प्रॉपर्टी खरीदने से पहले दस्तावेजों की जांच नहीं की तो बहुत पछताना पड़ेगा

2018-09-01 0


 

अपने निवेश और साफ-सुथरा प्रॉपर्टी सुनिश्चित करने के लिए खरीददार को किन-किन चीजों की जांच-पड़ताल करनी चाहिए, आइए आपको बताते हैं- भारत में प्रॉपर्टी के ऑनरशिप की बहुत ज्यादा अहमियत है। अमीरों के लिए यह ताकत और प्रतिष्ठा का प्रतीक है, मिडिल क्लास के लिए सपना साकार होने जैसा और गरीबों की पहुंच से बहुत दूर। कुछ देशों ने प्रॉपर्टी खरीदने की प्रक्रिया को बहुत आसान बनाया हुआ है, जिसमें सरकार द्वारा स्वामित्व के दस्तावेजों का प्रमाणीकरण शामिल होता है। जबकि भारत के परिपेक्ष्य में प्रॉपर्टी का चुनाव करने की प्रक्रिया जोखिम, कानूनी और नियामक बाधाओं से भरी हुई है। खरीददार अक्सर बिल्डरों की दया पर निर्भर होते हैं और शानदार ऑफर्स व अच्छे रिटर्न्स का आश्वासन मिलने के बाद ही फैसला लेते हैं। भले ही ऑफर कितना लुभावना क्यों न हो, खरीददार के लिए जरूरी है कि वह सावधानी बरते और प्रॉपर्टी खरीदने से पहले कानूनी सलाह अवश्य ले। 

1- विक्रेता के टाइटल और ऑनरशिप का वेरिफिकेशन 

यह एक निर्धारित कानूनी सिद्धान्त है कि एक व्यक्ति के पास जो कुछ भी है उससे बेहतर शीर्षक कोई नहीं दे सकता। पहला कदम उठाते हुए यह काम करना चाहिए कि विक्रेता के टाइटल, उसकी प्रकृति, मार्केटिबिलिटी व किसी तरह के विवाद का पता लगाना चाहिए। करीब 30 साल पुराने दस्तावेजों (जहां दस्तावेज उपलब्ध नहीं हैं, वहां 12 साल) की जांच करने के अलावा नीचे लिखे गए दस्तावेज भी विक्रेता से मुहैया कराने को कहना चाहिए। 

- प्रॉपर्टी टाइटल के दस्तावेज, उत्तराधिकार सर्टिफिकेट, बिक्रीनामा, गिफ्रट डीड, वसीयत, बंटवारानामा इत्यादि। टाइटल की प्रकृति-

   लीजहोल्ड, फ्रीहोल्ड या डेवेलपमेंट राइट्स।

- अगर विक्रेता प्रॉपर्टी के डेवेलपमेंट राइट्स पर दावा कर रहा है तो डेवेलपमेंट एग्रीमेंट और पॉवर ऑफ अटॉर्नी का निष्पादन मालिक को विक्रेता के नाम पर करना           चाहिए। 

- सभी टाइटल दस्तावेजों पर स्टैंप लगी होनी चाहिए और ये सब-रजिस्ट्रार दफ्रतर में पंजीकृत होने चाहिए। 

- विक्रेता के नाम पर पंजीकृत खाता।

- पुराने या पेंडिंग केसों की जानकारी।

- विक्रेता के साथ मूल शीर्षक दस्तावेजों की उपलब्धता। 




2- विक्रेता की जांच करेंः

प्रॉपर्टी टाइटल वेरीफिकेशन करने की तरह खरीददार को विक्रेता की क्षमता और किसी भी विशिष्ट स्थितियों का पता लगाना चाहिए। इसके लिए आप निम्न वेरीफिकेशन कर सकते हैंः

- व्यक्तिगत मामले में विक्रेता की निवास स्थिति और उसकी राष्ट्रीयता मालूम कर  सकते हैं। साथ ही क्या बिक्री के लिए सरकारी अधिकारियों से सहमति की जरूरत होती है। 

- अगर प्रॉपर्टी संयुक्त है तो सभी मालिकों की  पहचान जरूरी है। 

- जहां विक्रेता अपनी कंपनी, पार्टनरशिप फर्म, सोसाइटी इत्यादि है तो सम्पत्ति के स्वामित्व और ट्रांसफर की क्षमता की पुष्टि करने के लिए यूनिट के संविधान की जरूरत है। यह भी सुनिश्चित करें कि बिक्री कार्य निष्पादित करने और पंजीकरण करने वाला व्यक्ति अधिकृत है।

- अगर प्रॉपर्टी किसी मानसिक रूप से बीमार शख्स के नाम पर है तो अदालत द्वारा प्रॉपर्टी  की बिक्री की इजाजत और एक अभिभावक की नियुक्ति की जाती है। 

3- रूपान्तरण और जमीन के इस्तेमाल की इजाजत

- बढ़ते शहरीकरण और राजस्व भूमि में विलय के साथ, गैर-कृषि उपयोग के लिए सम्पत्ति का रूपांतरण बेहद अहम है, क्योंकि कई राज्यों के कानून ऐसे लोगों को कृषि की भूमि नहीं देते, जो किसान नहीं हैं। इसके अलावा खरीददार को मास्टर प्लान की भी जांच करनी चाहिए कि क्या प्रॉपर्टी जोनिंग प्लान के तहत विकसित की जा रही है, जिसमें रिहायशी, कामर्शियल, इंडस्ट्रियल पब्लिक / सेमी पब्लिक, पार्क, ओपन स्पेस इत्यादि आते हैं। जहां वास्तविक इस्तेमाल नोटिफाइड जोनिंग से अलग है, वहां टाउन प्लानिंग अथॉरिटी से भूमि उपयोग में बदलाव की परमिशन देने के आदेश हासिल करना अनिवार्य है।

4- निर्माण को मंजूरी 

निर्मित इमारत के साथ अपार्टमेंट या भूमि की खरीद के लिए खरीददार को स्थानीय म्युनिसिपल प्रशासन द्वारा मंजूर किए गए बिल्डिग या लेआउट प्लान की जांच करनी चाहिए। इसके अलावा सरकार और सम्बंधित प्रशासन द्वारा जारी किए गए पानी, सीवेज, इलेक्ट्रिसिटी, पर्यावरण क्लियरेंस, फायर सेफ्रटी की मंजूरी पर भी नजर डालनी चाहिए। 

5- ऑक्यूपेंसी सर्टिफि़केटः

प्रॉपर्टी में रहने वाले विक्रेता को संबंधित प्रशासन से ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट जरूर हासिल कर लेना चाहिए। बिना ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट के प्रॉपर्टी के इस्तेमाल से जुर्माना और प्रॉपर्टी गिरा देने का रिस्क होता है। 

6- टैक्स पेमेंट का स्टेटस चेक करेंः

प्रॉपर्टी टैक्स नहीं चुकाने से संपत्ति पर शुल्क लगता है, जिससे उसकी मार्केट वैल्यू पर असर पड़ता है। इसलिए खरीददार को स्थानीय म्युनिसिपल अथॉरिटी में जाकर यह देख लेना चाहिए कि विक्रेता ने प्रॉपर्टी टैक्स में कोई डिफॉल्ट तो नहीं किया है। 

7- एन्कम्ब्रन्सः

जहां प्रॉपर्टी रजिस्टर्ड है, उस इलाके का सब-रजिस्ट्रार दफ्रतर और अगर विक्रेता कोई कॉरपोरेट हस्ती है तो सूचना मिनिस्ट्री ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स की साइट पर भी उपलब्ध रहती है, जिससे प्रॉपर्टी पर दर्ज किसी भी एन्कम्ब्रन्स की जानकारी मिल जाएगी। सावधानी के तौर पर खरीददार अखबारों में पब्लिक नोटिस भी छपवा सकता है, ताकि अगर कोई थर्ड पार्टी क्लेम करना चाहे तो उसका पता चल जाए। 

8- फि़जिकल सर्वे और प्रॉपर्टी तक पहुंचः

खरीददार खुद भी फिजिकल सर्वे कर सकता है और प्रॉपर्टी का माप मालूम कर सकता है। जमीन के मामले में सीमाओं की पहचान करनी जरूरी है। इसके अलावा और भी भौतिक विशेषताओं का पता लगाएं, जिससे भविष्य में प्रॉपर्टी का आप और भी आनंद उठा सकें। 

9- RERA एक्ट, 2016ः

RERA का आदेश है कि डेवलपर्स को अपना प्रोजेक्ट अथॉरिटी में दर्ज कराना होगा। किसी भी खरीददार को यह जरूर मालूम करना चाहिए कि जिस प्रोजेक्ट में वह घर खरीदना चाहता है, वह त्म्त्। में रजिस्टर्ड है या नहीं। RERA की आधिकारिक वेबसाइट पर हर राज्य के बिल्डर के खिलाफ शिकायत दर्ज होती है, जिससे डेवलपर्स और प्रोजेक्ट की क्रेडिबिलिटी की जानकारी मिलती है और खरीददार को विकल्प चुनने की आजादी। 

अंततः हम कह सकते हैं कि प्रॉपर्टी खरीदते वक्त हमेशा सावधानी बरतें। कानूनी, सलाह, दस्तावेजों की जांच और प्रॉपर्टी से जुड़ी जानकारी की वेरीफिकेशन खरीददार को विश्वास दिलाती है कि निवेश बिल्कुल सुरक्षित है। 



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