करवा चैथ भारत का एक प्रसिद्ध त्यौहार

2019-11-01 0

सुहागिन महिलाओं का सबसे बड़ा त्यौहार है करवा चैथ। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखकर पति की लंबी आयु की कामना करती हैं। शाम में पूरे विध्-िविधन से करवा माता की पूजा की जाती हैं, रात में चंद्रमा को अघ्र्य देकर व्रत खोला जाता है।

इस बार करवा चैथ का व्रत 17 अक्टूबर को धूमधम से मनाया गया। इस दिन कुछ जगहों पर सुबह-सवेरे जागकर सरगी खाई जाती है अन्य जगहों पर सरगी खाए बगैर ही व्रत रखा जाता है।

करवा चैथ की पूजा शाम को की जाती है और इसमें मुहूर्त का खासतौर पर ध्यान रखा जाता है जिससे कि पूजा का पूरा पफल मिल सके। वहीं पूजा विधि पर भी ध्यान दिया जाता है ताकि किसी तरह की कोई त्राुटि न रह जाए।

इसलिए कहते हैं करवा चैथ

करवा चैथ दो शब्दों से मिलकर बना है, करवा यानी कि मिट्टी का बर्तन व चैथ यानी गणेशजी की प्रिय तिथि चतुर्थी। प्रेम, त्याग व विश्वास के इस अनोखे महापर्व पर मिट्टी के बर्तन यानी करवे की पूजा का विशेष महत्व है, जिससे रात्रिा में चंद्रदेव को जल अर्पण किया जाता है ।

द्रौपदी ने भी किया था करवा चैथ का व्रत

रामचरितमानस के लंका काण्ड के अनुसार इस व्रत का एक पक्ष यह भी है कि जो पति-पत्नी किसी कारणवश एक दूसरे से बिछुड़ जाते हैं, चंद्रमा की किरणें उन्हें अध्कि कष्ट पहुंचाती हैं। इसलिए करवा चैथ के दिन चंद्रदेव की पूजा कर महिलाएं यह कामना करती हैं कि किसी भी कारण से उन्हें अपने प्रियतम का वियोग न सहना पड़े।

महाभारत में भी एक प्रसंग है जिसके अनुसार पांडवों पर आए संकट को दूर करने के लिए भगवान श्री कृष्ण के सुझाव से द्रौपदी ने भी करवा चैथ का पावन व्रत किया था। इसके बाद ही पांडव यु( में विजयी रहे।

करवा चैथ की पूजा विधि..

- करवा चैथ वाले दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान कर लें।

- अब इस मंत्रा का उच्चाररण करते हुए व्रत का संकल्प लें- ‘‘मम सुखसौभाग्य पुत्रापौत्राादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये’’।

- सूर्याेदय से पहले सरगी ग्रहण करें और पिफर दिन भर निर्जला व्रत रखें।

- पूजा के समय सबसे पहले एक सापफ चैकी लें उस पर गंगाजल छिड़क कर उसे शु( करें और लाल रंग का कपड़ा बिछाएं।

- इसके बाद चैकी पर चैथ माता की तस्वीर या चित्रा स्थापित करें।

- चित्रा स्थापित करने के बाद उस चैकी पर चावलों को पफैलाएं और उस पर करवा स्थापित करें।

- इसके बाद करवे में जल भरें और उसे उसे ढक्कन से ढक दें। करवे के ढक्कन के ऊपर चीनी रखें।

- इसके बाद करवे पर घी का दीपक जलाएं। दीपक रखने के बाद चैथ माता और अन्य सभी लोगों का तिलक करें।

-चैथ माता के तिलक के बाद करवे का भी तिलक करें। करवे पर तिलक लगाकर अक्षत भी लगाएं।

-इसके बाद एक लोटा जल भरकर और रखें। पिफर चैथ माता को पफूल और माला अर्पित करें।

-इसके बाद चैथ माता को पांच पफल अर्पित करें।

- इसके बाद मां को मिठाई अर्पित करें। मिठाई के बाद सास की थाली को मां के सामने रखें।

- चैथ माता को सभी वस्तुएं अर्पित करने के बाद चैथ माता की कहानी पढ़ें या सुने और मां को पूड़ी और पुए का भोग लगाएं।

- चैथ माता की कथा पढ़ने के बाद धूप व दीप से गणेश जी की और मां लक्ष्मी की आरती करें।

- चैथ माता की पूजा के बाद शाम के समय चंद्रमा निकलने पर चंद्रमा की विध्वित पूजा करें।

- उसके बाद जो करवा पूजा में रखा था उससे चंद्रमा को अघ्र्य दें।

- इसके बाद पति के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लें और सभी बड़ों के पैर भी अवश्य छुएं।

- अंत में सास की थाली सास के पैर छूकर आदर सहित उन्हें यह थाली दें।

करवा चैथ का महत्व

चैथ के दिन सुहागन स्त्रिायां पूरे दिन भूखें प्यासे रहकर अपने पति की लंबी उम्र के व्रत रखती हैं। शास्त्राों के अनुसार करवा चैथ के व्रत से न केवल पति की उम्र लंबी होती है। बल्कि इस व्रत से वैवाहिक जीवन भी सुखमय होता है।

इस त्यौहार को पूरे भारत में बड़ी धूमधम से मनाया जाता है। विशेषकर उत्तर भारत के हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश आदि राज्यों में तो इस पर्व को बड़े ही हर्षाेल्लास से मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान श्री गणेश की पूजा की जाती है और करवा चैथ व्रत की कथा सुनी जाती है। करवा चैथ के दिन कथा सुनने को विशेष महत्व दिया जाता है। इसके बाद चांद को देखकर पूजा की जाती है और व्रत खोला जाता है।

शास्त्राों के अनुसार विवाह के 12 वर्ष से 16 वर्ष तक इस व्रत को किया जाता है लेकिन कुछ महिलाएं इस व्रत को जीवन भर रखती हैं। इस व्रत को पति की लंबी उम्र के लिए विशेष माना जाता है। इस व्रत से अध्कि श्रेष्ठ कोई उपवास नहीं है। 



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