आर्थिक मंदी से औद्योगिक राज्यों में बिजली की खपत कम हो गई

आर्थिक मंदी के साथ बिजली की औद्योगिक मांग में गिरावट और बिजली
वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) की भुगतान की क्षमता कम होने का असर बिजली की खपत पर पड़ा
है। खपत कम होने से बिजली उत्पादन इकाइयों का मुनाफा घटा है। बड़े औद्योगिक राज्यों
महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश में बिजली की मांग में कमी आई है।
राष्ट्रीय स्तर देखें तो पिछले 5 साल के दौरान पूरे भारत में बिजली की
मांग में 2 से 4 प्रतिशत की मामूली बढ़ोतरी हुई है। वहीं वित्त वर्ष 2019
में मांग 7-9 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2015 में 8-8 प्रतिशत बढ़ी
है। भारत ने दो अंकों की जीडीपी और बिजली की मांग में वृद्धि का लक्ष्य रखा है।
मध्य प्रदेश सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘कुछ
समय से आर्थिक मंदी की स्थिति बन रही है। पिछले 5 साल के दौरान
कुछ अस्थायी सुस्ती भी देखी गई है, जिसने विनिर्माण क्षेत्र को प्रभावित
किया है, जहां बिजली की मांग ज्यादा होती है।’ लगातार दूसरे महीने बिजली की मांग 4-3
प्रतिशत कम हुई है, जो गिरकर 8 साल का निचला स्तर है। सितंबर में खनन गतिविधियों और बिजली उत्पादन
में भी कमी आई है। साथ ही विनिर्माण क्षेत्र सुस्त हुआ है। इनकी सूचकांक में
हिस्सेदारी 78 प्रतिशत होती है। औसतन औद्योगिक क्षेत्र की कुल मांग में हिस्सेदारी
35 प्रतिशत, आवास क्षेत्र की 20 प्रतिशत और कृषि सहित अन्य क्षेत्रें
की 17 प्रतिशत हिस्सेदारी होती है।
अप्रैल सितंबर के दौरान पिछले साल की समान अवधि की तुलना में बिजली
की मांग गुजरात में 1-12 प्रतिशत कम हुई है, जबकि महाराष्ट्र में 2-63
प्रतिशत कम हुई है। देश में बिजली की खपत 4-4 प्रतिशत बढ़ी है,
जिसमें
उत्तर प्रदेश को छोड़कर सभी राज्यों ने एक अंक की वृद्धि दर्ज की है। जेएसडब्ल्यू
एनर्जी के मुख्य परिचालन अधिकारी शरद महेंद्र ने कहा, ‘कई वजहें हैं।
ज्यादा औद्योगिक सघटता वाले राज्यों की मांग में वृद्धि कम हुई है। यह औद्योगिक
मंदी का संकेत है, जो पिछले 7 महीने में देखी जा रही है और आिखरकार इसका असर बिजली पर दिख रहा
है।’ उन्होंने कहा, ‘उत्तर प्रदेश, बिहार और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में
ग्रामीण विद्युतीकरण की वजह से मांग बढ़ाने में मदद मिली है। मैं उम्मीद करता हूं
कि मासिक आधार पर गिरावट कम होगी क्योंकि देश की बुनियादी स्थिति मजबूत है।’
यह झटका ऐसे समय में लगा है, जब भारत ने देश के सभी गांवों और
मकानों (99-9 प्रतिशत) के विद्युतीकरण हो जाने की घोषणा की है। लेकिन इससे वितरण
कंपनियों का खर्च बढने के साथ बिजली की लागत बढ़ गई है। राज्य सरकार की बिजली वितरण कंपनियों की
वित्तीय व परिचालन की स्थिति दुरुस्त करने की केंद्र सरकार की कवायद भी कारगर नहीं
हुई है। उज्ज्वल डिस्कॉम एश्योरेंस योजना (उदय) 2015 में शुरू की
गई। जो इस वित्त वर्ष के अंत तक पूरी हो जाएगी, लेकिन डिस्कॉम
की वित्तीय स्थिति खराब बनी हुई है। वितरण कंपनियों का कुल नुकसान (21
राज्यों का) वित्त वर्ष 19 के अंत तक 28,369
करोड़ रुपये रहा, जो एक साल पहले की तुलना में 88 प्रतिशत ज्यादा
है।
रिलायंस सिक्योरिटीज में वरिष्ठ शोध विश्लेषक ने कहा, ‘ज्यादा
बकाये की वजह से महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बिजली
की कटौती हो रही है, जिससे मांग कम है। मैं उम्मीद करता हूं कि यह अस्थायी लक्षण है और
बिजली की मांग साल की शेष अवधि में 4 प्रतिशत बढ़ेगी।’ वहीं अक्षय ऊर्जा की
हिस्सेदारी बढने से ताप बिजली इकाइयों का परिचालन अनुपात प्रभावित हो रहा है,
हालांकि
ग्रिड में इसकी हिस्सेदारी कम है। आल इंडिया प्लांट लोड फैक्टर या ताप इकाइयों का
परिचालन अनुपात सितंबर में 51-05 प्रतिशत रहा, जो पिछले साल के
59-8 प्रतिशत से कम है।
देश की सबसे बड़ी बिजली उत्पादक एनटीपीसी लिमिटेड का पीएलएफ वित्त वर्ष 20 की दूसरी तिमाही में गिरकर 64-3 प्रतिशत रह गया, जो पिछले साल की समान अवधि में 72-6 प्रतिशत था। कम पीएलएफ से बिजली खरीदारों द्वारा बिजली खरीद कम होने का पता चलता है, जिससे मुनाफा प्रभावित हो रहा है। सांखे ने कहा, ‘ज्यादा पनबिजली उत्पादन का भी ताप बिजली संयंत्रें के पीएलएफ पर असर पड़ा है।’