चीन की शरण में पाकिस्तान, भारत के लिए कितना खतरा ?

2018-07-01 0

जिनपिंग ने पाकिस्तान की संसद में वो भरोसा दिया, जिसकी पाकिस्तान को अर्से से चाहत थी। उन्होंने द्विपक्षीय आर्थिक साझेदारी और साझा विकास के लिए चीन की ओर से सुरक्षा गारंटी दी। उस वक्त कम ही लोगों को अंदाजा था कि चीन आने वाले बरसों में पाकिस्तानी अर्थव्यवस्का की बैसाखी बनने जा रहा है। पाकिस्तान उस वक्त भी निवेश के लिहाज से माकूल मुल्क नहीं था। लेकिन अमरीका से लेकर यूरोप तक उसके कई मददगार थे। लेकिन चीन शायद बदलते वक्त की आहट काफी पहले भांप चुका था।

जिनपिंग ने पाकिस्तान की संसद में वो भरोसा दिया, जिसकी पाकिस्तान को अर्से से चाहत थी। उन्होंने द्विपक्षीय आर्थिक साझेदारी और साझा विकास के लिए चीन की ओर से सुरक्षा गारंटी दी। उस वक्त कम ही लोगों को अंदाजा था कि चीन आने वाले बरसों में पाकिस्तानी अर्थव्यवस्का की बैसाखी बनने जा रहा है। पाकिस्तान उस वक्त भी निवेश के लिहाज से माकूल मुल्क नहीं था। लेकिन अमरीका से लेकर यूरोप तक उसके कई मददगार थे। लेकिन चीन शायद बदलते वक्त की आहट काफी पहले भांप चुका था।

पाकिस्तान का डबलगेम

संयुक्त राष्ट्र में अमरीकी राजदूत निकी हेली ने पाकिस्तान पर ‘डबलगेम’ खेलने का आरोप लगाया और उसे मिल रही 2550 लाख डॉलर यानी करीब 16 सौ करोड़ रुपए से ज्यादा की मदद पर रोक लगाने का एलान किया। कच्चे तेल की चढ़ती कीमत और आयात के बढ़ते बिल के बीच महज पांच महीने के अंदर पाकिस्तान की दिक्कतें उभरकर सतह पर आ गईं। मई 2018 में पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार के लगातार कम होते जाने की खबर मीडिया में छा गई। 

पाकिस्तान के अखबार डॉन के वरिष्ठ पत्रकार खुर्रम हुसैन अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति की तस्वीर पेश करते हैं। वे कहते हैं- ‘‘मौजूदा स्थिति ये है कि पाकिस्तान के पास करीब ढाई महीने के आयात बिल भरे की कूवत रह गई है। अगर विदेशी मुद्रा में गिरावट जारी रही और स्थिति दो महीने के भुगतान की हैसियत से नीचे चली गई तो फिर कह सकते हैं कि गम्भीर स्थिति बन गई है। अगर रिजर्व एक महीने का रह जाये तो संकट की स्थिति होगी। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर तेजी से उपाय नहीं किए गए तो तीन से छह महीने में ऐसी स्थिति आ सकती है।’’

चीन के सहारे पाकिस्तान

साल 2013 मेें अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने पाकिस्तान को ‘बेलआउट’ पैकेज देकर उबारा था। लेकिन तब पाकिस्तान और अमरीका के सम्बंध गहरे थे। संकट के मौजूदा दौर में पाकिस्तान को मदद के लिए एक ही मुल्क दिख रहा है, वह है चीन।  तीन साल पहले पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर यानी ‘सीपेक’ में 46 अरब डॉलर निवेश का भरोसा देने वाला चीन मौजूदा वित्तीय वर्ष में अर्थव्यवस्था संभालने के लिए पांच अरब डॉलर कर्ज दे चुका है और आगे भी पाकिस्तान की झोली भरने को तैयार है। लेकिन क्यों इस सवाल पर चीन की राजधानी बीजिंग में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार एसडी गुप्ता कहते हैं कि पाकिस्तान की मुश्किल को चीन मौके के तौर पर देख रहा है। 

‘‘इसमें दो राय नहीं है कि चीन पाकिस्तान को आर्थिक कॉलोनी बनाना चाहता है। उसके सैन्य कारण हैं। पाकिस्तान से भारत पर दबाव डाला जा सकता है। सीपेक का रूट समंदर तक जाता है और चीन को समंदर तक संपर्क की जरूरत है।’’

दिक्कत की वजह चीन 

जाहिर तौर पर चीन मददगार दिखता है।  लेकिन कई विशेषज्ञों का दावा है कि पाकिस्तान की मौजूदा मुश्किल बढ़ाने में चीन की अहम् भूमिका है। 

विदेशी मुद्रा भंडार की वजह गिनाते हुए खुर्रम हुसैन कहते हैं- ‘‘पाकिस्तान का आयात तेजी से बढ़ रहा है। उसमें सीपेक के हवाले से हो रहे मशीनों के आयात का भी बड़ा रोल है। तेल की कीमतों और मोबाइल जैसे कंज्यूमर आइटम के आयात का भी रोल है।’’ विदेशों में काम करने वाले नागरिकों की ओर से भी जाने वाली रकम का पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार भंडार में बड़ा हिस्सा होता है। खुर्रम कहते हैं, ‘वो रकम भी नहीं बढ़ रही है।’ पाकिस्तान में अर्थव्यवस्था के कई जानकारों को ये भी लगता है कि उनका देश चीन के चंगुल में फंसता जा रहा है। पाकिस्तानी अर्थशास्त्री डॉ. कैसर बंगाली की राय है कि चीन के साथ हुए समझौतों में पाकिस्तान के हितों की अनदेखी हुई है।  ‘‘इस वक्त चीन का असर ये है कि पाकिस्तान-चीन  फ्रीट्रेड एग्रीमेंट साइन हुआ है उससे पाकिस्तान में चीन  से होने वाला आयात तो बढ़ गया है, लेकिन निर्यात नहीं बढ़ा है। ये पाकिस्तान  की गलती थी कि उन्होंने उस समझौते को सही तरीके से नहीं किया। ये एकतरफा समझौता था।’’

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चीन आखिर पाकिस्तान पर दांव खेलकर हासिल क्या करना चाहता है? क्या वो पाकिस्तान में नीति तय करने की हैसियत चाहता है?

वरिष्ठ पत्रकार खुर्रम हुसैन बताते हैं कि पाकिस्तान में कई विशेषज्ञ ऐसी आशंका जाहिर कर रहे हैं।

‘‘यहां के जानकारी भी एक बात को उठा रहे हैं कि अगर चीन के कर्ज बढ़ते रहे तो चीन की दिलचस्पी होगी कि पाकिस्तान के नीतिगत ढांचे को इस नजर से तय किया जाए कि इन कर्जों की अदायगी होती रहे।’’

अर्थशास्त्री डॉ. कैसर कहते हैं कि फिलहाल पाकिस्तान में चीन ने नीति तय करने की स्थिति हासिल नहीं की है। लेकिन अगर उस पर निर्भरता बढ़ी तो हालात मुश्किल भी हो सकते हैं। वो कहते हैं कि ‘‘चाहे स्वतंत्र अर्थशास्त्री हों या अखबार के संपादकीय या फिर स्तंभकार हों, ये सब बहुत चिंता जता रहे हैं। चिंता इस बात की है कि पाकिस्तान अर्थव्यवस्था जिस दिशा में जा रही है वो ठीक नहीं है।’’

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विशेषज्ञों की सलाह

लेकिन फिर भी पाकिस्तान में अर्थशास्त्री और राजनीति के जानकार चीन के साथ आर्थिक रिश्ते बढ़ाने को लेकर चौकन्ना रहने की हिदायत दे रहे हैं।  हालांकि, जमीन पर स्थिति ये है कि चुनावी साल में प्रमुख राजनीतिक दलों के बीच अर्थव्यवस्था की स्थिति बहस का बड़ा मुद्दा नहीं है। 

अर्थशास्त्री डॉ. कैसर बताते हैं कि राजनीतिक दल या विशेषज्ञ उन्हें ये उम्मीद है कि बीते तीन दशकों की तरह पाकिस्तान इस बार भी मुश्किलों के भंवर से बाहर आने का रास्ता तलाश सकता है। 

वो कहते हैं, ‘‘पाकिस्तान की तारीख कुछ ऐसी रही है कि हम संकट के मुहाने पर जाकर वापस आ जाते हैं। अगर इतिहास का वही टेªंड बना रहा तो उम्मीद है कि हम किनारे से वापस आ पाएंगे।’’ 

लेकिन एसडी गुप्ता आगाह करते हैं कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो चीन के कर्ज की बड़ी कीमत सिर्फ पाकिस्तान को ही नहीं चुकानी होगी, भारत जैसे पड़ोसी मुल्क पर भी असर दिखेगा।

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