संविधान के अधिकारों का दुरूपयोग क्यों?

संविधान के अधिकारों का दुरूपयोग क्यों?
शिवांगी पुरोहित
संविधान ने हमें जितने अधिकार दिए हैं उनका दुरूपयोग तो हम करते ही
आये हैं लेकिन जो मौलिक कर्तव्य हमें निभाने चाहिए हम उन्हें निभाने में अपनी कोई
भूमिका अदा नहीं कर पा रहे हैं। संविधान के 42वें संशोधन (1976 ई0) के द्वारा मौलिक कर्तव्य को संविधान में जोड़ा गया। पूरे 11 मौलिक कर्तव्य
जो इसीलिए बनाये गए थे की भारत की गरिमा को बनाये रखने के लिए देशवासी उन
कर्तव्यों का पालन करें।
पहला कर्तव्य वर्णित है कि भारत का प्रत्येक नागरिक संविधान का पालन
करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे। इसके विपरीत देश में आये दिन
तिरंगे का अपमान होता है, डर्टी पॉलिटिक्स जैसी
फि़ल्मी बनती है और ऐक्ट्रेस तिरंगा लपेटकर नग्नता का प्रदर्शन करती है, कश्मीर
में आये दिन तिरंगा जलाया जाता है, ये बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। संसद
में राष्ट्रगान होने पर कुछ नेतागण पब्लिसिटी के लिए बीच राष्ट्रगान में उठकर चले
जाते हैं लेकिन उन्हें इस बात से फ़र्क नहीं पड़ता की वे राष्ट्रगान का अपमान कर
रहे हैं। साथ ही साथ इससे भी शर्मनाक बात यह है कि भारत की सर्वाेच्च न्यायिक
संस्था गणतंत्र दिवस के मौके पर भी मतभेदों में उलझी हुई है। जनता को न्याय दिलाने
वाले खुद आपस में लड़ रहे हैं।
दूसरा कर्तव्य है कि स्वतंत्र ता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलनों को
प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को ह्रदय में संजोय रखें और उनका पालन करें। इसके
विपरीत आधुनिकता और कुटिलता कुछ इस तरह बढ़ती जा रही है की लोग अपने देश के
महापुरुषो का सम्मान करना तक भूल गए। कुछ लोग भारत के राष्ट्रपिता कहलाने वाले
महात्मा गांधी का अपमान करने से बाज नहीं आते हैं। आये दिन लोग मंच पर खड़े होकर
बापू को अपशब्द कहते हैं लेकिन क्या वो स्वयं इतने काबिल हैं की देश के
राष्ट्रपिता बन सके।
तीसरा कर्तव्य कहता है कि भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता
की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखे लेकिन भारतवासी अलग-अलग सम्प्रदायो में बाटें
गए हैं जो हिन्दू-मुस्लिम के नाम पर लड़ रहे हैं। जो बचपन में साथ खेला करते थे,
वे
आज एक-दूसरे के खिलाफ़ सड़कों पर उतार आते हैं, एक-दूसरे के
खिलाफ़ नारे लगाते हैं, पथराव भी करते हैं और हत्याएं भी करते हैं। साथ ही साथ इस वर्ष गणतं=
दिवस के मौके पर एक फि़ ल्म पद्मावत को लेकर देश भर में जाति विशेष के लोगों ने
कोहराम मचाया। जिन्हें देश में एकता लानी चाहिए वे स्वयं को समाज से प्रथक दर्शाते
हैं।
चौथा कर्तव्य कहता है कि भारत का प्रत्येक नागरिक देश की रक्षा के
लिए अग्रसर रहें, इसके विपरीत कश्मीर में देश की रक्षा करने वाले जवानों पर भारत के
निवासी ही पथराव करते हैं। पांचवा कर्तव्य है कि भारत के सभी लोगों में समरसता और
समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें लेकिन आरक्षण के चलते जातिगत रोष इतना बढ़
गया है कि समानता कहीं दिखाई ही नही देती है। अगला कर्तव्य है कि प्राकृतिक
पर्यावरण की रक्षा और उसका संवर्धन करे। पूरे विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है
जहां भूमि से लेकर अग्नि तक और वृक्षों से लेकर नदियों तक को पूजा जाता है। बात
हमारे मध्य प्रदेश की करें तो नर्मदा नदी मध्य भारत प्रान्त की जीवनधारा कहलाती
है। माता के रूप में पूजी जाने वाली नर्मदा नदी यहां के लोगों के जीवन में एक
मुख्य भूमिका अदा करती है। मध्य प्रदेश में नर्मदा जल घर-घर में पहुच रहा है लेकिन
लोगों की शिकायत रहती है कि नर्मदा जल सप्लाई के नलों से गन्दा पानी आता है।
शिकायतकर्ता शायद इस बात को नहीं समझते कि वे स्वयं नर्मदा नदी को प्रदूषित करते
हैं। कहने का तात्पर्य यही है कि नर्मदा नदी में गंदे नालों तथा फ़ैक्ट्रियों का
पानी निरंतर जा रहा है और लोग स्वयं भी नर्मदा के जल को दूषित कर रहे हैं साथ ही
साथ वृक्षो का कटाव भी जारी है। संविधान का एक कर्तव्य यह भी कहता है कि सर्वाजनिक
संपत्ति को सुरक्षित रखे लेकिन आये दिन होने वाले विरोध-प्रदर्शन और आंदोलनों से
सर्वाजनिक संपत्ति को क्षति पहुंचती है। कहने का तात्पर्य यही है कि हम अपने
अधिकारों को प्राप्त करने के लिए आतुर रहते हैं लेकिन उन कर्तव्यों की ओर ध्यान
नहीं देते जिन्हें निभाने की अपेक्षा संविधान हमसे करता है।