सिर्फ किसानों को ही दोषी क्यों ठहराया जाता है जबकि ज्यादातर धुएं का उत्पादन दिल्ली में ही होता है

दिल्ली के लोग साफ हवा में सांस ले सकें, इसके लिए किसानों को मजबूर किया जा रहा है कि पराली जलाना बंद करें। इस बीच दिल्ली वाले अपनी गाड़ियों से डीजल का धुआं निकालते रहेंगे, जेनरेटर सेट चलाते रहेंगे और पटाखे तो वे फोड़ेंगे ही।
दिल्ली में इस मौसम में प्रदूषण के तीन बड़े कारण हैं। सबसे बड़ी वजह है यहां की प्राइवेट गाड़ियां। दूसरी वजह है आस-पास के इलाकों में किसानों द्वारा खेतों में जलाए जाने वाले खूंट, जिसे इस इलाके में पराली और कुछ इलाकों में पुआल कहा जाता है। तीसरी वजह है इस समय पफोड़े जाने वाले पटाखे।
लेकिन दिल्ली का मीडिया इस समय इस अंदाज में खबरें छाप रहा है मानो
पंजाब और हरियाणा के किसान दिल्ली वालों के दुश्मन हैं और अपनी मस्ती के लिए खेतों
में पराली जलाकर दिल्ली वालों को बेदम कर रहे हैं।
प्रदूषण पर बहस की शुरुआत में मीडिया में चली इस खबर से हुई कि
दिल्ली में वायु प्रदूषण में पंजाब और हरियाणा में जलाई जा रही पराली का योगदान 35
प्रतिशत है। इसके साथ ही दिल्ली के प्रभावशाली लोगों को प्रदूषण का विलेन मिल गया
और किसानों के खिलापफ माहौल बनना शुरू हो गया।
फिर जैसा कि होता है कि विलेन की घर-पकड़ शुरू हो गई। हरियाणा के
पफतेहाबाद जिले में एक ही दिन में 17 किसानों के खिलापफ पराली जलाने के
मामले में एपफआईआर दर्ज कराई गई है। पंजाब और हरियाणा में मिलाकर सैकड़ों की संख्या
में ऐसी एपफआईआर दर्ज हुई हैं। किसानों पर पराली जलाने के अपराध् में जुर्माना
लगाया जाएगा।
दिल्ली के लोग साफ हवा में सांस ले सकें, इसके लिए
हरियाणा पुलिस ने स्पेशल टीम बनाई है, जो खेतों में खूंट जलाने वाले किसानों
को देखते ही उनके खिलाफ कार्रवाई करती है। यह सब सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी के
आदेशों पर हो रहा है। हरियाणा में ऐसी कार्रवाईयों की संख्या साल में एक हजार को
पार कर जाती हैं। पंजाब ने इस साल किसानों को चेतावनी दी है कि अगर उन्होंने खेतों
में पराली जलाई तो उन्हें अगले साल खेती करने के लिए जमीन लीज पर नहीं मिलेगी।
इस तरह दिल्ली के एक-तिहाई प्रदूषण से निबटने के लिए सरकार, पुलिस
और न्यायपालिका की सख्ती जारी है।
बाकी दो तिहाई प्रदूषण का क्या हो रहा है?
पराली जलाने का प्रदूषण तो साल में सिपर्फ 15 दिनों का है,
जब खरीपफ, मुख्य रूप से धन, की पफसल कट चुकी होती है और रबी की
पफसल के लिए खेत तैयार किए जाते हैं। पिफर ऐसा क्या है कि दिल्ली की हवा साल भर
गंदी रहती है? दिल्ली का प्रदूषण कोई मौसमी समस्या तो है नहीं। जब किसान पराली नहीं
जलाते हैं तब दिल्ली की हवा को प्रदूषित कौन करता है।
इसमें कोई राज नहीं है। पर्यावरण प्रदूषण नियंत्राण प्राध्किरण का
कहना है कि दिल्ली का 40 प्रतिशत प्रदूषण गाड़ियों की वजह से है। चूंकि दिल्ली में तमाम
कॉमर्शियल गाड़ियां सीएनजी से चल रही हैं, इसलिए अंदाजा लगाया जा सकता है कि
पेट्रोल और डीजल से चलने वाली कारें प्रदूषण की मुख्य वजह हैं। इसके अलावा डीजल
जनरेटर सेट भी प्रदूषण पफैलाते हैं। जिस तरह किसानों को पराली जलाने से रोका जा
रहा है, क्या उसी तरह दिल्ली में डीजल और पेट्रोल की कारों को बैन किया जा
सकता है?
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दिल्ली के इलीट का मिजाज
दिल्ली की कोठियों और अपार्टमेंट में एक और ही दुनिया बसती है। अगर
उनकी सप्लाई का पानी खराब है तो वे बोतल का पानी पी लेंगे। अगर बिजली जाने से
समस्या है तो वे डीजल जेनरेटर सेट लगा लेंगे। अगर सुरक्षा की जरूरत हो तो वे
इक्विपमेंट लगाने के साथ ही प्राइवेट सिक्युरिटी गार्ड रख लेंगे। जीवन की हर
समस्या का उनके पास प्राइवेट समाधन है, जो बाजार में पैसे चुकाने पर उपलब्ध्
है। लेकिन हवा एक ऐसी चीज है, जो उन्हें बाकी लोगों के बराबर खड़ा कर
देती है। बेशक एयर प्यूरीपफायर आदि के जरिए इस समस्या का भी समाधन खोजने की कोशिश
हो रही है। लेकिन उनकी सीमाएं हैं।
हवा सापफ हो, इसके लिए कारों की संख्या कम करना,
एसी
कम चलाना, जेनरेटर का इस्तेमाल कम करना जैसे उपाय किए जा सकते हैं। लेकिन इनका
बोझ उठाने को ये वर्ग तैयार नहीं है। इसलिए वे चाहते हैं कि प्रदूषण कम करने का
बोझ किसानों के कंधें पर डाल दिया जाए।
और पिफर पटाखे भी तो पफोड़ने हैं
पिछले साल दिल्ली के लोगों ने 50,00,000 किलो पटाखे दिवाली के दिन पफोड़ डाले। अबकी बार ये पटाखे तब पफोड़े जा रहे हैं, जबकि
दिल्ली में ग्रीन या इको- फ्रेंडली पटाखों के अलावा किसी और तरह के
पटाखे बेचने पर पाबंदी है। लेकिन दिल्ली के लोग कहां मानने वाले? उन्होंने
आसपास के शहरों से पटाखे लाकर दिवाली मना ली। हालांकि इंडियन कौंसिल ऑफ साइंटिपिफक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ने इको फ्रेंडली पटाखे बनाए हैं। लेकिन दिल्ली में इनकी नाम मात्रा की ही बिक्री हो रही है। 50
लाख किलो पटाखे पफोड़ने वाली दिल्ली में पुलिस ने इस साल 3,500
किलो पटाखे जब्त करने खानापूर्ति कर दी है। 166 विक्रेताओं को
गिरफ्रतार भी किया गया है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश और सरकार को ध्ता बताते हुए इस
साल दिल्ली के लोगों ने दिवाली के दिन रुब्तंबामतेॅंसपक्पूंसप का हैशटैग ट्रैंड
कराया और साथ में पटाखे पफोड़ने की तस्वीरें पोस्ट कीं। अगले ही दिन दिल्ली में
प्रदूषण खतरनाक स्तर पर चले जाने की खबरें आईं। लेकिन दोष किसानों के सिर पर डाल
दिया गया।
किसान मस्ती के लिए नहीं जलाते पराली
पटाखे पफोड़ने की मस्ती से अलग, किसानों के लिए पराली जलाना उनकी मजबूरी है। पंजाब, हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश भारत के वो इलाके हैं, जहां हरित क्रांति सपफल रही। इसकी वजह से इस इलाके के खेतों में साल में तीन पफसलें ली जाती हैं। इसका पराली जलाए जाने से सीध संबंध् है। पंजाब के कृषि सचिव बताया कि चूंकि रबी की पफसल कटने के पफौरन बाद गेहूं बोने का समय आ जाता है, और इन दोनों के बीच ज्यादा मोहलत नहीं होती, इसलिए किसान धन की पफसल के खेत में बचे हुए हिस्सों को जला देते हैं, ताकि उनके खेत अगली पफसल के लिए तैयार हो जाएं।’
अदालतों की सख्ती के बाद सरकार पराली जलाने की प्रथा बंद कराने के
लिए कमर कस चुकी है। पफसल कटाई की मशीन में सुपर स्ट्रा मैनेजमेंट सिस्टम यानी
पौध्े को नीचे से काटने की प्रणाली लगाने के लिए सरकार 50 पर्सेंट तक
सब्सिडी दे रही है। इसके बावजूद किसान को ऐसा एक सिस्टम लगाने पर 50,000
रुपए से ज्यादा खर्च करने पड़ते हैं। यानी दिल्ली के लोग सापफ हवा में सांस ले सकें,
इसके
लिए किसानों को मजबूर किया जा रहा है कि वे अपनी जेब से रुपए खर्च करें। इस बीच
दिल्ली वाले अपनी गाड़ियों से डीजल का धुआं निकालते रहेंगे, जनरेटर सेट
चलाते रहेंगे और पटाखे तो वे पफोड़ेंगे ही। वह भी तब जबकि दिवाली का पटाखों से कोई
संबंध् नहीं रहा है। भारत में पटाखों की पहली पफैक्ट्री ही 1830 के
आसपास कोलकाता में लगी।
कुल मिलाकर दिल्ली को सापफ हवा देने का दायित्व किसानों का है और दिल्ली वाले इस बीच दिल्ली को हवा को प्रदूषित करते रहेंगे। ये पुराने जमाने की वर्ण व्यवस्था जैसा मामला है जो शक्ल बदलकर आज भी जारी है। इसमें कुछ लोग उपभोग करते हैं और बाकी लोग सेवा करते हैं। अब कुछ लोग प्रदूषण पफैलाते हैं और बाकी लोगों से कहा जाता है कि वे हवा सापफ रखें । ऐसा न करने वालों के लिए दंड का प्रावधन है।