नेशनल में गोल्ड जीतने के बाद अब निगाहें वल्र्ड चैंपियनशिप पर

छह साल पहले मुजफ्रानगर दंगे में शाहपुर गांव सबसे ज्यादा प्रभावित
हुआ। इन दंगों में 72 से ज्यादा लोग मारे गए थे। निर्दोष बालियान शाहपुर के सरकारी कॉलेज
में कुश्ती का अखाड़ा चलाते थे दंगाइयों ने इस कॉलेज को भी तोड़ दिया था। यहीं पर
निर्दोष बालियान कुश्ती की टेªनिंग देते थे। अखाड़े में लगभग 60
पहलवान थे।
इन पहलवानों में गौरव बालियान भी थे, जो पास के ही
गांव शोरोन के थे। दंगों के बाद गौरव भी अखाड़ा छोड़कर घर चले गए थे। हालांकि,
उन्होंने
कुश्ती नहीं छोड़ी और अपने गांव में ही ट्रेनिंग करते थे। अखाड़े के कोच निर्दाेष
बालियान निराश होकर घर लौट गए और पिता के साथ खेती में हाथ बंटाने लगे। लेकिन सात
महीने बाद उन्होंने पफैसला किया कि ट्रेनिंग सेंटर दोबारा शुरू करना चाहिए।
उन्होंने पिता से सलाह की और घर की जमीन बैंक में गारंटी के रूप में रखकर लोन ले
लिया।
‘घर पर बैठना मंजूर नहीं था’
निर्दाेष बताते हैं, ‘मैंने घर की 5 एकड़ जमीन गिरवी
रखकर 60 लाख रुपए का लोन लिया। घर पर बैठना और बच्चों को कुश्ती से दूर होते
देखना मुझे मंजूर नहीं था। खुशी है कि मैंने वह रिस्क लिया। हमारे अखाड़े के 18
साल के गौरव बालियान ने महाराष्ट्र में अंडर-23 नेशनल
चैम्पियनशिप में 74 किग्रा वेट कैटेगरी में गोल्ड मेडल जीता।’ गौरव ने बुडापेस्ट ;हंगरीद्ध
में अंडर-23 वल्र्ड चैम्पियनशिप के लिए क्वालीपफाई किया।
अभी कुछ खास हासिल नहीं किया
निर्दाेष कहते हैं, ‘हमने अभी कुछ खास हासिल नहीं किया है।
गौरव अभी भी बच्चा है। मुझे उम्मीद है कि वह अगले तीन ओलंपिक खेल सकता है। वह
हमारे अखाड़े के अन्य पहलवानों से ज्यादा मेहनत करता है। गौरव कुश्ती की टेक्नीक और
स्किल जानता है। उसे सिपर्फ इतना बताना पड़ता है कि कब किस टेक्नीक का इस्तेमाल
करना है। मैं हमेशा खिलाड़ियों से कहता हूं कि कुश्ती को अपना जुनून बनाओ। कुश्ती
सिपर्फ इसलिए मत लड़ो कि आपको नौकरी चाहिए। गौरव का यह तीसरा इंटरनेशनल इवेंट है।
वह वहां मेडल जीते या नहीं, इससे पफर्क नहीं पड़ता। लेकिन यह उसके
लिए सीखने और खुद को साबित करने का बहुत अच्छा मौका है।’
लोकल दंगल के पैसों से घर चलाते थे गौरव
गौरव के पिता की 2007 में कैंसर से मौत हो चुकी है। तब उसकी
उम्र सिपर्फ 6 साल थी। मां ने तीन बेटों के पालन-पोषण के लिए 2000
रुपए प्रतिमाह में आंगनवाड़ी में काम करना शुरू किया। कुश्ती में अच्छी डाइट की
जरूरत होती है। इसलिए कोच निर्दाेष बालियान ने गौरव की आर्थिक रूप से मदद भी की।
कुछ साल ट्रेनिंग के बाद गौरव लोकल दंगल में भी हिस्सा लेने लगा, ताकि
वहां से जीती प्राइज मनी से मां की मदद कर सके। गौरव कहते हैं, ‘मेरे
दोनों भाइयों के पास पिफलहाल कोई काम नहीं है। मां अभी भी आंगनवाड़ी में काम करती हैं।
मैं कुश्ती के जरिए ही उनकी हरसंभव मदद की कोशिश करता हूं।’
दो बार कैडेट नेशनल खिताब जीत चुके गौरव
गौरव दो बार कैडेट नेशनल और एक बार जूनियर नेशनल चैम्पियन बन चुके हैं। वे अपने से ज्यादा अनुभव वाले खिलाड़ियों को हरा चुके हैं। गौरव ने नेशनल चैम्पियनशिप के क्वार्टर फाइनल में विकास को 14-4, सेमीपफाइनल में जूनियर एशियन चैम्पियन और नेशनल टीम के सदस्य सचिन राठी को 3-1 और पफाइनल में प्रीतम को 5-1 से मात दी थी।