पाक संभला तो ठीक नहीं तो चीन भी सवालों के घेरे में

अमेरिका ने चीन-पाकिस्तान के बीच बनने वाले आर्थिक गलियारे की आलोचना
करने के साथ ही इस मुद्दे पर दोनों ही देशों को करारा झटका दिया है। अमेरिका ने
अपने बयान में कहा है कि इस पूरी परियोजना में कोई पारदर्शिता नहीं बरती गई है। यह
बयान अमेरिका की वरिष्ठ राजनयिक एलिस वेल्स ने दिया है। इस बयान का अपना राजनीतिक
महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि पाकिस्तान के प्रधनमंत्राी इमरान खान ने एक दिन
पहले ही दावोस में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से मुलाकात की है। इस मुलाकात
के केंद्र में मुख्य तौर पर दो बिंदु थे, पहला एपफएटीएपफ की लटकती तलवार से
छुटकारा और दूसरा कश्मीर पर अमेरिका का साथ।
कॉरिडोर पर ट्रंप भी जता चुके हैं नाराजगी
ऐसा नहीं है कि अमेरिका की तरपफ से इस परियोजना को लेकर पहली बार कोई
सवाल खड़ा किया जा रहा हो। इससे पहले खुद राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस परियोजना
के भारतीय क्षेत्रा से निकलने और भारत की मंशा को न जानने पर सवाल खड़ा किया था।
ट्रंप का कहना था कि भारत की इजाजत के बगैर उनके इलाके से परियोजना का निर्माण
अवैध् है। आपको बता दें कि दोनों देशों के बीच निर्माणाध्ीन आर्थिक कॉरिडोर
वर्तमान में भारत के लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश से होकर जा रहा है। गिलगिट
बाल्टिस्तान इसी प्रदेश का हिस्सा है। आपको यहां पर ये भी बता दें कि पाकिस्तान
इसके एक हिस्से को चीन को सौंप चुका है।
दुनिया जानती है चीन की मंशा
वेल्स ने अपने बयान में यहां तक कहा है कि इस परियोजना से पाकिस्तान
पर कर्ज का बोझ बढ़ जाएगा। हालांकि देखा जाए तो उन्होंने अपने बयान में इस परियोजना
के बाबत नया कुछ नहीं कहा है। पूरी दुनिया जानती है कि इस आर्थिक कॉरिडोर के पीछे
चीन की मंशा अपने व्यापार का पफैलाव और भारत पर नजर रखना है। ग्वादर पोर्ट को भी
इसी मकसद से चीन ने अपने हिसाब से कापफी कुछ नया रूप दिया है। वहीं पाकिस्तान पर
कर्ज के बोझ की बात की जाए तो आपको बता दें कि वह अपने एक कर्ज को चुकाने के लिए
चीन से दूसरा कर्ज भी ले चुका है।
भारत पर शामिल होने का दबाव
इस आर्थिक गलियारे को लेकर चीन बार-बार ये कहता रहा है कि इससे
पाकिस्तान का भी कापफी पफायदा होगा। इतना ही नहीं वह लगातार भारत पर भी इस कॉरिडोर
में शामिल होने को लेकर दबाव बनाता रहा है। चीन जानता है कि भारत के इस कॉरिडोर के
निर्माण में शामिल होने के बाद इससे जुड़े सवाल उठने बंद हो जाएंगे। वहीं भारत ने
बीते कुछ वर्षों में जिस तेजी से विकास किया है उसको देखते हुए पूरी दुनिया उसका
लोहा मानने लगी है। जिस वत्तफ पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था ढलान पर थी उस वत्तफ भी
भारत अपनी जीडीपी की रफ्रतार को बनाकर रखे हुए था। भारत के इस कॉरिडोर में शामिल
होने पर चीन को कई तरह दूसरे भी पफायदे हो सकेंगे।
सवालों को नजरअंदाज करना संभव नहीं
इस कॉरिडोर को लेकर वर्तमान में वेल्से ने जो सवाल उठाए हैं उनको
पाकिस्तान के लिए नजरअंदाज करना संभव नहीं होगा। आपको बता दें कि इस कॉरिडोर से
जुडे सभी बड़े ठेके चीन ने अपनी कंपनियों को मुहैया करवाए हैं। इतना ही नहीं वेल्स
ने यहां तक कहा है कि जिन कंपनियों को ये ठेके दिए गए हैं उन्हें पहले से ही
वल्र्ड बैंक ने काली सूची में डाला हुआ है। इस बात में भी कोई झूठ नहीं है कि
पाकिस्तान का योगदान इस पूरे प्रोजेक्ट में केवल सस्ती मजदूरी मुहैया करवाने तक ही
सीमित रहा है। यही वजह है कि पाकिस्तान में इस प्रोजेक्टे को लेकर शुरू से ही
विरोध् हो रहा है। पहले ये विरोध् बाल्टिस्तान और बलूचिस्तान तक ही सीमित था,
लेकिन
अब ये पूरे देश में पफैल चुका है। वेल्स ने पाकिस्तान पर बढ़ते आर्थिक कर्ज को लेकर
जो बयान दिया है उसकी सच्चाई भी अब लोगों को पता चल चुकी है।
चरमराई अर्थव्यवस्था
वर्तमान में पाकिस्तान की आर्थिक हालत इस कदर चरमरा गई है कि वहां पर
लोगों को खाने के भी लाले पड़ गए हैं। देश में इमरान खान की सरकार बनने के बाद
आर्थिक हालात लगातार खराब हो रहे हैं। आटा, नान, रोटी,
ब्रेड,
मांस,
सब्जी,
दूध्
जैसी जरूरी चीजों की कीमत आसमान छू रही है। वहीं दूसरी तरपफ बदहाल पाकिस्तान को
ऐसी सूरत में न तो कोई उम्मीद की किरण भी दिखाई नहीं दे रही है और न ही इस बदहाली
से निकलने का कोई रास्ताू ही मिल रहा है। वहीं दूसरी तरपफ पाकिस्तान को कर्ज देने
के लिए भी कोई देश या वित्तीय संस्थान तैयार नहीं हो रहा है। ऐसे में भी
एपफएटीएपफी की लटकी तलवार उसके लिए बदहाली का एक नया रास्ता खोलती हुई दिखाई दे
रही है।
सीपैक पर एक नजर
गौरतलब है कि यह आर्थिक गलियारा ग्वादर से चीन के उत्तरी-पश्चिमी
झिनजियांग प्रांत के काशगर लगभग 2442 किलोमीटर लंबा है। इस परियोजना को 2030 तक
पूरा होना है। इस योजना पर 46 बिलियन डॉलर की लागत आने का अनुमान
लगाया गया था लेकिन अब यह बढ़कर कापफी ज्यािदा हो गया है। इस गलियारे का उद्देश्य
काशगर से ग्वादर बंदरगाह के बीच सड़कों के 3000 किमी विस्तृत
नेटवर्क और दूसरी ढांचागत परियोजनाओं के माध्यम से संपर्क स्थापित करना है।
काली सूची में डलने का खौफ
आपको बता दें कि एपफएटीएपफ ने पाकिस्तान को पिफलहाल ग्रे सूची में
डाला हुआ है, लेकिन, यदि वह उसके किए गए उपायों से नाखुश रहा या संतुष्ट नहीं हुआ तो इसको
काली सूची में डाल दिया जाएगा। यह स्थिति पाकिस्तान के लिए सबसे बुरी होगी। काली
सूची में डाले जाने के बाद विश्व की कोई भी वित्तीय संस्था पाकिस्तान को कर्ज नहीं
दे सकेगी। ऐसा होने पर अंतरराष्ट्रीय मंच पर देशों को रेटिंग देने वाली संस्थाएं
उसकी रेटिंग को कम कर देंगी। इसका अर्थ ये होगा कि वहां पर विदेशी निवेश के भी सभी
मार्ग बंद हो जाएंगे। इस बुरी स्थिति से निकलने के लिए पाकिस्तान को एपफएटीएपफ
द्वारा कहीं गई सभी बातों पर खरा उतरना होगा।
ब्च्म्ब् को लेकर दिया गया अमेरिकी राजनयिक का बयान कई मायनों में
खास है। हालांकि उनकी बताई सच्चाई पहले से ही जगजाहिर भी है।
सीपीईसी : बर्बादी की राह
- जिनजियांग से शुरू होकर बलूचिस्तान के ग्वादर पोर्ट पर खत्म।
- सीपीईसी के दोनों तरपफ हजारों एकड़ जमीन चीन को लीज पर।
- पेशावर से लेकर कराची तक निगरानी तंत्रा का विकास।
- 24 घंटे सीपीईसी की निगरानी रखने पर पैफसला
ग्वादर’’ के जरिए नापाक चाल
- ग्वादर को 1958 में ओमान से पाकिस्तान ने खरीदा
- सर्वेक्षण में डीप सी पोर्ट के लिए बेहतरीन जगह माना गया।
- ग्वादर का विकास पहले सिंगापुर कर रहा था।
- पाकिस्तान ने सिंगापरु की जगह चीन को काम सौंपा।
पाकिस्तान नहीं छुड़ा पाएगा पीछा
आपको बता दें कि वेल्स अमेरिका की दक्षिण और मध्य एशियाई मामलों की मुख्य डिप्टी असिस्टेंट सेक्रेटरी हैं। सीपैक को लेकर उन्होंने जो बयान दिया है वह भी पाकिस्तान में ही दिया है। वेल्स ने पाकिस्तान से इस परियोजना पर नए सिरे से विचार करने को भी कहा है। लेकिन हकीकत ये है कि उसके लिए इस परियोजना से पीछा छुड़ाना अब लगभग नामुमकिन है। वेल्स ने ये भी कहा है कि चीन उन्हें जो फ्री मुहैया करवा रहा है वह भी महंगे कर्ज के तौर पर ही दिया जा रहा है। लिहाजा पाकिस्तान उसको मदद समझने की भूल न करे। वेल्सन के बयान से कहीं न कहीं ये भी सापफ हो गया है कि यदि उसने इस परियोजना से बाहर निकलने का पफैसला नही किया तो बदहाली उसका पीछा दशकों तक नहीं छोड़ेगी।