कुम्भ संक्रांति का महत्व और पूजा विधि

2020-02-06 0

सूर्य देव के मकर राशी से कुम्भ राशि में प्रवेश की तिथि को कुम्भ संक्रांति के रूप में मनाया जा हैं। वर्षभर में आने वाली 12 संक्रांतियों में से यह संक्राति फाल्गुन महीने और 11वें क्रम पर आती हैं। यह पर्व सदैव एक तिथि पर नहीं आता हैं क्योंकि सूर्य के दिशा और स्थिति के अनुसार कुम्भ संक्राति का दिन तय किया जाता हैं। इस वर्ष यह पर्व 14 फरवरी को बुध्वार के दिन मनाया जायेगा। आमतौर पर कुम्भ संक्रांति फरवरी या मार्च महीने में आती हैं।

कुम्भ संक्रांति का महत्व

इस दिन से दुनिया के सबसे बड़े मेला यानी कुम्भ मेले की शुरुआत हो जाती हैं। जिसे देखने और पवित्रा स्नान करने के लिए लाखों श्रद्धालु नदी के किनारे पहुँचते हैं। इस दिन गंगा नदी में स्नान करना बेहद ही पवित्रा माना गया हैं इस दिन गंगा में स्नान करने से बुरे काम और पापों से मुत्तिफ मिल जाती हैं।

पूरे भारतवर्ष में इस दिन कुम्भ संक्राति का पर्व मनाया जाता है लेकिन इसे सबसे ज्यादा इसे पूर्वी भारत के इलाकों में मनाया जाता हैं। पश्चिम बंगाल में लोग इसे शुभ पफाल्गुन मास की शुरुआत के रूप में मानते हैं। मलयालम कैलेंडर के अनुसार, यह त्यौहार मासी मासम के रूप में जाना जाता है। इस दिन सभी भत्तफ पवित्रा स्नान करने और दर्शन करने के लिए इलाहाबाद, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक जैसे शहरों की और अपना रुख करते हैं। इस दिन लोग अपने अच्छे भविष्य की कामना के लिए ईश्वर की प्रार्थना करते हैं। इस दिन धर्मिक स्थलों पर अन्य दिनों की तुलना में ज्यादा भत्तफ जुटते हैं।

पूजन विधि

1. कुम्भ संक्रांति के दिन भत्तफों को अन्य संक्राति की तरह अन्न, कपड़े और अन्य जरुरी सामान ब्राह्मण पंडितों को दान करने का महत्व हैं।

2. इस दिन गंगा नदी के अन्दर स्नान करने का विशेष महत्व है। कहते हैं इस दिन गंगा में स्नान करने से जन्मों-जन्मों के पाप धूल जाते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

3. इस दिन सापफ मन और पूर्ण श्रद्धा से गंगा जी की आरती और पूजा पाठ करना चाहिए।

4. जो लोग गंगा में स्नान करने में असमर्थ होते हैं वह इस दिन शिप्रा, यमुना और गोदावरी नदी की किनारे मोक्ष प्राप्ति के लिए रुख करते हैं।

5. कुम्भ संक्राति के इस दिन गाय दान करने की भी परंपरा है। ऐसा माना जाता है इससे सुख और वैभव की प्राप्ति होती है।

इतिहास

कुम्भ संक्राति को मनाने की परंपरा हिन्दू रीति-रिवाजों में शताब्दीयों पुरानी हैं। भारत के प्रतापी राजा हर्षवर्धन के समय के इतिहास में पहली कुम्भ मेले और कुम्भ संक्राति का उल्लेख मिलता है। इतिहासकारों के अनुसार हर्षवर्धन के शासनकाल से ही कुम्भ मेलों का आयोजन होना शुरू हुआ था। कुम्भ मेला प्रत्येक तीन वर्षाे में हरिद्वार में में गंगा, इलाहाबाद में यमुना, उज्जयिनी ;उज्जैनद्ध में शिप्रा, नासिक में गोदावरी जैसी नदियों के किनारे आयोजित किया जाता हैं। हिन्दू पुराणों जैसे भागवत पुराण में कुम्भ संक्राति का जिक्र हुआ हैं।



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