एनडीएमसी द्वारा खोले गये ‘सक्षम ईको मार्ट’ ने दिया प्लास्टिक का विकल्प
पर्यावरण संरक्षण, आत्मनिर्भरता, महिला सशक्तिकरण और स्वदेशी जैसे बापू के आदर्शों को हकीकत में लागू करने के लिए एनडीएमसी ने तीन ‘सक्षम ईको मार्ट’ खोले हैं।
सरकार की ओर से ‘सिंगल यूज प्लास्टिक’ के खिलापफ जनान्दोलन शुरू करने
के बाद देशभर में प्लास्टिक की चीजों के तरह-तरह के विकल्प तलाशे जा रहे हैं। इसी
कोशिश में नई दिल्ली नगरपालिका परिषद ;एनडीएमसीद्ध द्वारा महात्मा गाँधी की 150वीं
जयंती पर एक पहल की गई है। पर्यावरण संरक्षण, आत्मनिर्भरता,
महिला सशक्तिकरण और स्वदेशी जैसे बापू के आदर्शों को हकीकत में लागू करने के लिए
एनडीएमसी ने तीन ‘सक्षम इको मार्ट‘ खोले हैं। ये मार्ट कौटिल्य मार्ग, नीति
मार्ग और जय सिहं रोड पर हैं। गौरतलब है कि यहां मिलने वाली हस्तशिल्प की वस्तुएं
‘आंचल स्पेशल स्कूल’ के विद्यार्थी बना रहे हैं।
क्या है ‘सक्षम इको मार्ट’?
‘सक्षम इको मार्ट’ एक तरह का स्टोर है। यह प्लास्टिक की वस्तुओं के
विकल्प उपलब्ध् कराने के लिए खोला गया है। यहां जूट, कपड़ों के बैग,
मोमबत्तियां,
पेन
स्टैंड, नैपकिन होल्डर, छोटी-छोटी चैकियां, टी
कोस्टर जैसी कई हस्तशिल्प ;हैंडीक्राफ्रटद्ध वस्तुएं आप को मिल
जाएंगी। यह कुछ हद तक खादी भंडार जैसा ही है। हलाकि यहां उतनी बड़ी मात्राा में
वस्तुएं उपलब्ध् नहीं होंगी जितनी कि खादी भंडार में। पर्यावरण और महिला
सशत्तफीकरण को केन्द्र में रख कर खोले गए ये स्टोर महिलाओं द्वारा चलाए जाएंगे।
मेंटली चैलेंज्ड बच्चे बना रहे हैं ‘सक्षम इको मार्ट’ के लिए चीजें
‘सक्षम इको मार्ट’ में मिलने वाली वस्तुएं ‘आंचल स्पेशल स्कूल’ के
स्पेशल छात्रा-छात्रााएं बना रहे हैं। यह स्कूल एनडीएमसी द्वारा चलाया जाता है।
इसमें 170 छात्रा-छात्रााएं हैं। यहां पढ़ने वाले सभी बच्चे दिव्यांग हैं। ये 6-25
साल की उम्र के हैं। बता दें कि ‘विमेन ट्रेनिंग इंस्टीटड्ढूट’, ‘क्राफ्रट
सेंटरों’ के साथ-साथ हस्तशिल्प के क्षेत्रा में काम करने वाले कई ‘स्वयंसेवी
संगठनों’ से भी वस्तुएं सक्षम मार्ट में उपलब्ध् कराई जाएंगी।
कितना मुश्किल है बच्चों को सिखाना
‘आंचल स्पेशल स्कूल’ की शिक्षिका सीमा सक्सेना ने बताया, ‘इन
बच्चों को हैंडीक्राफ्रट सिखाने का तरीका अलग अलग होता है। जिसका जैसा बौद्धिक स्तर
होता है उसे वैसे ही सिखाया जाता है। छोटी क्लास में बच्चों को चम्मच पकड़ने से
लेकर, टॉयलेट ट्रेनिंग और बात करना सिखाया जाता है। जब ये इतना सीख जाते
हैं उसके बाद ही इन्हें हस्तशिल्प सिखाया जाता है। शुरुआत में मोती पिरोने,
पेंटिंग
करने, पेपर काटने, चिपकाने की ट्रेनिंग दी जाती है। इसके
बाद छात्रा-छात्रााओं को व्यवसायिक शिक्षा दी जाती है। यानी अलग-अलग विभागों में
लकड़ी, पेपर, कपड़े की वस्तुएं बनाना सिखाया जाता है।’
आगे उन्होंने कहा, मशीन पर बैठना, मशीन को पैर से
चलाना, हाथ से कपड़े को सरकाना इसके साथ ही सिलाई पर ध्यान लगाना ये 4-5
काम एक साथ करना बच्चों के लिए मुश्किल हो जाता है। इतनी मेहनत से तैयार बैग जब आम
आदमी हाथ में लेता है तो उसे ये चीजें नजर नहीं आतीं। बच्चों को सिलाई सिखाने में
पूरा साल निकल जाता है। लेकिन सिखाने के बाद जब बच्चे कोई चीज बना कर हमें दिखाते
हैं तो उसकी खुशी बयान नहीं की जा सकती।’
‘सक्षम इको मार्ट’ शुरू करने की वजह
‘सक्षम इको मार्ट’ का शुभारम्भ करते हुए एनडीएमसी के अध्यक्ष ‘विजय
कुमार देव’ ने कहा, ‘गाँधी जी ने मंदिर मार्ग स्थित अपनी हरिजन बस्ती में 241
दिनों के प्रवास के दौरान पहली बार दिल्ली में चरखे की शुरुआत की थी, जो
स्वदेशी और जनजागरण का एक स्वावलंबी स्रोत बना। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए एनडीएमसी
ने ‘सक्षम इको मार्ट’ की शुरुआत की है। इस पहल से पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ
महिला उद्यमिता को बढ़ावा मिलेगा’।
ऐसे केन्द्र खोले जाने की है जरूरत
‘आंचल स्पेशल स्कूल’ के प्राध्यापक ‘नवल शर्मा’ का कहना है ‘हमें इस
बात की खुशी है कि हमारे स्पेशल बच्चों की बनाई वस्तुएं दूसरी हस्तशिल्प कंपनियों
के बराबर ही खड़ी हैं। गुणवत्ता में उनसे जरा भी कम नहीं हैं। लेकिन हमारे बच्चे तब
तक ही अपनी प्रतिभा दिखा पाते हैं जब तक वे हमारे साथ हैं। उसके बाद उनके पास काम
की कोई गारंटी नहीं होती। हम चाहते हैं कि ‘सक्षम इको मार्ट’ जैसे और भी केन्द्र खोले जाएं। ऐसी पहल की जाए जिससे हमारे बच्चों को रोजगार मिलता रहे।’
शिक्षिका सीमा सक्सेना ने बताया, ‘इन बच्चों के
माता-पिता काम के लिए इन्हें घर से दूर नहीं भेजना चाहते। वे डरते हैं कि इनके साथ
कोई दुर्घटना न हो जाए। यह जरूरी है कि घर के आस-पास के क्षेत्राों में इन्हें
रोजगार मुहैया कराया जाए।’
वहींं एनडीएमसी की सचिव रश्मि सिंह से बातचीत नहीं हो पाई है। उनसे जैसे ही इस सिलसिले में बात होती है। इस खबर को अपडेट किया जाएगा।