लोबिया की खेती करके छोटे किसान लाभ उठा सकते हैं

लोबिया की खेती छोटे और मझोले किसानों के लिए लोबिया की सब्जी के रूप
में खेती मुनाफे का सौदा साबित हो रही है, बरसात के दिनों में जब हरी सब्जियों का
उपलब्धता कम हो जाती है उस समय हरी सब्जी के लिए लोबिया का उत्पादन किसानों को
अच्छा मुनाफा दिलाता है।
छोटे और मझोले किसानों के लिए लोबिया की सब्जी के रूप में खेती मुनाफे का सौदा साबित हो रही है, बरसात के दिनों में जब हरी सब्जियों का उपलब्धता कम हो जाती है उस समय हरी सब्जी के लिए लोबिया का उत्पादन किसानों को अच्छा मुनाफा दिलाता है।
भारत के झारखंड, कर्नाटक, तमिलनाडु,
मध्य
प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़ व उत्तर प्रदेश के किसान लोबिया की खेती हरे चारे, हरी खाद, दलहन और हरी सब्जी के लिए बड़े पैमाने पर करते हैं। अलग-अलग प्रदेशों
में किसान लोबिया की बुवाई मार्च जुलाई और नवंबर माह में करते हैं। लेकिन उत्तर
प्रदेश के छोटे और मझोले किसान लोबिया की बुवाई मानसून आने पर प्रथम जुलाई के लगभग
हरी सब्जी के लिए करते हैं।
बाराबंकी के लोबिया की खेती करने वाले किसान सतेंद्र मौर्य बताते हैं,
‘‘लोबिया
की खेती हम जुलाई के प्रथम सप्ताह में करते हैं हम लोग लोबिया की दो प्रजातियों की खेती करते हैं। एक बौनी प्रजाति और एक लंबी लताओं वाली बौनी प्रजाति कि लोबिया में
सहारे की जरूरत नहीं होती है, जबकि लंबी लता वाली प्रजातियां में
मचान बनाने की जरूरत पड़ती है, जिस पर लोहिया का पौधा टिका रहता है और
झाड़ वाली लोबिया में उत्पादन भी बौनी प्रजाति से अच्छा होता है।’’
सतेंद्र मौर्य आगे कहते हैं, ‘‘बौनी प्रजाति की
लोबिया की बुवाई लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर करते हैं और पौधे से पौधे
की दूरी 15 सेंटीमीटर करते हैं लेकिन ज्यादातर हम किसान बौनी प्रजाति लोबिया की खेती गर्मियों के मौसम मार्च माह में ही करते हैं और लंबी लताओ वाली लोबिया की
बुवाई मानसून आने पर जुलाई माह के प्रथम सप्ताह में करते हैं और लाइन से लाइन की
दूरी 70 से 80 सेंटीमीटर की दूरी और पौधे से पौधे की दूरी 15 सेंटीमीटर रखते
हैं।
वहीं लोबिया की खेती करने वाले दूसरे किसान सुरेश विश्वकर्मा 50
वर्षीय बताते हैं कि लोबिया दलहनी फसल होने के कारण इनकी जड़ों में राइजोबियम
बैक्टीरिया पाया जाता है जो भूमि में नाइट्रोजन को बनाए रखता है और उर्वरा शत्तिफ़
बनी रहती है
लागत और मुनाफे के बारे में सुरेश विश्वकर्मा बताते हैं, ‘‘एक
एकड़ में लगभग आठ से दस हजार रुपए की लागत आती है और करीब एक एकड़ में 40 से
50 कुंटल तक लोबिया की हरी फलियों का उत्पादन होता है। जो 3000
रुपए प्रति से लेकर 1000 रुपए प्रति कुंतल तक का भाव हम किसानों को मिल जाता है, जिससें
हमें 60 से 70000 रुपए प्रति एकड़ शुद्ध मुनाफा मिल जाता है। लोबिया की बुवाई के बाद
करीब 60 दिन पौधा उत्पादन लेना शुरू कर देता है, जिसका लगातार
उत्पादन दो माह तक मिलता रहता है लोबिया की हरी फलियों की तोड़ाई हफ्रते में दो बार
करनी पड़ती है।’’
कृषि विशेषज्ञ तारेश्वर त्रिपाठी कहते हैं, ‘‘लोबिया की खेती
करने वाले किसानों को इस समय इस बात का विशेष ध्यान देना चाहिए कि खेतों में
जलभराव न होने पाए, क्योंकि जलभराव होने से लोबिया दलहनी फसल होने के नाते इनकी जड़ों में
जो लाभदायक राइजोबियम बैक्टीरिया होता है उसे नुकसान पहुंचता है। जिससे फसल के
उत्पादन पर भी असर पड़ता है हरी सब्जी के लिए लोबिया की खेती करने वाले किसानों को
जैविक उपाय करने चाहिए।’’
लोबिया की फसल में सुंडी कीट लग जाता है जो फली को नष्ट कर देता है
एक चितकबरी सुंडी होती है। जिसके लगने से पौधे की पत्तियां आपस में झुंड बना लेती
है और फसल के उत्पादन पर प्रभावित करती है इसकी रोकथाम के लिए नीम सीट कर्नल
स्टेटस निमोली 5% का छिड़काव करने से सुंडी कीट पर नियंत्रण मिलता है
न्यूक्लियर पॉली हाइड्रोसिस वायरस का छिड़काव फली की सुंडी की रोकथाम के लिए कर सकते हैं। डाइमिथोएट 30» का दो मिली प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव रस चूसते कीटों से बचाव के लिए किसान कर सकते हैं जिसका हमारे स्वास्थ्य पर ज्यादा बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है। अगर कीट ज्यादा लग गया है तो रसायनिक दवा मोनोपोटोफॉस 625 मिली प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव कर सकते हैं।