आज भी याद की जाती है बलिदानियों की गाथा

2018-08-01 0

आज भी याद की जाती है बलिदानियों की गाथा

तिवर्ष 15 अगस्त का दिन स्वतंत्रता दिवस के रूप में बड़े ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। 15 अगस्त का त्योहार सभी भारतीयों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण त्योहार है। यह भारत का राष्ट्रीय पर्व है। इस वर्ष 2018 में हम भारत का 72वां स्वतंत्रता दिवस मनाएंगे। 200 साल तक ब्रिटिश साम्राज्य की गुलामी के पश्चात 15 अगस्त 1947 को भारत देश आजाद हुआ था। इस दिन भारत के प्रधानमंत्री दिल्ली के लाल किले पर प्रतिवर्ष ध्वजारोहण करते हैं।

हालांकि अंग्रेजों से आजादी पाना भारत के लिए आसान नहीं था, लेकिन कई महान लोगों और स्वतंत्रता सेनानियों ने इसे सच कर दिखाया। अपने सुख, आराम और आजादी की चिन्ता किए बगैर उन्होंने अपने भावी पीढ़ी की आजादी के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। पूर्ण स्वराज प्राप्त करने के लिए हिंसात्मक और अहिंसात्मक सहित इन्होंने कई सारे स्वतंत्रता आन्दोलन को आयोजित किए तथा उस पर कार्य किया। आजादी के बाद भारत से पाकिस्तान अलग बंट गया जो कि हिंसात्मक दंगों को भी साथ लाया। अपने घरों से लोगों का विस्थापन (15 लाख लोगों से अधिक) और बड़ी संख्या में जनहानि का कारण ये डरावना दंगा था।

हमारे देश में कई देशभक्तों ने जन्म लिया और हमारी आजादी के लिए कई शूरवीरों ने अपना बलिदान दिया। हमें आजादी बड़ी कठिनाइयों से प्राप्त हुई है। हमें आजादी की अहमियत समझनी चाहिए और देश को प्रगतिशील बनाये रखना चाहिए। आज हम अपने घरों में अपने देश में आजाद घूमते हैं ये उन्हीं शूरवीरों का काम है जिन्होंने देश के लिए अपना बलिदान दिया।

आजादी की कभी शाम नहीं होने देंगे,
शहीदों की कुर्बानी बदनाम नहीं होने देंगे,
बची हो जो एक बूंद भी लहू की,
तब तक भारत माता का आंचल नीलाम नहीं होने देंगे।
क्यों मरते हो यारों सनम के लिए,
न देगी दुपट्टा कफन के लिए,
मरना है तो मरो वतन के लिए,
तिरंगा तो मिलेगा कफन के लिए।
न मरो सनम बेवफा के लिए,
दो गज जमीन नहीं मिलेगी दफन होने के लिए,
मरना है तो मरो वतन के लिए,
हसीना भी दुपट्टा उतार देगी कफन के लिए।
बन्दे मातरम, जय हिन्द

लोकप्रिय संस्कृति

स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्रा दिवस पर हिन्दी देशभक्ति के गीत और क्षेत्रीय भाषाओं में टेलीविजन और रेडियो चैनलों पर प्रसारित किए जाते हैं। इनको झंडा फहराने के समारोह के साथ भी बजाया जाता है। देशभक्ति की फिल्मों का प्रसारण भी होता है। ऐसी फिल्मों के प्रसारण की संख्या में कमी आई है। नयी पीढ़ी के लिए तीन रंगों में रंगे डिजाइनर कपड़े भी इस दौरान दिखाई दे जाते हैं।

खुदरा स्टोर स्वतंत्रता दिवस पर बिक्री के लिए छूट प्रदान करते हैं। कुछ समाचार चैनलों ने इस दिवस के व्यवसायीकरण की निन्दा की है। भारतीय डाक सेवा 15 अगस्त को स्वतंत्रता आन्दोलन के नेताओं, राष्ट्रवादी विषयों और रक्षा से सम्बंधित विषयों पर डाक टिकट प्रकाशित करता है।

भारत की संविधान सभा ने नई दिल्ली में संविधान हॉल में 14 अगस्त को 11 बजे अपने पांचवें सत्र की बैठक की। सत्र की अध्यक्षता राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने की। इस सत्र में जवाहर लाल नेहरू ने भारत की आजादी की घोषणा करते हुए ट्रस्ट विद डेस्टिनी नामक भाषण दिया। सभा के सदस्यों ने औपचारिक रूप से देश की सेवा की शपथ ली। महिलाओं के एक समूह ने भारत की महिलाओं का प्रतिनिधित्व किया व औपचारिक रूप से विधानसभा को राष्ट्रीय ध्वज भेंट किया। आधिकारिक समारोह नई दिल्ली में हुए जिसके बाद भारत एक स्वतंत्र देश बन गया। नेहरू ने प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में पद ग्रहण किया और वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने पहले गवर्नर जनरल के रूप में अपना पदभार संभाला। महात्मा गांधी के नाम के साथ लोगों ने इस अवसर को मनाया। गांधी ने हालांकि खुद आधिकारिक घटनाओं में कोई बड़ा हिस्सा नहीं लिया। इसके बजाय, उन्होंने हिन्दू और मुसलमानों के बीच शांति को प्रोत्साहित करने के लिए कलकत्ता में एक भीड़ से बात की। उस दौरान ये 24 घंटे उपवास पर रहे।

15 अगस्त 1947 को सुबह 11:00 संघटक सभा ने भारत की स्वतंत्रता का समारोह आरंभ किया, जिसमें अधिकारों का हस्तांतरण किया गया। जैसे ही मध्य रात्रि की घड़ी आई भारत ने अपनी स्वतंत्रता हासिल की और एक स्वतंत्रा राष्ट्र बन गया।

इस दिन पर सभी राष्ट्रीय तथा स्थानीय सरकार के कार्यालय, बैंक, पोस्ट ऑफिस, बाजार, दुकानें, व्यापार, संस्थान आदि बंद रहते हैं। हालांकि सार्वजनिक परिवहन बिल्कुल प्रभावित नहीं होता है। इसे बहुत उत्साह के साथ भारत की राजनधनी दिल्ली में मनाया जाता है जबकि स्कूल, कॉलेज और सार्वजनिक समुदाय तथा समाज सहित दूसरे शिक्षण संस्थानों में भी मनाया जाता है।

स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री, पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इस दिन ट्रस्ट विद डेस्टिनी (नियति से वादा) नामक अपना प्रसिद्ध भाषण दिया, कई सालों पहले, हमने नियति से एक वादा किया था, और अब समय आ गया है कि हम अपना वादा निभाएं, पूरी तरह न सही पर बहुत हद तक तो निभाएं। आधी रात के समय, जब दुनिया सो रही होगी, भारत जीवन और स्वतंत्रता के लिए जाग जाएगा। ऐसा क्षण आता है, मगर इतिहास में विरले ही आता है, जब हम पुराने से बाहर निकल नए युग में कदम रखते हैं, जब एक युग समाप्त हो जाता है, जब एक देश की लम्बे समय से दबी हुई आत्मा मुक्त होती है। यह संयोग ही है कि इस पवित्र अवसर पर हम भारत और उसके लोगों की सेवा करने के लिए तथा सबसे बढ़कर मानवता की सेवा करने के लिए समर्पित होने की प्रतिज्ञा कर रहे हैं। आज हम दुर्भाग्य के एक युग को समाप्त कर रहे हैं, और भारत पुन: स्वयं को खोज पा रहा है। आज हम जिस उपलब्धि का उत्सव मना रहे हैं, वो केवल एक कदम है, नए अवसरों के खुलने का। इससे भी बड़ी विजय और उपलब्ध्यिां हमारी प्रतीक्षा कर रही हैं। भारत की सेवा का अर्थ है लाखों-करोड़ों पीड़ितों की सेवा करना। इसका अर्थ है निर्धनता, अज्ञानता, और अवसर की असमानता मिटाना। हमारी पीढ़ी के सबसे महान व्यक्ति की यही इच्छा है कि हर आँख से आंसू मिटे। संभवत: ये हमारे लिए संभव न हो पर जब तक लोगों की आंखों में आंसू हैं, तब तक हमारा कार्य समाप्त नहीं होगा। आज एक बार फिर वर्षों के संघर्ष के बाद, भारत जागृत और स्वतंत्र है। भविष्य हमें बुला रहा है। हमें कहां जाना चाहिए और हमें क्या करना चाहिए, जिससे हम आम आदमी, और श्रमिकों के लिए स्वतंत्रता और अवसर ला सकें। हम निर्धनता मिटा, एक समृद्ध, लोकतांत्रिक और प्रगतिशील देश बना सकें। हम ऐसी सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संस्थाओं को बना सकें जो प्रत्येक स्त्री-पुरुष के लिए जीवन की परिपूर्णता और न्याय सुनिश्चित कर सके। कोई भी देश तब तक महान नहीं बन सकता जब तक उसके लोगों की सोच या कर्म संकीर्ण हैं।

प्रथम प्रधानमंत्री, जवाहरलाल नेहरू

आजादी कहने को र्सिफ  एक शब्द है इसकी भव्यता को कोई भी शब्दों में नहीं बांध सकता। आजादी का अर्थ है: विकास के पथ पर आगे बढ़कर देश और समाज को ऐसी दिशा देना, जिससे हमारे देश की संस्कृति की सोंधी खुशबू चारों ओर फैल सके।

   आजादी का मूल्य देश ने भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, सुखदेव, सुभाषचन्द्र बोस आदि के प्राण खोकर चुकाया है। देश की आजादी की कहानी में शायद ही कोई ऐसा पन्ना हो जो आंसुओं से होकर न गुजरा हो। झांसी की रानी से गांधी जी के असहयोग आन्दोलन तक की मेहनत के बाद आजादी प्राप्त हुई है। सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महायज्ञ का प्रारंभ झांसी की रानी और मंगल पांडे ने किया और अपने प्राणों को भारत माता पर न्योछावर किया। देखते ही देखते यह चिन्गारी एक महासंग्राम में बदल गयी जिसमें पूरा देश कूद पड़ा। इस आजादी के लिए तिलक ने 'स्वराज हमारा जन्मसिद्ध अधिकार हैÓ का सिंहनाद किया।

चन्द्रशेखर आजाद ने अपना धर्म ही आजादी को बताया। भगत सिंह ने देशभक्ति की जो लौ पैदा की वह अद्भुत है। ईंट का जवाब पत्थर से देने की क्रांतिकारियों की ख्वाहिश का सम्मान यह देश हमेशा करेगा। देश को गर्व है कि उसके इतिहास में भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु और असंख्य ऐसे युवा हुए जिन्होंने अपने प्राणों को भारत माता के लिए हंसते-हंसते न्योछावर कर दिये।  महात्मा गांधी यूं तो किसी परिचय का मोहताज नहीं लेकिन यह राष्ट्र उन्हें राष्ट्रपिता के रूप में जानता है।  लम्बे वर्षों के संघर्ष के बाद 15 अगस्त, 1947 को भारत को स्वतंत्रता का वरदान मिला। वर्षों की गुलामी सहने और लाखों देशवासियों का जीवन खोने के बाद हमने यह बहुमूल्य आजादी पाई है, लेकिन आज की युवा पीढ़ी आजादी का वास्तविक अर्थ भूलती जा रही है।

1947 ई. के भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के अनुसार भारत को दो अधिराज्यों में बांटा गया। (भारत तथा पाकिस्तान) देश को बांटने के बाद महात्मा गांधी की मदद से भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू बने। भारत की स्वतंत्रता के लिए अनेक वीरों ने देश के प्रति अपना बलिदान दिया। महात्मा गांधी जैसे कई भारतीय देशभक्तों के नेतृत्व में लोगों ने अहिंसक प्रतिरोध और आन्दोलनों मेें बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया।

स्वतंत्रता के बाद भारत दो भागों में बंट गया जिससे भारत तथा पाकिस्तान नामक दो नए देशों का उदय हुआ। भारत विभाजन के बाद अनेक दंगे, हिंसा और अनेक प्रकार की बहुत सारी घटनाएं हुईं जिससे बड़ी संख्या में लोगों का विस्थापन हुआ। अधिक मात्रा में जितने भी मुस्लिम धर्म के लोग थे वे पाकिस्तान चले गये और जितने भी हिन्दू एवम् सिख धर्म के लोग थे वह भारत आ गये।

''भगत सिंह इस बार न लेना, काया भारतवासी की, क्यूंकि देशभक्ति के लिए आज भी सजा मिलेगी फांसी की" जिस आजादी के लिए हमने देश के लिए कई महान वीरों की आहुति दी है उस आजादी को ऐसे बर्बाद करना बिल्कुल सही नहीं है। हमें देश को भ्रष्टाचार, गरीबी, नशाखोरी, अज्ञानता से आजादी दिलाने की कोशिश करनी चाहिए। देश को शायद आज एक नए स्वतंत्रता संग्राम की जरूरत है। इस स्वतंत्र देश के नागरिक होने के नाते हमें अपने आपसे वादा करना है कि हम अपने देश को विकास की उंचाइयों तक ले जाएंगे और भारत को फिर से सोने की चिड़िया बनाएंगे ताकि हमारे देशभक्तों और शहीदों का बलिदान व्यर्थ न जाए। 
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