महिला किसानों की बराबरी कब बनेगा राजनीतिक मुद्दा?

8 मार्च, 2019 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं के सशक्तिकरण को लेकर काफी बातें की गईं लेकिन महिला किसानों को इस विमर्श में जगह नहीं मिलती
8 मार्च, 2019 को अंतराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर केंद्र सरकार के कई मंत्रियों ने जगह-जगह पर महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए इस सरकार द्वारा उठाए गए कदमों का जिक्र किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर अपने संदेश में कहा, ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हम अपनी अदम्य नारी शत्तिफ़ को सलाम करते हैं। हमें उन फैसलों पर गर्व है जिन्होंने महिला सशत्तिफ़करण को और मजबूत किया है। विभिन्न क्षेत्रें में महिलाओं की शानदार उपलब्धियों पर प्रत्येक भारतीय को गर्व है।’
मोदी सरकार के कार्यकाल में महिला किसानों के लिए किए गए कामों का
जिक्र कुछ दिन पहले केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने भी किया। उन्होंने यह
जानकारी दी कृषि मंत्रलय की विभिन्न योजनाओं के तहत आवंटित किए गए कुल फंड में से 30
फीसदी का आवंटन महिलाओं को कृषि की मुख्यधारा में लाने के लिए किया है। उन्होंने
यह भी कहा कि 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए केंद्र सरकार जो काम कर रही
है, उसके मूल में महिला किसानों की स्थिति में सुधार शामिल है। राधामोहन
सिंह ने महिला किसानों के लिए मोदी सरकार की उपलब्धियों को गिनाते हुए यह भी कहा
कि इस सरकार ने 2016 से हर साल 15 अक्टूबर को ‘राष्ट्रीय महिला किसान
दिवस’ मनाना शुरू किया है।
लेकिन क्या प्रधानमंत्री मोदी द्वारा महिलाओं के अदम्य साहस को सलाम
कर देने और कृषि मंत्री
द्वारा राष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत की बात कह देने भर से देश की
किसानी में लगी महिलाओं की स्थिति सुधरेगी? अगर तथ्यों की
बातें करें तो पिछले कुछ सालों में महिला किसानों की स्थिति लगातार खराब हो रही
है। मुख्यधारा की महिला विमर्श में महिलाओं की सशत्तिफ़करण की बात तो चलती है
लेकिन महिला किसानों के सशत्तिफ़करण को इस विमर्श में भी जगह नहीं मिलती।
महिला किसानों की बदहाली को कुछ तथ्यों के जरिए समझने की कोशिश करते
हैं। भारत के गांवों में रहने वाली कुल महिलाओं में से तकरीबन 85
फीसदी महिलाएं कृषि क्षेत्र में काम करती हैं। कृषि क्षेत्र में जितने श्रमिक हैं
उनमें एक तिहाई से अधिक महिलाएं हैं। लेकिन आज भी किसानी के काम में लगी इन महिला
श्रमिकों को पुरुष श्रमिकों के मुकाबले कम मजदूरी मिलती है।
कृषि क्षेत्र में 85 फीसदी ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी के
बावजूद इनमें से सिर्फ 13 फीसदी महिलाओं के पास अपनी जमीन है।
महिलाओं नाम पर जमीन नहीं होने की वजह से इन्हें बैंक कर्ज का लाभ भी नहीं मिल पा
रहा है। वैश्विक स्तर पर खाद्य और ऽेती के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था फूड
एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया है कि अगर जमीन के
स्वामित्व के मामले में महिलाओं को बराबरी दी जाती है तो इससे कृषि उत्पादकता में 30
फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। इस संस्था का यह भी मानना है कि इससे कुपोषण और भूख की समस्या के समाधान में भी मदद मिल सकती है।
इन तथ्यों के बावजूद भारत में महिला किसानों की स्थिति सुधारने की
दिशा में सरकारी स्तर पर कोई खास प्रयास नहीं दिखता। भारत में लोकसभा चुनाव होने
वाले हैं लेकिन यह किसी भी दल के लिए चुनावी मुद्दा नहीं है।
महिलाओं की स्थिति सुधारने की दिशा में एक कोशिश संयुत्तफ़ राष्ट्र
के इंटरनैशनल फंड फॉर एग्रीकल्चर डेवलपेेंट ने की है। इस संस्था ने पूरी दुनिया
में कृषि क्षेत्र में काम कर रही 1-7 अरब महिलाओं को किसानी के क्षेत्र में
बराबरी दिलाने के लिए एक खास अभियान की शुरुआत की है। इसके तहत यह संस्था न सिर्फ
जागरूकता अभियान चलाएगी बल्कि दुनिया के विभिन्न देशों की सरकारों को यह समझाने की कोशिश भी करेगी कि महिला किसानों की स्थिति ठीक करने के लिए किस तरह का निवेश करने की जरूरत है।