क्यों जरूरी है रिटायरमेंट प्लानिंग

2018-08-01 0

क्यों जरूरी है रिटायरमेंट प्लानिंग

बढ़ते निर्वाह खर्च और लम्बे होते जीवन काल को देखते हुए रिटायरमेंट के लिए योजना बनाने का महत्व बढ़ता जा रहा है। हम सब भविष्य के लिए योजना बनाने में विश्वास रखते हैं। चाहे योजना एक दिन के लिए हो या फि़र छुट्टियों के लिए, पहले से ही योजना बना लेना बेहतर रहता है। लेकिन जब बात रिटायरमेंट की योजना बनाने की आती है, तब कई लोग इसमें ढिलाई दिखाते हैं। इसलिए आश्चर्यजनक नहीं है कि एक रिटायरमेंट सर्वे के मुताबिक करीब 78 फ़ीसदी भारतीयों ने अब तक अपने रिटायरमेंट की योजना बनानी शुरू भी नहीं की है। 

इसके अलावा और भी बुरी खबर है। 2015 ईवाई/सीआईआई रिपोर्ट के मुताबिक श्श्साल 2010 में 60 साल की उम्र से ऊपर के लोगों का हिस्सा 8 फ़ीसदी था जो साल 2030 में बढ़कर 12 फ़ीसदी होने का अनुमान है। रिपोर्ट के अनुसार ये माना जा सकता है कि रिटायर हुए कुल लोगों में से बड़ी संख्या को दिक्कतों का सामन करना पड़ेगा, क्योंकि उन्होंने ठीक से रिटायरमेंट के लिए योजना नहीं बनाई थी। 

हालांकि रिटायरमेंट, वित्तीय योजना का सबसे दूर का लक्ष्य है, लेकिन इसे अनदेखा करना समझदारी नहीं है। बल्कि, छोटी अवधि के लक्ष्य के मुकाबले इस दूर के लक्ष्य के लिए जल्दी योजना बनना आसान काम है। जीवन के कमाई वाले दौर में रिटायरमेंट के बाद जिन्दगी के लिए योजना बनाना क्यों जरूरी है ये हम आपको बताते हैं।

जीवन काल लम्बा होने से एक व्यक्ति की जिन्दगी का कमाई रहित दौर बढ़ता जा रहा है। 30 साल तक कामकाज करने के बाद 60 साल की उम्र में रिटायर होने वाला व्यक्ति आराम से 30 साल या इससे ज्यादा लम्बा जी सकता है। इसका मतलब है कि कमाई वाले 30 सालों से बिना कमाई वाले 30 सालों की भरपाई करनी होगी। दरअसल ये रिटायरमेंट योजना का 30-30 नियम है।

वक्त से पहले रिटायरमेंट ज्यादा से ज्यादा लोग जल्दी रिटायर होने की योजना बना रहे हैं। लेकिन, इसके लिए बड़ी राशि की जरूरत पड़ेगी। बैंक बाजार कॉम के कैटेगरी हेड-सेविंग्स एंड इंवेस्टमेंट्स, अजित नरसिम्हन का कहना है कि श्रिटायरमेंट की उम्र का अनुमान लगाएं। सिफ़र् इसलिए कि हमारे दादा 60 साल की उम्र में रिटायर हुए थे। इससे ये गारंटी नहीं है कि हम लोग भी 60 साल की उम्र में ही रिटायर होंगे। ध्यान में रखें कि नौकरी निर्माण और नौकरियों की मांग अहम तत्व हैं। दिन-ब-दिन कम्पनियां और नौकरियां युवाओं के लिए उपयुक्त होती जा रही हैं। संभव है कि हमें शायद 45 या 50 साल की उम्र में ही रिटायर होना पड़े। इसलिए रिटायरमेंट की उम्र को लेकर यथार्थवादी होना जरूरी है।्य

साल दर साल निर्वाह खर्च बढ़ता चला जा रहा है। इस पर नजर डालिए। आज का 50,000 रुपए का मासिक घर खर्च 25 साल के बाद बढ़कर करीब 1-7 लाख रुपए द्धसाढ़े तीन गुनाऋ हो जाएगा। अगर मानें कि सालाना महंगाई दर 5 फ़ीसदी रहती है। महंगाई का असर रिटायर होने के बाद भी पड़ेगा और बल्कि कमाई न होने के वजह से इसका ज्यादा असर नजर आएगा। नरसिम्हन के मुताबिक श्श्रिटायरमेंट के लिए गणना करते वक्त 8 फ़ीसदी की सालाना महंगाई दर को मानकर चलें। ऊंची दर का अनुमान रखना बेहतर रहेगा। अगर आपके अनुमान से महंगाई दर कम रहती है तो आपके पास ज्यादा पूंजी रहेगी। लेकिन, अगर महंगाई दर का अनुमान काफ़ी कम हो, तो आप बड़ी मुश्किल में पड़ सकते हैं।्य्य


म्यूचुअल फंड का लम्बा साथ आपको देगा बड़ा फायदा


हमारा इरादा आपको डराने का नहीं है, बस हम चाहते हैं कि आप जानें कि कैसे महंगाई दर आपकी पूंजी पर असर डालती है। अगर किसी व्यक्ति को 1 करोड़ रुपए की पूंजी पर्याप्त लगती है, तो देखते हैं कि 5 फ़ीसदी की महंगाई दर के साथ 15 साल के बाद इसका वास्तविक मूल्य कितना रह जाता है। 1 करोड़ रुपए का वास्तविक मूल्य घटकर सिफ़र् 48 लाख रुपए रह जाएगा।

रिटायरमेंट के लिए निवेश में देरी करने का आपको बड़ा मूल्य चुकाना पड़ सकता है। इसके दो पहलू हैं-पहला, जल्दी निवेश करने वाले निवेशकों को कम पैसे लगाने पड़ते हैं और दूसरा देर से निवेश शुरू करने वाले निवेशकों के मुकाबले जल्दी निवेश करने वालों को कंपाउंडिंग का ज्यादा फ़ायदा मिलता है।

जल्दी निवेश शुरू करने वाले निवेशक 50-75 फ़ीसदी कम बचत के साथ उतनी ही पूंजी जोड़ सकता है। साथ ही पता चलता है कि पूंजी का करीब 90 फ़ीसदी आय से आता है बल्कि देर से शुरू करने वालों के लिए ये आंकड़ा घटकर 75 से 80 फ़ीसदी हो जाता है। ये कंपाउंडिंग का असर है। रिटायरमेंट के लिए बचत शुरू करने से पहले आप ये अनुमान लगाएं कि आपको कितनी पूंजी की जरूरत पड़ेगी। जब तक आपको पता नहीं है कि कितनी पूंजी की जरूरत है तब तक निवेश शुरू न करें। सबसे पहले आप मौजूदा लागत पर मासिक खर्चों को जोड़ें। अनुमान करें कि महंगाई दर 5 फ़ीसदी रहेगी। रिटायर होने में बाकी सालों के लिए महंगाई की वजह से बढ़े हुए मासिक खर्च का अंदाजा मिलेगा। अब उल्टा हिसाब लगाइए। अनुमान लगाइए कि आपको मौजूदा समय में कितनी बचत करनी होगी ताकि आपके पास रिटायरमेंट के बाद बढ़े हुए मासिक खर्च को पूरा करने के लिए पर्याप्त पूंजी इक-ा हो सके।

रिटायरमेंट के बाद जरूरी नहीं है कि आपको खर्चों में कमी आए। कुछ बातों को लेकर खर्च कम हो सकता है, लेकिन रिटायरमेंट के बाद वहीं स्वास्थ्य और यात्र सम्बंधित खर्चों में बढ़ोत्तरी हो सकती है। नरसिम्हन का कहना है कि, श्श्जीवनशैली और खर्च में कमी आने का अनुमान न लगाएं। इंसानों के लिए बदलाव को स्वीकार करना मुश्किल होता है। ये और भी ज्यादा मुश्किल होता है जब मुद्दा जीवन-स्तर को बढ़ाने के बजाय कम करना होता है। इसके अलावा उम्र बढ़ने के साथ अतिरिक्त जीवन शैली का खर्च जुड़ने की भी संभावना रहती है।

इसलिए गणना के लिए मौजूदा खर्च को ध्यान में रखना बेहतर रहता है। साथ ही, रिटायरमेंट के बाद की महंगाई भी चिन्ता का विषय है। राइट हराइजंस के सीईओ और फ़ाउंडर, अनिल रेगो के मुताबिक, श्श्रिटायरमेंट के बाद के मासिक खर्च की गणना के लिए महंगाई दर को ध्यान में रखना चाहिए और रिटायरमेंट के बाद महंगाई के आधार पर हर साल इस आंकड़े में बढ़ोत्तरी होगी। यानि ये आंकड़ा हर साल बढ़ता चला जाएगा।्य्य

रिटायरमेंट के बाद के सालों में चिकित्सीय खर्चों में बढ़ोत्तरी को भी ध्यान में रखना जरूरी है। नरसिम्हन के मुताबिक, श्श्इलाज की लागत बड़ा खर्च है, खासतौर पर रिटायरमेंट के बाद और बड़ी बीमारी की संभावना के लिए तैयार रहने के लिए आपको अपने और जीवनसाथी के लिए व्यापक स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी लेनी होगी। ये काफ़ी अहम बात है कि क्योंकि अनुपयोगी पॉलिसी या स्वास्थ्य बीमा के अभाव से आपकी रिटायरमेंट योजना असफ़ल हो जायेगी। क्योंकि इलाज की जरूरत और लागत का अंदाजा लगाना बेहद मुश्किल काम है। जल्द निवेश शुरू करने के साथ ही, सही निवेश विकल्पों का चुनाव करना भी अहम है। रेगो का कहाना है कि, श्श्आमतौर पर लोग जोखिम उठाने की क्षमता और निवेश विकल्पों के चुनाव के लिए प्रचलित धारणा द्धउम्र पर आधारितऋ का इस्तेमाल करते हैं। हालांकि, इसे सभी लोगों पर एक जैसा लागू नहीं किया जा सकता है, क्योंकि ऐसा भी हो सकता है कि बड़ी उम्र का निवेशक ज्यादा जोखिम उठाना चाहता हो और ज्यादातर शेयरों में निवेश करना पसंद करता हो।


आपके हर लक्ष्य के लिए अलग फाइनेंशियल प्लान क्यों है जरूरी?


जब आपके रिटायमेंट में कम से कम 10 साल का वक्त बाकी हो, तब शेयरों में निवेश करें। अध्ययनों से पता चलता है कि लम्बी अवधि में दूसरे निवेश विकल्पों द्धजिसमें सोना, डेट और रियल स्टेट शामिल हैऋ के मुकाबले शेयरों का ऊंची महंगाई दर समायोजित वास्तविक रिटर्न सबसे ज्यादा रहा है। रिटायरमेंट के लिए योजना बनाते वक्त डेट-एसेट के बीच तालमेल को अनदेखा नहीं किया जा सकता है। इक-ी हुई पूंजी को सुरक्षित रखने के लिए, रिटायरमेंट के करीब आने पर जोखिम कम करने के लक्ष्य के साथ शेयरों के बजाय कम उतार-चढ़ाव वाले डेट में निवेश करना शुरू करना चाहिए।


न्यू पेंशन स्कीम के विरोध में सरकारी कर्मचारियों का प्रदर्शन, ये है मांग


हर निवेशक के लिए कुल निवेश में शेयरों की हिस्सेदारी एक समान नहीं हो सकती है। ये निवेशक की उम्र और जोखिम उठाने की क्षमता पर निर्भर करता है। युवाओं के पास ज्यादा वक्त रहता है और वो शुरुआत में शेयरों में ज्यादा निवेश करने का फ़ैसला कर सकते हैं। नरसिम्हन के मुताबिक, श्श्आम धारणा है कि रिटायरमेंट के लिए जितना वक्त हो उतना ज्यादा शेयरों में निवेश करना चाहिए। 40 साल से कम उम्र के व्यक्तियों को अपने निवेश का 80 फ़ीसदी शेयरों में लगाना चाहिए और ये माना जा रहा है कि इन व्यक्तियों की आय का कम से कम 40 फ़ीसदी हिस्सा निवेश विकल्पों पर खर्च हो रहा है। मेरा मानना है कि इससे कम निवेश करने पर रिटायरमेंट के बाद पर्याप्त पूंजी नहीं इक-ी की जा सकती है।

रिटायरमेंट के लिए निवेश करने के लिए एसआईपी का तरीका अपनाएं। रेगो के मुताबिक, श्श्लम्बी अवधि के लिए पूंजी जुटाने के लिए नियमित रूप से निवेश और लम्बी समय के लिए निवेश बनाए रखना योग्य है। आदर्शरूप में लम्बी अवधि मेें पूंजी इक-ी करने के लक्ष्य के साथ निवेश करने के लिए एसआईपी सबसे बेहतर तरीका है।्य्य शेयरों में भारी निवेश वाले रिटायरमेंट पोटफ़र्ोलियो का लार्ज कैप, मिड कैप और स्मॉल कैप में विविधीकरण करना जरूरी है। उम्र बढ़ने के साथ शेयरों में निवेश को कम करके डेट एसेट में पैसा लगाया जा सकता है। ध्यान रखें कि नौकरीपेशा लोग अपनी आय का एक हिस्सा प्रोविडेंट फ़ंड में लगाते हैं जो डेट एसेट है।

रिटायरमेंट के लिए जल्दी पैसा बचाना शुरू करें।

रिटायरमेंट की पूंजी जुटाने के लिए मासिक बचत का हिसाब लगाएं।

रिटायरमेंट के लिए अलग पोटफ़र्ोलियो बनाएं और उसमें निवेश करने के लिए पैसे अलग रखें।

लक्ष्य हासिल होने में 3 साल की अवधि बाकी रहने तक शेयरों में ज्यादा निवेश करें।

एसआईपी तरीका अपनाएं और संभव हो तो रिटायमेंट के करीब आने पर एसआईपी की राशि बढ़ाएं।

रिटायरमेंट में 3 साल बाकी रहने पर अपने निवेश का जोखिम कम करें।

क्रिकेट में खेल के शुरुआती दौर में रन बनाने से जरूरी रन-रेट पर काबू पाना होता है, वैसे ही, अगर आप जल्द बचत करना शुरू करते हैं तो देर से निवेश करने वालों के मुकाबले आपके लिए रिटायरमेंट की पूंजी इक-ी करने के लिए लगने वाले बचत की भी कम रहेगी। नरसिम्हन के मुताबिक, श्श्जल्दी शुरू करें। आदर्शरूप से आपको नौकरी के पहले साल से ही रिटायमेंट के लिए बचत की शुरुआत कर देनी चाहिए। रिटायरमेंट के लिए योजना बनाना अहम है और भारत के युवा इसे प्राथमिकता देकर फ़ायदे में रख सकते हैं।



मासिक-पत्रिका

अन्य ख़बरें

न्यूज़ लेटर प्राप्त करें