अरुणिमा सिन्हा के संघर्ष की कहानी

2018-08-01 0

अरुणिमा सिन्हा के संघर्ष की कहानी

"रहने दे आसमाँ, जमीं की तलाश कर,
जीने के लिए एक कमी की तलाश कर "

नाम-अरुणिमा सिन्हा। नेशनल लेवल वॉलीबाल खिलाड़ी।

कुछ अलग और सबसे हटकर सोचने वाली लड़की। कुछ अलग करने की चाह में वॉलीबाल छोड़कर C.I.S.F. में जॉब के लिए अप्लाई किया। Reciept में जन्म-तिथि गलत आई और अरुणिमा सिन्हा सुधार करवाने के लिए लखनऊ के नजदीक अपने गांव से आगे पद्मावती एक्सप्रेस में बैठी। ट्रेन में कुछ मवालियों ने उसकी गोल्ड चौन लूटने की कोशिश की। जवाब में अरुणिमा ने जबर्दस्त प्रतिकर दिखाया। बहुत जपा-जपी के बाद मवालियों ने अरुणिमा को चलती ट्रेन से बाहर फ़ेंक दिया। अरुणिमा parellel रेलवे ट्रेक के ऊपर गिर पड़ी और बायें पैर के ऊपर से दूसरी ट्रेन गुजर गयी और अरुणिमा बेहोश हो गयी। उसके बाद तो जैसे अरुणिमा पर आकाश टूट पड़ा हो ऐसे एक के बाद एक पूरी 49 ट्रेन पैर से गुजर गई थी।

चमत्कारिक रूप से बची हुई अरुणिमा को सुबह एक हॉस्पिटल में एडमिट किया गया। अरुणिमा का ऑपरेशन ऐसे अस्पताल में हुआ जहां पर कुत्ते भी वार्ड में आते-जाते हों। 

रेलवे ने तो ऐसा भी कह दिया थ कि अरुणिमा पटरी क्रॉस करने गई थी और ट्रेन के बीच में आ गई इसलिए किसी प्रकार का मुआवजा नहीं दिया जाएगा। किसी ने तो इतना भी कहा कि अरुणिमा आत्महत्या करने आई थी और उसके पास टिकट भी नहीं था। अरुणिमा ने कैमरा फ़ुटेज से साबित किया कि उसने टिकट ली थी और कोर्ट में जाकर रेलवे से मुआवजा भी लिया।

आप सोच रहे होंगे कि बात यहीं पर खत्म हो गयी पर ऐसा नहीं था। अरुणिमा के संघर्ष और मजबूत इरादों की कहानी तो यहीं से शुरू हुई थी। अरुणिमा ने दृढ़ निश्चय किया कि मुझे हास्य के पात्र बनाने वाले समाज को जवाब तो देना ही पड़ेगा।  ऐसी हालत में कोई भी होता तो खुदकशी करने की ही सोचता मगर अरुणिमा को तो इतिहास रचना था इसलिए उसने अपने आपको बहुत मक्कम और मजबूत बना लिया। अरुणिमा ने युवराज सिंह की कैंसर के सामने वाली लड़ाई से प्रेरणा ली तथा बछेन्द्रीपाल एवरेस्ट आरोहण करने वाली पहली भारतीय महिला से मुलाकात की। अरुणिमा का एक पैर कट चुका था। पर गुजरात के बड़ौदा के रामकृष्ण मिशन की सहायता से उसे कृत्रिम पैर मिला। कृत्रिम अंगों के सहारे चलने में लोगों को महीनों लग जाते हैं पर अरुणिमा ने अपने दृढ़ मक्कम से सिफ़र् दो ही दिन में चलना शुरू कर दिया।

पूरे डेढ़ साल तक कठिन मेहनत और ट्रेनिंग के पश्चात अरुणिमा ने एक बहुत ही गजब का स्वप्न देख लिया था। उसने चलने या दौड़ने जैसा छोटा स्वप्न नहीं देखा था, उसने तो ऐसा स्वप्न देखा था जिसे पूरा करने में आम आदमी की जान भी जा सकती है और वह स्वप्न था माउंट एवरेस्ट जैसे ऊंचे शिखर के आरोहण करने का।

एक पैर में स्टील कस लिया और दूसरा तो पैर ही कृत्रिम। अरुणिमा को तो अपने आपको साबित कर दिखाना था। स्वप्न उनके ही पूरे होते हैं जो अपनी क्षमता और मजबूत इरादा दिखाते हैं। अरुणिमा बछेन्द्रीपाल से ट्रेनिंग लेकर कुछ ऐसा करना चाहती थी कि हर कोई उसे याद रखे।

माउंट एवरेस्ट चढ़ने निकली अरुणिमा का ऑक्सीजन लेवल 21 मई, 2013 के रोज कम हो गया था। अरुणिमा को सबने यही कहा कि नीचे उतर जाओ जिन्दगी रही तो फि़र से माउंट एवरेस्ट अरोहण कर पाओगी। उसने सबको यही उत्तर दिया कि आज मैं ऊपर नहीं चढ़ पाई तो यह जिन्दगी कुछ काम की नहीं रहेगी और जिन्दगी की कोई कीमत नहीं रह जाएगी।

अरुणिमा ने अपना सफ़र चालू रखा और आखिर में अरुणिमा भारत की ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की एकमा= प्रथम महिला बन गयी जिसने अकस्मात में अंग गंवाने के बावजूद माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई की। एक्सीडेंट में पैर कट गया हो ऐसी लड़की अपने मजबूत और बुलंद इरादों से वर्ल्ड रिकॉर्ड होल्डर Mountaineer बन गयी।

"हमारी  असली स्ट्रेन्थ तो हमारी कमजोरी में छिपी हुई है क्योंकि जो कमजोरी हो उसी में हमारा ध्यान ज्यादा केन्द्रित होता है। उसी Focus को अगर रिवर्स में घुमाओ तो, माइनस प्वाइंट प्लस प्वाइंट में तब्दील हो जायेगा।" यदि अरुणिमा का पैर ही न कटा होता तो वह माउंट एवरेस्ट आरोहण का स्वप्न कैसे देखती। ऐसा नहीं है कि उस पर आफ़त आई वह अच्छा हुआ मगर आफ़त में भी आशीर्वाद छुपा हुआ था।




मासिक-पत्रिका

अन्य ख़बरें

न्यूज़ लेटर प्राप्त करें