दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020

2020-02-01 0


चुनाव की दहलीज पर खड़ी दिल्ली को लेकर एक सवाल चर्चा में है- क्या कोई चेहरा इस बार चुनाव की चाल बदल सकता है?

ये वो सवाल है, जो अब आए दिन ट्विटर ट्रेंड में दिख रहा है और दोबारा सरकार बनाने का दावा करने वाली आम आदमी पार्टी को खूब रास आ रहा है।

अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में ताल ठोक रही पार्टी का दावा है कि भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के पास मौजूदा मुख्यमंत्राी के मुकाबले कोई चेहरा नहीं है।

आम आदमी पार्टी के नेता और तिमारपुर सीट से उम्मीदवार दिलीप पांडेय कहते हैं, ‘ये आम आदमी पार्टी के लिए बहुत बड़ा एडवांटेज है। भारतीय जनता पार्टी के पास दिल्ली में न मुद्दे शेष हैं और न ही नेतृत्व बचा है।’ लेकिन, क्या वाकई एक अदद चेहरा चुनाव की चाल बदल सकता है?

तीनों पार्टियों ने सामने किए थे चेहरे

दिल्ली की राजनीति पर नजर रखने वाले विश्लेषक इस सवाल का जवाब आंकड़ों के आधार पर देते हैं। मौजूदा सदी यानी साल 2000 के बाद दिल्ली में हुए विधनसभा के चार चुनावों में से तीन में जीत का सेहरा चुनाव में अगुवाई करने वाले नेताओं के सिर पर सजा।

साल 2003 और 2008 में कांग्रेस ने शीला दीक्षित की ‘विकास परक’ छवि के सहारे 47 और 43 सीटें जीतकर भारतीय जनता पार्टी के मंसूबों पर पानी पफेर दिया। इस नतीजे के दम पर शीला दीक्षित ने दिल्ली में तीन बार मुख्यमंत्राी रहने का रिकॉर्ड बनाया और पार्टी के सबसे कद्दावर नेताओं में शुमार होने लगीं।

वहीं, साल 2015 में किरण बेदी पर भारी पड़े केजरीवाल ने पूरे जोर पर दिखती नरेंद्र मोदी की चुनावी लहर को दिल्ली विधनसभा में दाखिल नहीं होने दिया। आम आदमी पार्टी 70 में से 67 सीटें जीतने में कामयाब रही। 49 दिन की सरकार से इस्तीपफा देने के बाद सियासी वनवास की तरपफ बढ़ गए केजरीवाल ने 2015 की जीत से भारतीय राजनीतिक पटल पर जोरदार वापसी की।

2015 के दिल्ली विधनसभा चुनाव में बीजेपी के टिकट पर चुने गए तीन विधयकों में से एक विजेंदर गुप्ता इन आंकड़ों को ज्यादा महत्व नहीं देते हैं। गुप्ता का दावा है कि चुनाव के पहले मुख्यमंत्राी उम्मीदवार के नाम का एलान नहीं करना पार्टी की रणनीति है।

वो कहते हैं, ‘हर पार्टी का एक चुनावी समीकरण और रणनीति होती है। पार्टी जो भी कर रही है, सोच समझकर कर रही है।’

लेकिन, ये रणनीति कई विश्लेषकों को भारतीय जनता पार्टी की कमजोर कड़ी दिखती है। दिल्ली की राजनीति पर करीबी नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्राकार प्रमोद जोशी कहते हैं कि चेहरे का ‘महत्व तो होता ही है और कोई चेहरा है तो उसे सामने लाया जाना चाहिए। जैसे किसी वक्त कांग्रेस के पास शीला दीक्षित का चेहरा था। तब उनकी छवि बदलाव और विकास से जुड़ गई थी।’प्रमोद जोशी की राय में ऐसे पफैसले वोटरों की सोच को भी प्रभावित करते हैं।

वो कहते हैं, ‘दिल्ली का वोटर किसी के पीछे चलने वाला नहीं है। वो चीजों को देखता रहता है और समय पर पफैसले लेता है।’

क्या कहा था अमित शाह ने चेहरे की अहमियत भारतीय जनता पार्टी को भी खूब समझ आती है। साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के चेहरे ने पार्टी को विरोध्यिों पर निर्णायक बढ़त दिलाई।

इतना ही नहीं महाराष्ट्र में दशकों पुरानी सहयोगी शिवसेना के साथ गठबंध्न टूटने के बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने एक न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा, ष्ये मैंडेट ;महाराष्ट्र विधानसभा के नतीजेद्ध देवेंद्र पफड़णवीस और नरेंद्र मोदी के नाम पर आया था। शिवसेना का एक भी प्रत्याशी, इनक्लूडिंग आदित्य ठाकरे, ऐसा नहीं था जिसने मोदी जी का कटआउट शिवसेना के सारे नेताओं से बड़ा नहीं लगाया था।’

शाह दिल्ली में भी आम आदमी पार्टी को मात देने के लिए ‘मोदी मैजिक’ पर भरोसा कर रहे हैं। जनवरी के शुरुआती हफ्रते में दिल्ली की एक रैली में उन्होंने कहा, ‘जहां पर भी मैं जाता हूं, वहां पूछते हैं, दिल्ली में क्या होगा? मैं आज आप सबके सामने जवाब दे देता हूं दिल्ली में नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने वाली है।’

साल 2015 के विधनसभा चुनाव में करारी हार झेलने वाली भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख ने अपने दावे के समर्थन में तर्क भी दिया। अमित शाह ने अरविंद केजरीवाल की चुनौती को खारिज करते हुए कहा, ‘झांसा कोई किसी को कोई एक ही बार दे सकता है। बार-बार नहीं दे सकता। दिल्ली नगर निगम के चुनाव में आप पार्टी ;आम आदमी पार्टीद्ध का सूपड़ा सापफ हो गया। 2019 के चुनावों में दिल्ली के 13750 बूथों में से 12064 बूथ पर भारतीय जनता पार्टी का झंडा पफहराने का काम मेरे कार्यकर्ताओं ने किया। 88 प्रतिशत बूथों पर भारतीय जनता पार्टी ने विजय प्राप्त की है।’

शाह का आंकलन है कि बूथ कार्यकर्ताओं की मेहनत और मोदी का चेहरा साल 1998 से दिल्ली विधनसभा में बहुमत हासिल करने को तरस रही पार्टी की कसक मिटा सकता है।

विजेंदर गुप्ता भी ऐसा ही दावा करते हैं। वो कहते हैं कि लोगों को समझ आ गया है। दिल्ली के विकास को तेज गति बीजेपी दे सकती है। मोदी जी दिल्ली में विकास करना चाहते हैं। केजरीवाल सिपर्फ दिल्ली को पीछे ले जाने का काम कर रहे हैं।

वो आगे कहते हैं, ‘दिल्ली में पीने का पानी सापफ नहीं है। लोग त्रााहि-त्रााहि कर रहे हैं। दिल्ली में प्रदूषण इतना है। पांच साल में सरकार ने इन दोनों मुद्दों पर कोई काम नहीं किया। हम दिल्ली में सापफ पानी देंगे। सापफ हवा दिल्ली की हो इसकी व्यवस्था देंगे। यूनिपफाइड ट्रांसपोर्ट सिस्टम लास्ट माइल कनेक्टिविटी के साथ देंगे।’

दिल्ली के लोगों को मोदी के प्लान पर भरोसा है, ये दावा करते हुए वो कहते हैं, ‘जिस तरह से मोदी जी 1731 कॉलोनियों को मालिकाना हक दिया है, ये कोई साधरण बात नहीं है।’

भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के दावों को लेकर कई सवाल खड़े होते हैं

नगर पालिका या नगर निगम के चुनाव अलग होते हैं। दिल्ली में राज्य के रूप में सपफल होना है तो अलग रणनीति होनी चाहिए। पिछले कुछ समय से भारतीय जनता पार्टी किसी स्थानीय नेता को आगे नहीं कर पाई है। हो सकता है कि मनोज तिवारी कुछ इलाकों में बहुत लोगों को प्रभावित करते हों लेकिन उनके मुकाबले केजरीवाल आगे नजर आते हैं।’

वो ये भी याद दिलाते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में तीसरे नंबर पर आने के बाद आम आदमी पार्टी ने अपनी रणनीति में बदलाव किया।

केजरीवाल और मोदी

दिल्ली में केजरीवाल और मोदी के बीच मुकाबले के सवाल पर ध्यान देने योग्य बात है ‘2019 के चुनाव परिणाम आ गए थे तब आम आदमी पार्टी ने ये कहा था कि दिल्ली में अगला चुनाव इस आधर पर होगा कि केंद्र में बीजेपी की सरकार और राज्य में आम आदमी पार्टी की सरकार है।’

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली में दूसरे नंबर पर वोट हासिल करने वाली कांग्रेस पार्टी के नेता जेपी अग्रवाल की भी राय है कि विधानसभा चुनाव में मोदी के सहारे बीजेपी को बढ़त हासिल नहीं होगी।

वो कहते हैं, ‘मोदी को आगे करने का मतलब ये है कि केंद्र की सरकार के मुद्दों पर वो दिल्ली का चुनाव लड़ेंगे। मोदी दिल्ली में मुख्यमंत्राी बनने वाले नहीं हैं। वो दिल्ली के तीन चार जो नेता हैं, उनका नाम लेते हैं। उन्होंने मनोज तिवारी, विजय गोयल, विजेंद्र गुप्ता किसी के लिए नहीं कहा।’

अग्रवाल ये भी नहीं मानते हैं कि केजरीवाल का नाम ऐसा करिश्मा है कि चुनाव की तस्वीर बदल जाए। वो कहते हैं, ‘मेरा अनुभव ये कहता है कि मुद्दे ज्यादा जरूरी होते हैं। लोग ये देखते हैं कि हकीकत में किसने क्या किया है। जहां हमने दिल्ली छोड़ी थी 2013 में उसका दस पर्सेंट भी विकास नहीं हुआ।’

लेकिन, आम आदमी पार्टी कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के तमाम आरोपों को खारिज कर रही है। दिलीप पांडेय कहते हैं, ‘पहली बार ऐसा हो रहा है कि काम पर चुनाव लड़ा जा रहा है। एक मुख्यमंत्राी आकर कहता है कि हमने आपके लिए काम किया हो तो वोट देना, नहीं तो मत देना। दिल्ली सरकार ने घोषणा पत्रा में लिखे सारे काम किए, वो काम भी किए जो घोषणा पत्रा में नहीं लिखे थे। 200 यूनिट बिजली फ्री कर देंगे हमने ये घोषणा पत्रा में नहीं लिखा था। महिलाओं की बस यात्राा फ्री कर देंगे हमने घोषणा पत्रा में नहीं लिखा था।’

चेहरे और काम दोनों को अहम बताते हुए वो कहते हैं, ‘दिल्ली वाले बड़े समझदार हैं। उनके लिए मैसेज भी महत्वपूर्ण है और मैसेंजर भी। चेहरे की जो विश्वसनीयता है, जब उस चेहरे ने डिलीवर कर दिया, तब उस चेहरे की विश्वसनीयता और बढ़ गई है।’

प्रमोद जोशी का भी आकलन है कि दिल्ली के दंगल में मौजूद महारथियों के बीच केजरीवाल अपना कद बढ़ाने में कामयाब रहे हैं।

वो कहते हैं, ‘लीडर के नाते केजरीवाल की जो नकारात्मकता थी, उन्होंने बीते छह महीने से चुप्पी साध्कर अपनी स्थिति को बेहतर किया है।’

साथ ही वो ये भी जोड़ देते हैं कि भारत में चुनाव के बारे में एक मुश्किल बात ये है कि कई बार अंतिम क्षण में ऐसा कुछ न कुछ हो जाता है कि चुनाव की धरा बदल जाती है।



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