म्युचुअल फ़ंड सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट जारी रखने वालों को लंबी अवधिा में फ़ायदा

2019-12-01 0


सुंदरम म्युचुअल फंड के प्रबंध निदेशक सुनील सुब्रमण्यन ने कहा है कि निवेशकों को अल्पावधि के निवेश पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए और नकारात्मक खबरों को नजरअंदाज करना चाहिए। एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट जारी रखने वाले निवेशकों को लंबी अवधि में फायदा मिलेगा। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश---

क्या निवेश में आई हालिया नरमी चिंता का विषय है?

एक अवधि में एकमुश्त निवेश घटा है। ज्यादा निवेश निकासी के कारण शुद्ध निवेश का आंकड़ा अभी चिंताजनक नजर आ रहा है। निवेश निकासी की कई वजहें हो सकती है। हालिया निवेश निकासी निवेशकों की तरफ से सक्रिय प्रबंधन के कारण हुई है। जब चीजें सुधरेंगी तो वही रकम वापस आ जाएगी। साथ ही आपको याद रखना चाहिए कि निवेश में नरमी आधार प्रभाव की वजह से नजर आई है। पिछले दो साल में उद्योग ने 2 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश हासिल किया है। वैसे ही रिटर्न की अपेक्षा करना अनुचित है।

उतार-चढ़ाव में इजाफे ने फंड मैनेजरों का काम चुनौतीपूर्ण बना दिया है?

म्युचुअल फंड के नजरिये से देखें तो बाजार में उतार-चढ़ाव वास्तव में अच्छा होता है। जब बाजार में तेजी रहती है तो फंड मैनेजर परेशान रहते हैं क्योंकि निवेशक तब काफी उम्मीद के साथ आते हैं जब बाजार की ज्यादातर बढ़त हो चुकी होती है। उतार-चढ़ाव के दौर में खरीदारी करने वाले निवेशकों को अगले तीन साल में फायदा मिलेगा।  अभी निवेश करने पर विचार करने वालों को आप क्या सलाह देंगे?

एकमुश्त रकम लगाने के बजाय सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट बेहतर होता है क्योंकि बाजारों में आंतरिक तौर पर उतारचढ़ाव है। दूसरा पहलू भारत की बढ़त की कहानी पर भरोसा है। मुझे लगता है कि अगले दो दशक में भारत अगला चीन बनने जा रहा है। यह विदेशी निवेश का गुरुत्व केंद्र होगा। ऐसे में आंतरिक मूल्यांकन ऊपर जाएगा। इसलिए अल्पावधि का उतार-चढ़ाव लंबी अवधि के निवेशकों का मित्र होता है। ऐसे में मैं अल्पावधि के संकट को नजरअंदाज करने के लिए हर किसी को प्रोत्साहित करूंगा। हम निवेश में कॉन्ट्रा का इस्तेमाल कर सकते हैं। यह आपकी रकम सबसे ज्यादा उतार-चढ़ाव वाले क्षेत्र में रखेगा क्योंकि वही आपको पुरस्कृत करेगा। लोग उतार-चढ़ाव से आम तौर पर दूर रहते हैं। ज्यादातर फंड मैनेजर कॉन्ट्रा के जरिए फायदा देते हैं। हालांकि हमें कंपनी प्रशासन को लेकर सावधान रहना चाहिए।

सक्रियता से प्रबंधित फंड अपने बेंचमार्क को मात नहीं दे पा रहे हैं। सक्रिय बनाम निष्क्रिय पर जारी बहस पर आपकी क्या राय है?

संस्थागत रकम और धनाढड्ढ निवेशक निष्क्रिय योजनाओं खास तौर से लार्जकैप की तरफ ज्यादा देख रहे हैं। कई ईटीएफ के बेहतर प्रदर्शन की वजह यह रही कि फंड मैनेजरों का रिलायंस इंडस्ट्रीज पर दांव नहीं लगा पाए। ज्यादातर भारी तेजी का फायदा नहीं उठा पाए, जिसकी शुरुआत 2017 में हुई। इससे कई निवेशक निराश हुए। संपत्ति प्रबंधक को फंड प्रबंधन शुल्क देने के बावजूद वे इंडेक्स को मात नहीं दे पाए। ऐसे में हमने भी निष्क्रिय फंडों में रकम लगाई। आगे भी विशािखत लार्जकैप योजनाएं बेंचमार्क को मात नहीं दे पाएंगी। इससे ईटीएफ में और रकम जा सकती है।

आर्थिक सुधार में कितना समय लगेगा?

सुधार की प्रक्रिया लंबी होगी। मुझे लगता है कि सरकार उपभोग में मंदी को लेकर तेजी से कदम नहीं उठा रही है। सरकार पूंजीगत खर्च में इजाफे की कोशिश कर रही है। कंपनी कर में कटौती, एफडीआई नियमों में नरमी और बैकिंग व्यवस्था में नकदी झोंकने के कदम नए निवेश में इजाफे के लिए उठाए गए हैं। इसका वास्तविक असर एक अवधि में दिखेगा।

अगले साल हम कितने रिटर्न की उम्मीद कर सकते हैं?

बाजार के रिटर्न का अनुमान लगाना मुश्किल है। चूंकि निवेशकों को मंदी के दौरान सकारात्मक चीजें दिखी है, लिहाजा बाजार में उछाल शुरू हो गया है। निवेशक वास्तविक सुधार का इंतजार नहीं करते। वित्तीय बाजार में कुल मिलाकर दरें कम हुई हैं। रिटर्न एक अंक में (उच्चस्तर पर) रह सकता है क्योंकि बैंक दरें घट रही हैं। 



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