स्वतंत्रता दिवस का महत्व

2018-08-20 0

स्वतंत्रता दिवस का महत्व

देश के प्रथम नागरिक और देश के राष्ट्रपति स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर ''राष्ट्र के नाम सम्बोधनÓÓ देते हैं। इसके बाद अगले दिन दिल्ली में लाल किले पर तिरंगा झंडा फ हराया जाता है। जिसे 21 तोपों की सलामी दी जाती है। इसके बाद प्रधानमंत्री देश को सम्बोध्ति करते हैं। आयोजन के बाद स्कूली छात्रा तथा राष्ट्रीय कैडेट कोर के सदस्य राष्ट्रगान गाते हैं। लाल किले में आयोजित देशभक्ति से ओतप्रोत इस रंगारंग कार्यक्रम को देश के सार्वजनिक प्रसारण सेवा दूरदर्शन (चैनल) द्वारा देशभर में सजीव (लाइव) प्रसारित किया जाता है। स्वतंत्रता दिवस की संध्या पर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली तथा सभी शासकीय भवनों को रंग-बिरंगी विद्युत सज्जा से सजाया जाता है, जो शाम का सबसे आकर्षक आयोजन होता है। 15 अगस्त के दिन पतंग उड़ाने का भी अपना ही एक अलग महत्व है। भिन्न-भिन्न प्रकार और स्टाइलिश पतंगों से भारतीय आकाश भर जाता है। इनमें से कुछ पतंगें तिरंगे के रंग की भी होती हैं जो भारतीय राष्ट्रीय ध्वज को प्रदर्शित करती हैं।

स्वतंत्रता दिवस को हम भारत की आजादी को याद करने के लिए मनाते हैं तथा उन वीरों को याद करने के लिए मानते हैं। जिन्होंने देश को आजाद कराने में अपना योगदान दिया। हमें आज कसम खाना चाहिए कि हम कल के भारत के एक जिम्मेदार और शिक्षित नागरिक बनेंगे। हमें गंभीरता से अपने कर्तव्यों को निभाना चाहिए और लक्ष्य प्राप्ति के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए तथा सफलतापूर्वक इस लोकतांत्रिक राष्ट्र को नेतृत्व प्रदान करना चाहिए।

कविता

सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है जोर कितना बाजुए कातिल में है
वक्त आने पर पर बता देंगे तुझे ऐ आसमां
हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है
सरफरोशी की तमन्ना....
खींचकर लाई है हमको कत्ल होने की उम्मीद
आश्कों का आज जमघट कूच, कातिल में है।
सरफरोशी की तमन्ना....

तू ना रोना कि तू है भगतसिंह की मां
मरके भी लाल तेरा मरेगा नहीं।
घोड़ी चढ़के तो लाते हैं दुल्हन सभी
हंस के हर कोई फ ासी चढ़ेगा नहीं।।

मादरे हिन्दोस्तां, नाची-ज तोहफ ा कर कबूल
खून से लिथड़ा हुआ, अपना ही सर लाया हूं मैं,
- प्रसिद्ध क्रांतिकारी शहीद राम प्रसाद 'बिस्मिलÓ

दिल फि दा करते हैं, कुर्बान जिगर करते हैं
खाना वीरान कहां, देखिए घर करते हैं
खुश रहो अहले वतन
हम तो सफ र करते हैं।

देश सेवा का ही बहता है लहू नस-नस में
अब तो खा बैठे हैं चित्तौड़ के गढ़ की कस्में
भाई खंजर से गले मिलते हैं आपस में
देश वालों जो तबीयत में तुम्हारी खटके
याद कर लेना कभी हमको भी भूले-भटके।



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