मनोरंजन से आध्यात्म तक

- कमल संसपाल, मेलबॉर्न , ऑस्ट्रेलिया
काम से आते ही सोचा कि कुछ चाय-नाश्ता कर लूं। थकावट के मारे बुरा
हाल था। चाय पीते-पीते टीवी- ऑन किया, जिस पर ‘‘द कपिल शर्मा शो’ आ रहा था।
जिसमें कपिल गीतकार उदित नारायण से पूछते हैं कि आप अपने बेटे के भाई जैसे लगते
हो। कुछ ऐसा ही सवाल था जिसके जवाब में उदित जी कहते हैं कि जब आदमी के मन में
‘मेरा-मेरा’ की जगह ‘तेरा-तेरा’ आने लगे तो ही यह संभव है।
बस गीतकार उदित जी के इन शब्दों ने मुझे झकझोर-सा दिया। मेरी आंखों
के सामने तो टीवी शो चल रहा था मगर मेरा मन ननकाना साहिब की गलियों में घूमने लगा
जहां नानक जी का जन्म हुआ था। तेरा-तेरा से मुझे गुरुवाणी का शब्द ‘तेरा तुझको सौंप
दूं क्या लागै मेरा’
यह शब्द मेरे कानों में तब तक गूंजता रहा जब तक मैंने यह लिखने के
लिए कलम कलम नहीं उठा ली।
तेरा-तेरा से ही मुझे गुरु नानक जी के जीवन की घटना याद आयी जो कि
सुल्तानपुर लोधी के यहां घटी थी। एक व्यक्ति जब नानक जी के पास 14
सेर अनाज मांगने आया तो तेरह सेर डालते-डालते वह अनाज डालते ही जा रहे थे मगर मुंह
से तेरह-तेरह यानी तेरा-तेरा ही रटते जा रहे थे। यह सब वहां का खजांची देख रहा था।
वह तुरंत सुल्तान के पास शिकायत लगाने गया तो बोला कि सुल्तान अगर नानक का यही
व्यवहार रहा तो खजाना खाली हो जाएगा।
सुल्तान के भण्डार गृह में आने पर जांच हुई तो अनाज की एक बोरी भी कम
नहीं थी।
अर्थात् जहां पर आध्यात्म, आत्मा-परमात्मा से सच्चा नाता जुड़ जाता
है वहां पर किसी भी चीज की कमी नहीं रहती। आज के भौतिक युग में जहां पर चारों ओर
अज्ञानता का बोलबाला है, वहां मैं, मेरा, मुझे
ही कहते-सुनते लोग मिलते हैं।
गलाकाट प्रतियोगिता के रहते लोग अर्पण-समर्पण की भावना भूलने लगे
हैं। ऐसे में मेरी यही प्रार्थना है कि संसार में हर जगह सुख शांति रहे। लोग
आध्यात्म से जुडें़।
तुमने सिखाया उंगली पकड़कर चलना,
तुमने बताया, गिरकर कैसे है संभलना
तुम्हारी वजह से ही है ये दिन ये शाम
तुम्हारा ही लेता रहूं नाम
आज पहुंची हूं जिस मुकाम पे,
यही तमन्ना जीवन मेरा बीते तेरा नाम ले।