आर्थिक मजबूती के लिए कमियों को शीघ्र दूर करना होगा

हाल ही में विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) द्वारा 141 देशों के लिए जारी वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा सूचकांक 2019 में भारत पिछले वर्ष 2018 की तुलना में 10 स्थान फिसलकर 68वें पायदान पर आ गया है। खासतौर से बुनियादी ढांचा, संस्थान, कुशलता, वित्तीय बाजार, नवोन्मेष, श्रम बाजार, लैंगिक असमानता जैसे अधिकांश पैमानों पर पिछले साल की तुलना में भारत का प्रदर्शन कमजोर रहा है। इसके साथ-साथ सूचना, संचार एवं प्रौद्योगिकी को अपनाने में सुस्ती, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य स्थिति ने भी भारत के प्रदर्शन पर प्रभाव डाला है।
विश्व आर्थिक मंच ने कहा है कि भारत के वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता
स्कोर में गिरावट अपेक्षाकृत मामूली है, लेकिन कई अन्य देश अच्छा प्रदर्शन कर
भारत से आगे बढ़ गए हैं। भारत अपेक्षाकृत कई छोटे देशों, जैसे कंबोडिया,
अजरबैजान
और तुर्की की तरह बेहतर प्रदर्शन को बरकरार नहीं रख पाया है। सूचकांक में सिंगापुर
ने शीर्ष स्थान हासिल किया है। अमेरिका दूसरे स्थान पर, हांगकांग तीसरे,
नीदरलैंड
चौथे व स्विटजरलैंड पांचवें स्थान पर रहा है। चीन ने इस सूचकांक में 28वां
स्थान हासिल किया है। विश्व आर्थिक मंच ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि उभरती
अर्थव्यवस्थाओं के साथ ही नवोन्मेष विकास क्षमता वाले देशों- चीन, भारत
और ब्राजील को तकनीकी और पूंजी निवेश में बेहतर संतुलन बनाने व कुशलता से आगे बढ़ने
की जरूरत है।
इस रिपोर्ट में यदि हम सकारात्मक पक्षों को देखें, तो
पाएंगे कि आर्थिक स्थिरता के मामले में भारत का प्रदर्शन बेहतर रहा है। आर्थिक
सुस्ती के बावजूद राजकोषीय घाटे को नियंत्रित रखा गया है। मुद्रास्फीति भी
नियंत्रण में रही है। कर्ज गतिशीलता की वजह से भी आर्थिक स्थायित्व के मामले में
भारत ने अच्छा प्रदर्शन किया है। आर्थिक स्थिरता के मोर्चे पर 100
फीसदी अंक हासिल करने वाले देशों में भारत पहले क्रम पर रहा है। चूंकि इस सूचकांक
से किसी देश में आने वाला विदेशी निवेश, उत्पादन और निर्यात प्रभावित होता है,
इसलिए
आने वाले दिनों में इसका असर भारत पर पड़ सकता है।
इस समय वैश्विक निर्यात में भारत के आगे बढ़ने की जो नई संभावनाएं दिख रही हैं, उन्हें मुट्टòी में करने के लिए भारत का वैश्विक
प्रतिस्पर्द्धा के विभिन्न मापदंडों पर आगे बढ़ना जरूरी है। पिछले दिनों इंडिया
इकोनॉमिक समिट में अमेरिका के वाणिज्य मंत्री विल्वर रॉस ने कहा कि अमेरिका व चीन
के बीच बढ़ते ट्रेड वॉर का भारत फायदा ले सकता है। उन्होंने कहा कि अब अमेरिका भारत
को वह मौका देगा, जो अब तक चीन को देते आया है।
पिछले दिनों वित्तीय शोध संगठन आईएचएस मार्केट ने कहा कि भारत के
वैश्विक कारोबार में वृद्धि होने और वैश्विक निवेश का नया केंद्र बनने की नई
संभावनाएं उभरी हैं। भारत में कॉरपोरेट कर की दरों में अब तक की सबसे बड़ी कटौती से
कंपनियों को मदद मिलेगी। इससे मध्यम अवधि में निवेश बढ़ाने में मदद मिल सकेगी।
आईएचएस की रिपोर्ट में कहा गया है कि कॉरपोरेट कर में सुधार के नए उपायों से विनिर्माण
केंद्र के तौर पर भारत की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा क्षमता बढ़ गई है। दुनिया
के विभिन्न देशों से भारत में निवेश किए जाने के नए संकेत उभर रहे हैं। चीन की जगह
भारत वैश्विक निवेश का नया केंद्र,
दुनिया का नया मैन्युफैर्क्चंर हब बन सकता है। भारत अन्य देशों को
निर्यात बढ़ा सकता है।
इसी माह चर्चित अमेरिकी संगठन ‘एडवोकेसी ग्रुप’ द्वारा प्रकाशित
रिपोर्ट के अनुसार, करीब 200 अमेरिकी कंपनियां चीन से अपना निवेश समेट और उत्पादन बंद करके भारत
की ओर कदम बढ़ा सकती हैं। सैमसंग ने भी चीन में अपना कारोबार समेट लिया है और भारत
में अपने प्लांट का विस्तार किया है। सोनी ने चीन में अपने स्मार्टफोन प्लांट को
बंद करने की घोषणा कर दी है। एप्पल ने बेंगलुरु में अपनी उत्पादन इकाई खोल दी है।
यदि हम चाहते हैं कि भारत दुनिया का नया वैश्विक निवेश केंद्र बने, तो हमें अपनी कमियों पर ध्यान देना होगा। उन कमियों को दूर करना होगा, जिनकी वजह से सूचकांक में हम गिरावट देख रहे हैं। नवाचार, बौद्धिक संपदा, कारोबार सुधार, सूचना संचार व प्रौद्योगिकी को गतिशील करना होगा। हमें कोशिश करनी चाहिए कि जब अगला सूचकांक जारी हो, तो उसमें हमारा बेहतर प्रदर्शन पूरी दुनिया को नजर आए।