गांव के विकास और उनकी चुनौतियां

2019-12-01 0

किसानों को अपने परंपरागत बीज भी बचा कर रखने चाहिए और इन बीजों पर किसानों का पूरा अधिकार होना चाहिए, ताकि किसी पेटेंट कानून का उन पर प्रतिकूल असर न पड़े।

हाल के वर्षों में वैसे तो ग्रामीण व कृषि विकास की अनेक परियोजनाएं और कार्यक्रम चर्चित रहे हैं। लेकिन इन कार्यक्रमों में समतावादी दृष्टिकोण की कमी होती गई है। सबसे निर्धन वर्ग को केंद्र में रख कर निर्णय लिए जाने चाहिए, इस सिद्धांत की अब उपेक्षा हो रही है। सबसे निर्धन परिवार उपेक्षित महसूस का रहे हैं और प्रवासी मजदूर के रूप में दूर-दूर भटकने की मजबूरी बढ़ रही है।

विषमता कम करने के दो मुख्य उपाय हैं- जमीन के वितरण को समान बनाने का निरंतर प्रयास करना और रोजी-रोटी के अन्य साधनों में उनको पहल देना जिनके पास भूमि कम है। बहुत-सी भूमि ऐसे परिवारों के लिए उपलब्ध करवाई जा सकती है जो भूमिहीन हैं। इन परिवारों के साथ सरकार यह समझौता कर सकती है कि जब तक ये परिवार भूमि का उपजाऊपन बनाए रखेंगे, जमीन को हरी खाद या कंपोस्ट खाद से उपजाऊ बनाते रहेंगे, उस पर खेती करते रहेंगे, तब तक सरकार उनसे और उनके वारिसों से जमीन वापस नहीं लेगी।

इसके अतिरिक्त सरकार बहुत-सी वन भूमि तरह-तरह के फलदार और अन्य उपयोगी मिश्रित पेड़ लगाने के लिए भी भूमिहीनों को इस आधार पर दी सकती है कि जब तक वे इस भूमि को हरी भरी बनाए रखेंगे और पेड़ों की अच्छी देखभाल करेंगे, तब तक सरकार उनसे जमीन वापस नहीं लेगी। इस तरह जमीन का उपजाऊपन बढ़ेगा, उसकी हरियाली बढ़ेगी, वृक्ष बढ़ेंगे और लोगों की रोजी-रोटी की रक्षा भी सुनिश्चित होगी।

विषमता दूर करने का दूसरा मुद्दा यह है कि जमीन के अतिरित्तफ़ रोजी-रोटी के जो साधन हैं, उनमें प्राथमिकता उन्हें दी जाए जिनके पास भूमि कम है या जो भूमिहीन हैं। जंगल से लघु वन उपज एकत्र करने का हक उन्हें मिले और इसे वे जहां चाहे बेचें, पर साथ ही जंगल की सुरक्षा का पूरा ख्याल रखे। ऐसे तरीके न अपनाएं जिनसे पेड़ों का नुकसान हो। तालाब में और नदी में मछली पकड़ने का पहला हक उन्हें मिले। रेत, बजरी, पत्थर का काम उनकी समितियों या स्वयं सहायता समूहों को मिले। वे इस कार्य से आय तो प्राप्त करें, पर किसी तालाब, नदीखेत को नुकसान न पंहुचे और पर्यावरण भी सुरक्षित रहे। जहां ऐसा बहुत नुकसान होता हो, वहां खनन कार्य न किया जाए।

गांव में सड़क बननी हैखड़ंजा बनना है, स्कूल बनना है तो गरीब लोगों के स्वयं सहायता समूह या समिति को ही इसका ठेका दिया जाए। काम कराने का तौर-तरीका ऐसा हो, नियम बदले जाएं ताकि गरीब लोगों के समूहों को भी ठेके मिल सकें।

किसी भी गांव की समृद्धि और सुरक्षा के लिए जिस एक संसाधन की सबसे बड़ी जरूरत है, वह है पानी। अलग-अलग क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थिति को देखते हुए वहां जल संरक्षण के प्रयास भी अलग-अलग होंगे। इसके लिए अपने इलाके की परंपरा से सीखने का प्रयास होना चाहिए, क्योंकि उसमें सैंकड़ों वर्ष का अनुभव निहित है। अधिकांश स्थानों पर किसी न किसी रूप में तालाब, जोहड़ आदि की मुख्य भूमिका होगी। उन्हें बनाने में उचित और पर्याप्त जलग्रहण क्षेत्र का ध्यान रखना होगा, उनकी मरम्मत व रख रखाव की व्यवस्था करनी होगी। चेक डैम आदि में छोटे किसानों के खेतों की सिंचाई पर विशेष ध्यान दिया जाए। जल संरक्षण का सबसे सरल व सहज उपाय है धरती की हरियाली को बढ़ाना। विशेषकर चौड़ी पत्ती वाले पेड़ों की रक्षा करने से और उन्हें बड़ी संख्या में लगाने से जल संरक्षण में विशेष सहायता मिलेगी।

किसी गांव में जितना पानी हो, फसल चक्र उसके अनुकूल ही होना चाहिए। अगर गांव में गन्ना लगाने के लिए या अन्य अधिक जल मांगने वाली फसल के लिए पर्याप्त पानी न हो, तो ऐसी फसलों पर रोक लगनी चाहिए। एक-दो बड़े किसान तो अधिक जल उपयोग करने वाली फसलें लगा कर सारा जल खींच लें और छोटे किसानों को पेट भरने लायक खेती के लिए भी पानी न मिले, यह स्थिति असहनीय है। जल का उपयोग समानता के आधार पर होना चाहिए और उतना ही होना चाहिए जिससे गांव में कोई जल संकट न आए।

गांव की सबसे बड़ी संपदा उसकी मिट्टी होती है। लेकिन न जाने क्यों इस मिट्टी के वास्तविक मूल्य को ही हम भूल जाते हैं। मिट्टी का उपजाऊपन बना रहेगा, तभी अच्छी खेती हो सकेगी। मिट्टी में तरह-तरह के सूक्ष्म जीव और केंचुए होते हैं जो अपनी क्रियाओं से भूमि का उपजाऊपन बनाए रखते हैं। जहरीले रसायनों के अधिक उपयोग से विशेषकर जहरीले कीटनाशकों से ये जीव बड़ी संख्या में मरने लगते हैं और इसी कारण भूमि का उपजाऊपन कम होता जाता है। रासायनिक खाद के अधिक उपयोग से भी भूमि की उर्बरता में कमी आती है और भूमि को धीरे-धीरे इन बाहरी रसायनों की लत पड़ जाती है। जो भूमि सैकड़ों-हजारों साल से प्राकृतिक रूप से उपजाऊ बनी हुई थी, वह अब कृत्रिम रसायनों के बिना उत्पादन देने से इंकार करने लगी है। इसलिए गोबर की खाद, हरी खाद और कंपोस्ट को महत्त्व देना चाहिए।

गांव में और उनके आसपास हरे-भरे चरागाह होने चाहिए। यदि गांव के चरागाह और वन बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए हैं तो उन्हें चार या पांच भागों में बांट कर एक वर्ष में एक भाग को पशुओं के चरने से और अन्य बाहरी दखल से पूरी तरह आराम देना चाहिए। ये पाबंदी गांववासियों द्वारा आपसी सलाह से और क्षमतानुसार लगानी चाहिए, ताकि किसी गांववासी को अधिक समस्या न हो। एक वर्ष आराम देने से यहां कुछ हरियाली वापस आ जाएगी। इसी तरह दूसरे वर्ष दूसरे भाग को आराम देना चाहिए। ऐसे सारे चरागाहों और वनों की हरियाली लौट सकती है।

यदि गांव के पास अच्छी हालत में प्राकृतिक वन हैं तो इनकी रक्षा की जानी चाहिए। यदि प्राकृतिक वन पहले से मौजूद नहीं हैं तो बड़े पैमाने पर स्थानीय मिश्रित प्रजातियों के वृक्ष लगाने चाहिए जिससे प्राकृतिक वन जैसी स्थिति धीरे-धीरे उत्पन्न होने लगे। किसी एक प्रजाति के पेड़ न लगा कर तरह-तरह की देशीय प्रजातियों के पेड़ लगाने चाहिए। उन वृक्षों पर विशेष ध्यान देना चाहिए जिनसे पौष्टिक फल, चारा और दूसरे वनोत्पाद मिलें, ईंधन मिले, हरी पत्ती की खाद मिले, रेशा मिले और बिना पेड़ काटे स्थायी आधार पर अन्य दैनिक जीवन की उपयोगी वस्तुएं मिलें।

किसानों को अपने परंपरागत बीज भी बचा कर रखने चाहिए और इन बीजों पर किसानों का पूरा अधिकार होना चाहिए, ताकि किसी पेटेंट कानून का उन पर प्रतिकूल असर न पड़े। आपसी सहयोग से परंपरागत बीज बचाने चाहिए, उगाने चाहिए। जेनेटिक इंजीनियरिंग के बीजों व उत्पादों में अनेक खतरे है। इनपर यानि जीएम फसलों पर रोक लगनी चाहिए।

सामाजिक बदलाव के कई मुद्दों जैसे जाति और मजहब का भेदभाव दूर करने या कम करने पर आम सहमति होनी चाहिए। यदि किसी युवा को उनके घर के बूढ़े लोग सार्थक बदलाव के कारण रास्ते पर चलने से रोके तो पूरे गांव के अन्य लोग बड़े-बूढ़ों को समझाएं। दहेज प्रथा को समाप्त करना चाहिए और विवाह जैसे सभी सामाजिक आयोजनों पर खर्च कम करना चाहिए। इस बारे मे अन्य गांवों से भी समझौते कर लिए जाएं ताकि विवाह संबंध स्थापित होने में कठिनाई न आए। बिना दहेज के कम खर्च के विवाहों को पूरे गांव का आशीर्वाद मिले।

गांवों में समृद्धि लाने के लिए सबसे बड़ी जरूरत है शराब और हर तरह ने नशे के विरुद्ध पूरे गांव का एक साथ खड़े होना और इस बुराई को रोकने के लिए आम सहमति बनाना। गांव में शराब की वैध-अवैध सब तरह की बिक्री पर रोक लगे। स्थायी तौर पर सभी तरह के नशे व जुएं आदि सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध प्रचार करने की समिति बनाई जाए। इसमें महिलाओं की विशेष भागीदारी हो। 



मासिक-पत्रिका

अन्य ख़बरें

न्यूज़ लेटर प्राप्त करें