जीएसटी आय बढ़ाने हेतु दायरा बढ़ना जरूरीः गर्ग

2018-09-01 0

व्यापार-उद्योग को जीएसटी टेक्नोलॉजी सीखनी होेगी- कर विशेषज्ञ -

 

जीएसटी अर्थव्यवस्था के लिए कुल मिलाकर हितकारक है और व्यापार उद्योग को नई प्रणाली के साथ काम करने के लिए सुसज्ज होना ही पड़ेगा, ऐसे विचार अग्रणी कर विशेषज्ञों ने व्यक्त किया है। उन्होंने कहा कि दरों का वैविध्य, मुनाफाखोरी विरोधी प्रावधान, रिटर्न का फार्म और उसे भरने में होने वाली टेक्निकल मुश्किल आदि करदाताओं के लिए परेशानी पैदा करते हैं। 

चैम्बर ऑफ टैक्स कंसल्टेंट्स द्वारा ‘व्यापार जन्मभूमि’ जिसमें मीडिया पार्टनर थे के सहयोग से आयोजित एक चर्चा-सत्र में बोलते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री के जीएसटी सलाहकार और भूतपूर्व महसूली अधिकारी वी-के- गर्ग ने कहा कि हमारे जैसे राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक विविधता वाले देश में इस प्रकार का कर सर्वसम्मति से पेश किया जा सका, वह देश के लोकतंत्र की एक अनोखी उपलब्धि है। हालांकि उसे अभी और स्पष्ट और सरल बनाना जरूरी है। सूखा मेवा या बेकरी प्रोडक्ट्स जैसे एक ही वर्ग की विभिन्न चीजों पर तथा मार्ग परिवहन जैसी एक ही सेवा के विभिन्न प्रकारों पर अलग-अलग दर से काफी परेशानी होती है। जीएसटी की आय अपेक्षा से कम है और उसके उपाय के रूप में उसका दायरा बढ़ाने की जरूरत है। अर्नेस्ट एण्ड यंग पार्टनर दिव्येश लापसीवाला ने कहा कि सरकार कराधान के अमल के लिए अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी का उपयोग कर रही है तब व्यापार और उद्योग जगत को उसके लिए सुसज्ज होना पड़ेगा। मुनाफाखोरी विरोधी कानून का अमल चुनौतीपूर्ण है क्योंकि किस चीज पर कितना मुनाफा जीएसटी के कारण हुआ है, उसकी गणना करने के लिए और उसका लाभ ग्राहक को किस तरह पहुचना है, उसके लिए कोई दिशा-निर्देश नहीं है। कहा जाता है कि जीएसटी की दर पहले की एक्साइज और वैट की दरों के आधार  पर निश्चित होती है, लेकिन पूर्व की दरों में अनेक अपवाद होने से कराधान की प्रभावी दर नीची रहती थी। इस मुद्दे को नजरअंदाज किया गया है। जीएसटी से मुद्रास्फीति नहीं बढ़ी ऐसा कहना उचित नहीं है। क्योंकि पेट्रोलियम उत्पाद और रियल स्टेट जैसे क्षेत्र उसके दायरे से बाहर है। करदाताओं की संख्या अभी बढ़ाई जा सकती है। 



लार्सन एंड टुब्रो के कार्पोरेट टेक्सेशन के वाइस प्रेसीडेंट पी-एस- कपूर ने कहा कि जीएसटी के अमल में प्रारंभिक परेशानी आई थी, लेकिन अब पूरी व्यवस्था स्थिर हो रही है। सबसे अच्छी बात यह है कि राजनीतक नेता और अधिकारी समस्याओं का निराकरण करने के लिए तत्पर हैं और उद्योग को भी ऐसा ही सकारात्मक प्रतिभाव देना है। लघु और मध्यम उद्योगों की ओर से संदीप पारिख ने कहा कि छोटी इकाइयां जटिल कानून, उसके पालन के ढांचे और सरकारी सर्वर की तिहरी कमी और अनिश्चितता का सामना कर रही हैं, लेकिन धीरे-धीरे स्थिति सामान्य होती जा रही है। 45 दिन में भुगतान कर देने के प्रावधान से छोटी इकाइयों को लाभ हुआ है। लेकिन रिटर्न भरने के 3 वर्ष बाद नोटिस देने के प्रावधान से अनेक समस्याएं उत्पन्न होने का भय है। चेम्बर के अध्यक्ष हिनेश दोशी ने वक्ताओं और श्रोता वर्ग का स्वागत तथा व्यापार-जन्मभूमि के सहयोग के लिए आभार व्यक्त किया।’’ 



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