रॉपर्टी को क्लास 1 हायर (बच्चे और पत्नी) को देते हैं। बतौर बच्चे मां के नाम पर घर ट्रांसफर करने के लिए अगर उन्होंनने एनओसी दी है तो इसे बेचने से रोकना इसके प्रावधनों पर निर्भर करेगा।

मान लेते हैं कि मां के नाम पर प्रॉपर्टी ट्रांसफर हुई है। एनओसी में भी उन्हें प्रॉपर्टी के लेनदेन का पूरा हक मिला है तो बच्चों का उसमें कोई हक नहीं बनता है। यानी वे अपनी मां को प्रॉपर्टी की बिक्री से नहीं रोक सकते हैं। इस मसले पर और सलाह लेने के लिए एनओसी की प्रति लेकर वकील से परामर्श लिया जा सकता है।

 



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