क्या संभव है प्लास्टिक से मुक्ति और कितनी कारगर होगी हर्बल प्लास्टिक

2019-10-01 0

समुद्र का प्रदूषण असल में हमारी जीवनशैली का ही नतीजा है। धरती पर जितना प्लास्टिक कम होगा सागर में भी प्रदूषण उतना ही कम होगा।

प्लास्टिक का सवाल समूचे विश्व के लिए अहम बना हुआ है। यह समस्या हमारे यहां ज्यादा गंभीर है। देश में जारी स्वच्छता अभियान के बावजूद प्लास्टिक युत्तफ़ कचरे से गांव, कस्बा, नगर, महानगर, राज्यों की राजधानियां और देश की राजधानी तक अछूती नहीं हैं। इसकी चपेट में सागर और महासागर भी आने से नहीं बच सके हैं। प्लास्टिक कचरा पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा बनता जा रहा है। जानवरों के लिए तो काल बन चुका है। सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि इस बाबत न नगर वासी और न स्थानीय निकाय गंभीर हैं। इस कचरे के बोझ तले पृथ्वी इतनी दब चुकी है कि अब उसके लिए सांस लेना दूभर हो गया है।

प्लास्टिक कचरे की तादाद में बढ़ोतरी

बीते 65 सालों में मानव ने तकरीब 8-3 अरब मीट्रिक टन से भी अधिक प्लास्टिक का उत्पादन किया है। 1950 में प्लास्टिक का उत्पादन दुनिया में तकरीब 20 लाख मीट्रिक टन था जो 2015 में बढ़कर तकरीब 40 करोड़ मीट्रिक टन हो गया है। प्लास्टिक कचरे की तादाद में बढ़ोत्तरी की यदि यही रफ्रतार रही तो 2050 में 12 अरब मीट्रिक टन कचरा दुनिया में जगह-जगह बने लैंडफिल पर पड़ा नजर आएगा। यह स्थिति बहुत ही भयावह होगी और पर्यावरण के लिए खतरनाक होगी। मानव जीवन पर इसका कितना दुष्प्रभाव पड़ेगा, इसकी आशंका से ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं।

पॉलिथीन मिक्स कूड़ा जलाना नुकसानदेह

गौरतलब है कि अधिकांशतः प्लास्टिक का जैविक क्षरण नहीं होता। यह 500 साल तक नष्ट नहीं होता। यह जमीन में पड़े-पड़े सड़ता भी नहीं है। यह जमीन में केंचुआ जैसे मिट्टðी को उपजाऊ बनाने वाले जीव को भी क्षतिग्रस्त कर देता है। पॉलिथीन मिक्स कूड़ा जलाना तो और भी नुकसानदेह है, क्योंकि यह हवा में हाइड्रोकार्बन, कार्बन मोनोक्साइड घुलकर सांस के जरिये आपके शरीर में प्रवेश कर जाती है। आज पैदा किया गया प्लास्टिक कचरा सैकड़ों-हजारों साल तक हमारे साथ बना रहेगा जो हमारे जीवन और पर्यावरण से खिलवाड़ करता रहेगा। इसकी भरपायी असंभव होगी।

प्लास्टिक बैग का इस्तेमाल धड़ल्ले से जारी

वह बात दीगर है कि सुप्रीम कोर्ट ने इसके इस्तेमाल पर पाबंदी लगाई हुई है। देश के 25 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में इसके प्रयोग पर पूर्ण या आंशिक प्रतिबंध है। इसके बावजूद आज भी रोजाना 10 मीट्रिक टन प्लास्टिक बैग का इस्तेमाल केवल शहरी इलाकों में हो रहा है। यह तो केवल आंकड़े भर हैं, जबकि हालात इससे कहीं अधिक बदतर हैं और प्लास्टिक बैग का इस्तेमाल देश के बड़े हिस्से में धड़ल्ले से जारी है। उस पर कोई अंकुश नहीं है। इसका बड़ा और अहम कारण यह है कि यह सस्ता, सर्वसुलभ और बहु उपयोगी है।

हर्बल प्लास्टिक इसका विकल्प

असल में प्लास्टिक अब जीवन का हिस्सा बन चुका है। घर-बाहर-बाजार इससे कुछ भी अछूता नहीं है। एक तरह से इंसान इस पर निर्भर है। यही अहम वजह है कि लंबे समय से की जा रहीं लाख कोशिशों के बावजूद इस पर अंकुश नहीं लग सका है। हालात यह हैं कि दिनोंदिन इसके सामानों का प्रचलन बढ़ता ही जा रहा है। खेद की बात यह कि इसका अभी तक कोई भरोसेमंद विकल्प भी नहीं ढूंढा जा सका है। वैसे वनस्पतियों से तैयार हर्बल प्लास्टिक इसका किस सीमा तक विकल्प बन पाएगा, यह भविष्य के गर्भ में है।

प्लास्टिक के उत्पादन पर लगाएं अंकुश

इसमें दो राय नहीं कि हम लोग ही इसके जनक है। इसलिए बेहद जरूरी है कि इंसान प्लास्टिक रहित दुनिया के बारे में विचार करे। यदि समुद्र में प्लास्टिक की मात्र को कम करना है तो हम इस धरती पर प्लास्टिक के उपयोग को कम करें। उसके उत्पादन पर अंकुश लगाएं।  यह जान लें कि समुद्र का प्रदूषण हमारी धरती के प्रदूषण का ही एक हिस्सा है, पर धरती के प्रदूषण से भी अधिक यह समुद्री प्रदूषण खतरनाक साबित हो सकता है। इसे रोक पाना तभी संभव है जब धरती का प्रदूषण कम करने में हमें कामयाबी मिले। सही मायने में यह पूरा मामला प्रदूषण के कारकों को खत्म करने का है। इसमें एक महत्वपूर्ण कारक प्लास्टिक है।

समुद्र का प्रदूषण असल में हमारी जीवनशैली का ही नतीजा है। धरती पर जितना प्लास्टिक कम होगा, सागर में भी प्रदूषण उतना ही कम होगा।



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