अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध से टेक्सटाइल निर्यात को होगा लाभ

2019-11-01 0

यूएस और चीन के बीच व्यापार युद्ध  से भारतीय होम टेक्सटाइल निर्यात को फ़ायदा होने की आशा है। इस समय यूएस मांग मंद होने से यह लाभ नगण्य है।

चीन के टावेल्स एंड सीट्स सहित होम टेक्सटाइल पर सितंबर के प्रारंभ से यूएस ने आयात शुल्क लगाया है। इस उत्पादन का भारत बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश है। इससे यूएस मार्केट में भारतीय होम टेक्सटाइल्स उत्पादक कंपनियां जैसे कि वेलस्पन इंडिया लि-, इंडोकाउंट इंडस्ट्रीज लि- और हिम्मत सिंघका लि- को लाभ होने की संभावना है।

यूएस में चीन के कॉटन-फैशन आयात का हिस्सा घट रहा है। हालांकि भारत का हिस्सा अभी स्थिर है और भारतीय कंपनियां ‘रुको और इंतजार करो’ की स्थिति में है। विश्व बाजार में चीन ने जो हिस्सा खोया है उसका अधिक लाभ वियतनाम और बांग्लादेश ने उठाया है।

इन दो देशों का यूएस के साथ बेहतर व्यापार करार है और वे अपने स्थानीय उत्पादकों को ऊंचा लाभ ऑफर कर रहे है।

अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध बढ़ने से अमेरिका की टाप फैशन ब्रांड्स की कुछ कंपनियां नई दिल्ली में अधिकारियों से मिलकर भारत से अधिक सोर्सिंग करने के अवसरों की चर्चा कर रही है और भारत-अमेरिका के बीच मुत्तफ़ व्यापार करार (एफटीए) करने के लिए दबाव कर रही है। हांगकांग में अमेरिकन चेम्बर ऑफ कामर्स के 18 यूएस फैशन कंपनियों का प्रतिनिधिमंडल यहां आया है।’

वह सीआईआई के साथ मिलकर भारत में भारी निवेश के अवसरों की पड़ताल कर रहा है। उन्होंने सिंथेटिक कपड़े के आयात पर कस्टम्स ड्यूटी घटाने की भी सरकार से मांग की है।

मुख्य अमेरिकन एपरल ब्रांड्स में राल्फ लॉरेन, केल्विन क्लेन, वान हुसेन, कार्टर्स आदि का समावेश है।

एमएम हांगकांग के अध्यक्ष तारा जोसेफ ने कहा कि चीन से मेन्युफैक्चरिंग बाहर जा रही है, इससे भारत को मैन्युफैक्चरिंग में अमेरिकन निवेश को आकर्षित करने का विशाल अवसर है। इसके बावजूद भारत को बांग्लादेश, वियतनाम, इंडोनेशिया जैसे देशों की भारी स्पर्धा का सामना करना पड़ता है। इससे भारत को धंधा करने की सरलता बढ़ाने की, और कुशल श्रमिक तैयार करने की क्लोदिंग क्षेत्र के लिए लम्बे समय तक टिकने वाली विकास योजना तैयार करने की जरूरत है।

सीआईआई टेक्सटाइल्स टास्क फोर्स के चेयरमैन गौतम नायर ने कहा कि पिछले चार वर्ष में चीन के टेक्सटाइल्स क्षेत्र से 30 अरब डालर का निवेश वापस लिया गया है, लेकिन उसमें का बहुत कम निवेश भारत में आया है। 



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