सिखों के आदिगुरु गुरु नानक देव जी का 550वां प्रकाश पर्व

23 नवंबर को श्री गुरु नानक देव का 550वां प्रकाश पर्व धूमधम से मनाया जाएगा। सिख संप्रदाय में इस पर्व को मनाने की तैयारियां जोर-शोर
से चल रही है। इस बार श्री गुरु नानक देव के 550वें प्रकाश पर्व
को देखते हुए पूरे उत्साह के साथ समाज, संगत के लोग भव्य तैयारियों में जुटे
हुए हैं।
गुरु नानक देव जी का अवतरण संवत् 1526 में कार्तिक
पूर्णिमा को माता तृप्ता देवी जी और पिता कालू खत्राी जी के घर श्री ननकाना साहिब
में हुआ। उनकी महानता के दर्शन बचपन से ही दिखने लगे थे।
उन्होंने बचपन से ही रूढ़िवादिता के विरु( संघर्ष की शुरुआत कर दी थी,
जब
उन्हें 11 साल की उम्र में जनेऊ धरण करवाने की रीति का पालन किया जा रहा था।
जब पंडितजी बालक नानकदेव जी के गले में जनेऊ धरण करवाने लगे तब उन्होंने उनका हाथ
रोका और कहने लगे- ‘पंडितजी, जनेऊ पहनने से हम लोगों का दूसरा जन्म
होता है, जिसको आप आध्यात्मिक जन्म कहते हैं तो जनेऊ भी किसी और किस्म का होना
चाहिए, जो आत्मा को बांध् सके। आप जो जनेऊ मुझे दे रहे हो वह तो कपास के धगे
का है जो कि मैला हो जाएगा, टूट जाएगा, मरते समय शरीर
के साथ चिता में जल जाएगा। पिफर यह जनेऊ आत्मिक जन्म के लिए कैसे हुआ? और
उन्होंने जनेऊ धरण नहीं किया।’
अपने अंदर झांके : अंतर मैल जे तीर्थ नावे तिसु बैकुंठ ना जाना/ लोग
पतीणे कछु ना होई नाही राम अजाना, अर्थात सिर्पफ जल से शरीर धेने से मन
सापफ नहीं हो सकता, तीर्थयात्राा की महानता चाहे कितनी भी क्यों न बताई जाए, तीर्थयात्राा
सपफल हुई है या नहीं, इसका निर्णय कहीं जाकर नहीं होगा। इसके लिए हरेक मनुष्य को अपने अंदर
झांककर देखना होगा कि तीर्थ के जल से शरीर धेने के बाद भी मन में निंदा, ईष्र्या,
ध्न-लालसा,
काम,
क्रोध्
आदि कितने कम हुए हैं।
सब ईश्वर के बंदे : एक बार कुछ लोगों ने नानक देव जी से पूछा- आप
हमें यह बताइए कि आपके मत अनुसार हिन्दू बड़ा है या मुसलमान।
उन्होंने उत्तर दिया- अवल अल्लाह नूर उपाइया कुदरत के सब बंदे@
एक
नूर से सब जग उपज्या को भले को मंदे, अर्थात सब बंदे ईश्वर के पैदा किए हुए
हैं, न तो हिन्दू कहलाने वाला रब की निगाह में कबूल है, न
मुसलमान कहलाने वाला। रब की निगाह में वही बंदा ऊंचा है जिसका अमल नेक हो, जिसका
आचरण सच्चा हो।
मां-बाप की सेवा करें : गुरु नानक देव जी जनता को जगाने के लिए और
ध्र्म प्रचारकों को उनकी खामियां बतलाने के लिए अनेक तीर्थ-स्थानों पर पहुंचे और
लोगों से ध्र्मांध्ता से दूर रहने का आग्रह किया। उन्होंने पितरों को भोजन यानी
मरने के बाद करवाए जाने वाले भोजन का विरोध् किया और कहा कि मरने के बाद दिया जाने
वाला भोजन पितरों को नहीं मिलता। हमें जीते जी ही मां-बाप की सेवा करनी चाहिए।
मन का मैल धेने की सीख ः एक बार नानक जी ने तीर्थ स्थानों पर स्नान
के लिए इकट्ठे हुए श्रधालुओं को समझाते हुए कहा- मन मैले सभ किछ मैला, तन
धेते मन अच्छा न होई, अर्थात अगर हमारा मन मैला है तो हम कितने भी सुंदर कपड़े पहन लें,
अच्छे-से
तन को सापफ कर लें, बाहरी स्नान, सुंदर कपड़ों से हम संसार को तो अच्छे
लग सकते हैं मगर परमात्मा को नहीं, क्योंकि परमात्मा हमारे मन की अवस्था
को देखता है।
सच्चा सौदा : उनके एक प्रसंग के अनुसार बड़े होने पर नानकदेव जी को
उनके पिता ने व्यापार करने के लिए 20 रु. दिए और कहा- ‘इन 20
रु. से सच्चा सौदा करके आओ। नानक देव जी सौदा करने निकले। रास्ते में उन्हें साधु-संतों
की मंडली मिली। नानकदेव जी ने उस साधु मंडली को 20 रु. का भोजन
करवा दिया और लौट आए। पिताजी ने पूछा- क्या सौदा करके आए? उन्होंने कहा-
‘साधुओं को भोजन करवाया। यही तो सच्चा सौदा है।’
नानक जी ने लोगों को सदा ही नेक राह पर चलने की समझाइश दी। वे कहते
थे कि कि साधु-संगत और गुरबाणी का आसरा लेना ही जिंदगी का ठीक रास्ता है। उनका
कहना था कि ईश्वर मनुष्य के हृदय में बसता है, अगर हृदय में
निर्दयता, नपफरत, निंदा, क्रोध् आदि विकार हैं तो ऐसे मैले हृदय में परमात्मा बैठने के लिए
तैयार नहीं हो सकता है। अतः इन सबसे दूर रहकर परमात्मा का नाम ही हृदय में बसाया
जाना चाहिए। सिख अनुयायी इन्हें ‘गुरु नानक’, ‘बाबा नानक’ और
‘नानकशाह’ नामों से संबोध्ति करते हैं।
सिख ध्रम में श्रधा व उल्लास के साथ गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व मनाया जाएगा। इस मौके पर शबद कीर्तन होगा व गुरु की जीवनी पर प्रकाश डाला जाएगा तथा अटूट लंगर का आयोजन भी किया जाएगा।