जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बने

2019-09-01 0


प्रसिद्ध स्त्री रोग विशेषज्ञ: डॉ- प्रोमिला मलिक

President Gurgaon Obst. & Gynae Sciety, Gurugram

M.B.B.S., M.D., (AIIMS) (OBST. & GYNAE.)

(OBSTETRICIAN & GYNAECOLOGIST)

जिस तरह देश में जनसंख्या लगातार बढ़ती जा रही है उसी तरह ढाणी गांव में गांव कस्बे में, कस्बा शहर में, शहर महानगर में तब्दील हो रहे हैं। समस्या विकराल रूप लेती जा रही हैं। जनता अपनी प्रत्येक जिम्मेदारी सरकार पर डाल रही है। देखने में आता है हर समस्या को नैतिक जिम्मेदारी न मानकर वो भी सरकार पर छोड़ देती है। 15 अगस्त हो या 26 जनवरी हम देश का झण्डा लहराते हैं। देशभक्ति की बातें करते हैं फिर भूल जाते हैं। जिस गति से जनसंख्या बढ़ती जा रही है उसी गति से अनेक समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। देश में संसाधन सीमित हैं। सरकारी व निजी लेकिन जनसंख्या के अनुपात में नौकरी नहीं मिल पा रही है। आज देश में जनसंख्या 130 करोड़ पार कर चुकी है। चीन के बाद पूरे विश्व में हम आते हैं। अगर हमने कोई कड़ा नहीं उठाया तो शायद चीन को भी एक दिन पीछे छोड़ देंगे। यानी यह कहें कि प्रत्येक समस्या स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, आर्थिक सभी समस्या जनसंख्या बढ़ोत्तरी से होती है तो कोई गलत नहीं है। जनसंख्या बढ़ने से रोजगार नहीं मिल पाते। जरूरतों की चीजें पूरी करने के लिए युवा अपराध की दुनिया में कदम रख देते हैं। कुछ युवक डिप्रेशन में चले जाते हैं। आर्थिक बदहाली से परेशान होने पर चोरी-डकैती, छीना-झपटी जैसी वारदात में शामिल हो जाते हैं। गरीब-से-गरीब माता-पिता अपने बच्चों को एक सपना लेकर पढ़ाते हैं कि एक दिन बच्चा उनकी सारी जिम्मेदारी उठायेगा, हमारे बुढ़ापे का सहारा बनेगा। खुद कंजूसी करके अभावों में रहकर जीते रहते हैं। लेकिन बच्चों को आगे बढ़ाने की कोशिश करते रहते हैं। जिसमें जीवन-भर की जमा पूंजी उनकी पढ़ाई पर खर्च कर देते हैं। लेकिन बेरोजगारी नामक समस्या उन युवकों के साथ उन बूढ़े मां-बांप के सपने भी चूर-चूर हो जाते हैं। तब उनका बच्चा बेरोजगारी की चपेट में आ जाता है।

इंसान को जिन्दा रहने के लिए मूलभूत सुविधा तो जरूरी है इसके लिए आजकल युवक परेशान होकर अपराध की दुनिया में कदम रख लेते हैं। जिससे मर्डर, फिरौती, छीना-झपटी जैसी वारदातों को अंजाम देते हैं। जो कि आजकल आयेदिन इस तरह की खबरें सुनने को मिलती  हैं जो कि एक सभ्य समाज के लिए कलंक है। आखिर इन समस्याओं को गौर से देखने के बाद पता चलता है कि बेरोजगारी की वजह से वारदात बढ़ी। वहीं बेरोजगारी क्यों फैली जनसंख्या की वजह से। अब आता है ‘हम दो हमारे दो’ का नारा खूब चला। उस पर सरकारों ने करोड़ों रुपए खर्च कर दिये। लेकिन

परिणाम उतना नहीं हुआ जितना होना चाहिए था। अब इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर बड़ा जागरूक अभियान चले या फिर सरकार को कड़ा कदम उठाना चाहिए। सरकारों को वोट बैंक की तरफ ध्यान न देकर राष्ट्रहित में जनसंख्या नियंत्रण कानून बनाना चाहिए। इससे काफी हद तक देश की समस्याएं दूर हो जाएंगी।

आज भी शिक्षा के अभाव में लोग बच्चों को ईश्वर की देन मानते हैं। अपने बुढ़ापे को देखते हुए लोगों में असुरक्षा की भावना रहती है कि एक बच्चा देखभाल नहीं करेगा तो दूसरा करेगा, दूसरा नहीं तो तीसरा करेगा। इसी चक्कर में परिवर बढ़ जाता है तथा कुछ इलाकों में अपना रुतबा बढ़ाने, दूसरों पर धौंस झाड़ने, अपना वर्चस्व बढ़ाने व बरकरार रखने के लिए भी बच्चे बढ़ाते हैं।

खैर, यह सब संकुचित मानसिकता है। ऐसी मानसिकता को दूर करने के लिए सामाजिक जागरूकता व कानून का डर ही आवश्यक है। आप एक तरफ विश्वगुरु बनने का सपना देखते हैं लेकिन विकसित देशों से हम काफी पीछे हैं। लोग विज्ञान व तकनीकी चीजों की तरफ न जाकर रूढ़िवादी व परम्परा के बंधन में बंधे रहते हैं। किसी ने ठीक ही कहा है-एक पीढ़ी का

पाखण्ड दूसरी पीढ़ी की परंपरा बन  जाती है। हमें इन सब चीजों से ऊपर उठकर राष्ट्रहित के बारे में सोचना है। राष्ट्र की उन्नति हमारी उन्नति!  



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